फूलों वाली बुढ़िया

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फूलों वाली बुढ़िया

 

मुझे फूल पसंद है , लेकिन बाग में , जंगल में , सड़क किनारे यानी की हर उस जगह जहां कोई पेड़ या पौधा लगा सकने की गुंजाइश हो । लेकिन अप्राकृतिक से अधिक मुझे प्राकृतिक फूल पौधे पसंद है । शायद इसीलिए मेरे घर पर बस चंद गमले ही मिलेंगे , पूरा बगीचा बेतरतीब अपने आप उगने वाले फूलों से भरा है ।

सुबह सुबह जब घूमने जाता हूं तब वापसी में दो पीले रंग के फूल तोड़ कर अवश्य ही लाता हूं । सिर्फ दो न कम न ज्यादा , एक फूल मेरे टेबल पर पड़ा रहता है और दूसरा ऑफिस के टेबल पर । शाम के वक्त दोनों फूल गमले में मिल जाते है खाद बनाने के लिए । सिर्फ पीले फूल इसीलिए क्योंकि यह फूल दिन भर ताजा रहते है । कॉलोनी में सफेद और गुलाबी फूल भी है लेकिन सफेद फूल एक घंटे में मुरझा जाते है और गुलाबी फूल तो एक घंटे में मुरझाने के साथ साथ बिखर भी जाते हैं ।

कुछ और लोग भी है जो फूल तोड़ते है । कुछ लोग फूलों का इस्तेमाल पूजा में करते है और कुछ बस वैसे ही तोड़ कर फेंक देते है ।

साल भर कॉलोनी में किसी न किसी तरह के फूल मिल ही जाते है लेकिन नवंबर दिसंबर और जनवरी के तीन थोड़ा मुश्किल हो जाते है । एक तो थोड़ी सर्दी के कारण फूल खिलना वैसे ही बहुत कम हो जाते है और उस पर माली पौधों की कटाई भी कर देता है , यानी कि कंगाली में आटा गिला ।

दिसंबर का महीना तो बहुत ही मुश्किल होता है जब मैं घूमने जाता हूं तब हजारों पौधों पर गिनती के यही कोई 15 से 20 पीले फूल दिखाई देते है । इन 15 ये 20 में से ही दो फूल मेरे टेबल पर रखे रहने के लिए मुझे चाहिए रहते है ।

मेरे बाहर जाने के वक्त अंधेरा रहता है और फिर जिम से लेकर जॉगिंग करते हुए तकरीबन 1 घंटा बाद जब मैं वापिस आता हूं तब तक रोशनी फैल चुकी होती है । दो साल पहले कुछ ऐसा हुआ कि मुझे फूल मिलने बंद हो गए । हालांकि जब मैं जाता तब वही 15 – 20 फूल खिले रहते लेकिन जब मैं वापिस आता तब तक कोई उन्हें तोड़ कर ले जाता । कई दिन तक यही किस्सा चलता रहा , मुझे फूल नहीं मिले ।

आखिर मैने उस फूल तोडू जवान से बात करने की सोची लेकिन पहले उसे पकड़ना जरूरी था । जरूरी काम किए जाने चाहिए इसीलिए एक दिन जॉगिंग के लिए ट्रैक पर न जाकर वहीं जिम के आस पास ही घूमता और इंतजार करता रहा । मेहनत रंग लाई और आखिर मैने उस फूल तोडू जवान यानी कि 70 या 80 साल की बुढ़िया को पकड़ ही लिए जो सारे के सारे फूल तोड़ कर ले जाती थी । मैने उसे बड़े आराम से बता दिया कि वह मेरे लिए दो फूल छोड़ दिया करे । कहना मुश्किल है कि उसे मेरी बात समझ आई या नहीं लेकिन मैने उसे समझा दिया ।

अगले दिन फिर वही हुआ सारे के सारे फूल गायब । कुछ दिन तक वही होता रहा तब एक दिन फिर मैने बुढ़िया को पकड़ा और उसे समझाया कि वह मेरे लिए दो फूल छोड़ दिया करे । लेकिन बात नहीं बनी और मुझे फूल नहीं मिल रहे थे । आखिर मैं मैने कुछ अलग सोचा और अपने लिए दो फूल जाते वक्त तोड़ना शुरू कर दिया । हालांकि सुविधाजनक नहीं था लेकिन मुझे फूल मिलने लगे इतना काफी था ।

अब मुझे बुढ़िया से कोई मतलब नहीं था लेकिन शायद बुढ़िया को मुझसे मतलब रहा होगा इसीलिए इस बार वह मुझे ढूंढने आई , शिकायत लेकर की उसे उसके ठाकुर के लिए कम फूल मिल रहे है । मैने उसे समझा दिया कि में सिर्फ दो फूल लेता हूं । लेकिन बात शायद उसकी समझ में नहीं आई या शायद उसकी नजर में मेरा फूल लेना महत्वपूर्ण नहीं था ।

चाहे जो तो व्यवस्था वही बनी रही मैं जाते वक्त दो फूल ले जाता और जिम की टेबल पर छोड़ जाता और वापिस आते वक्त उठा लेता । बस 2 या 4 दिन बाद ही मेरे दोनों फूल जिम की मेज से गायब हो गए , मैने सोचा शायद हवा से उड़ गए होंगे । लेकिन अब यह हर रोज होने लगा । मैं हर रोज फूल ले जाता और वापसी में टेबल पर फूल नहीं मिलते । बुढ़िया फूल तोड़ने के साथ साथ मेरे फूल भी ले जाती । मैने शिकायत की तो एक छोटा मोटा झगड़ा भी हो गया , बुढ़िया के परिवार के साथ । झगड़ा तो मामूली था लेकिन जब मामला जिद पर आ जाए तो अलग ही रूप ले लेता है ।

