सच और झूठ

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सच और झूठ

 

आज न्यूज पेपर में पढ़ा। ठीक समझे न्यूज पेपर में पढ़ा , में आज भी न्यूज पेपर पढ़ता हूं । ठीक है डिजिटल जमाना है तो डिजिटल होना चाहिए लेकिन इसका मतलब यह थोड़े ही है की कागज पर छपा न्यूज पेपर नहीं पढ़ना चाहिए । और हां चोबीस घंटे एसी में बैठने वाले अगर डिजिटल होकर पेड़ बचने का ज्ञान देने की सोच रहे है तो मेरी सुझाव है की गलत जगह पर है आप ।

खेर तो न्यूज पेपर में पढ़ा की एक विधवा लड़की अपने ससुर से रहन सहन का खर्च मांग रही है और उसे दिलवाया भी जा रहा है । और मजे की बात है की वो रहेगी भी अपने मायके में । मतलब की एक बूढ़ा आदमी को शायद काम करने में समर्थ भी नहीं होगा वो बाहर जायेगा ताकि एक जवान महिला ऐश कर सके । संभव है की बुजुर्ग के पास मकान हो प्रॉपर्टी हो इनकम का साधन हो परंतु यह सब उसका अपना है और इसके लिए उसने अपना पूरा जीवन मेहनत की है ।

कुछ दिन पहले भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था जहा एक तीस प्लस की लड़की अपने बाप से खर्च मांग रही थी और उसे दिलवाया भी जा रहा था । मतलब एक बार फिर वही है एक बूढ़ा आदमी घर से बाहर जाकर मेहनत करे ताकि एक जवान महिला ऐश कर सके ।

और यह दोनो कोई अपाहिज नहीं है फुल्ली फंक्शनल है दोनो । हर साल तकरीबन एक लाख से अधिक महिलाएं खुद को बकायदा बोझ साबित करती है । मतलब यह की पिछले 10 सालों ने बकायदा 10 से 15 लाख ने खुद साबित किया है की वो बोझ है । बाकी की करोड़ों ने बेशक खुद नहीं कहां लेकिन कसर भी कहां छोड़ी है । अगर इतिहास के पन्नो से सबसे बड़ा स्कैम ढूंढा जाए तो पता चलेगा ही  हाउसवाइफ होना ही सबसे बड़ा स्कैम है । और अगर दूसरे नंबर पर ढूंढा जाए तो कमाऊ बीवी होना दूसरा सबसे बड़ा स्कैम है ।

तो अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो महिला और कुछ नहीं बस एक बोझ है फिर चाहे वो एक साल की हो या पचास साल की । प्रोपेगेंडा फैलाने से सच झूठ नहीं बन जायेगा वो पहले भी बोझ थी और आज भी है । फिर कहता हूं चोबीस घंटे एसी में बैठ का पेड़ बचने के लिए डिजिटल होने का ज्ञान देने वाले चाहे जितना प्रोपेगेंडा  फैलाते रहें सच को झूठ में नहीं बदल सकते । बोझ बोझ ही रहने वाला है ।

प्रोपेगेंडा छोड़ो और अपना खुद कमाना सीखो क्योंकि आज मैं कह रहा हूं कल यानी की यही कोई 30 साल के अंदर सब कहने वाले है ।

हम न तो प्रोवाइडर है न प्रोटेक्टर ।

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