मैने हर रोज सारे के सारे फूल तोड़ना शुरू कर दिया । जाते वक्त ही सारे के सारे फूल तोड़ लेता और जिम के लॉकर में रख देता ताकि बुढ़िया चुरा न सके । हालांकि लॉकर में रखना आखिरी व्यवस्था थी उससे पहले में सारे फूल तोड़ कर टेबल पर भी रखे । शायद कहीं दबी छिपी भावना रही हो कि बुढ़िया समझ जाएगी और कुछ फूल ले जाएगी और मेरा हिस्सा छोड़ जाएगी । लेकिन ऐसा हुआ नहीं और बुढ़िया ने टेबल से सारे फूल चुरा लिए । इसके बाद मैने सारे फूल लॉकर में रखने शुरू कर दिए । वह पूरा सीजन ऐसे ही छोटी छोटी लड़ाइयों में गुजर गया ।

साल बदला और नया साल यानी की 2023 आ गया , फूल एक बार फिर से खिलने लगे । इतने फूल थे कि न तो मैं सबको लॉकर में रख सकता था और न बुढ़िया ले जा सकती थी ।

हर अच्छे दिन का अंत एक अंधकार वाली रात पर होना ही प्राकृतिक है । अच्छा समय गुजर गया और दिसंबर 2023 एक बार फिर गिनती के फूल , मैं और मेरे खिलाफ मोर्चा खोले खड़ी बुढ़िया । कॉलोनी में मेरे अधिकत लोगों से बोलचाल का संबंध था लेकिन बुढ़िया का संबंध बोलचाल से कुछ अधिक था । वह सब एक ही समूह के लोग थे वो सब धार्मिक लोग थे और उनमें मैं एक अकेला अधार्मिक । लिहाजा भावनाएं तो आहत होनी ही थी आखिर कैसे मेरे जैसा मामूली जीवित प्राणी एक मुर्दा पत्थर की मूर्ति के फूल चुरा सकता था । दिसंबर 2023 में मुझे रोकने की कुछ छोटी मोटी असफल कोशिशें की गई , असफल इसीलिए क्योंकि दिसंबर में सुबह 4.30 पर जाग कर कौन फूलों के पीछे जाय, फिर चाहे वो फूल किसी ठाकुर के ही क्यों न हों । अलबत्ता मेरे खिलाफ कुछ रेजोल्यूशन , मीटिंग , चर्चा आदि की गई । मुझे सफाई के लिए बुलाया भी गया लेकिन मैने जाना जरूरी नहीं समझा । दिसंबर 2023 भी गुजर गया ।

अब दिसंबर 2024 आ गया और बुढ़िया एक बार फिर मैदान में है इस बार तैयारी कुछ अधिक जबरदस्त लग रही है । पिछले 2 सप्ताह से मुझे कोई फूल नहीं मिल रहा क्योंकि फूलों को रात में ही तोड़ लिया जा रहा है । खिलने से पहले ही तोड़ रहे है , शायद रात भर पानी में रखते हो या कुछ और पता नहीं , लेकिन सारे प्रयास एक बात पर हैं कि फूल मुझे नहीं मिलने चाहिए ।

आज रविवार का दिन था और मैने एक माली बुलवा कर हर उस पौधे की कटिंग करवा दी जिस पर फूल आने की संभावना था , ज्यादा नहीं लगभग तीन सप्ताह तक पूरी कॉलोनी में एक भी फूल नहीं खिलने वाला , यानी कि ठाकुर को कोई फूल नहीं मिलने जा रहा । अब हंगामे का इंतजार है ।

नास्तिक होने के लिए अगर कोई इंग्रीडिएंट जरूरी है तो वह है बुद्धि जबकि बुद्धि का होना धार्मिक होने के लिए सबसे घातक घटक है । वैसे कई बार बुद्धि होने के बावजूद आदमी इस्तेमाल करने की हिम्मत नहीं करता और धार्मिक बना रहता था , ठीक वैसे जैसे भेड़ अपने झुंड में बनी रहती है इसीलिए कुछ बुद्धि वाले भी धार्मिक हो सकते है लेकिन अधिकांश धार्मिक लो आई क्यू वाले ही है ।

इस वक्त मेरे सामने भी ऐसा ही एक झुंड है जो शायद आने वाले दिनों में मेरे खिलाफ कुछ रेजोल्यूशन वगैरह पास करता रहेगा , शायद बॉयकॉट भी करे , शायद कॉलोनी का दुकानदार मुझे सामान न बेचे , शायद कुछ नारे बाजी भी हो जाए लेकिन क्या यह सब लोग मेरा कुछ बिगड़ सकते है ?

आत्ममुग्ध , आत्म गर्वित , खुद को बिना कुछ किए महान समझने वाले लोग दरअसल सबसे अधिक तबाही मचाने वाले लोग भी है । अगर इतिहास देखा जाए तो अधिकांश बर्बादी धार्मिक लोगों ने और अधिकांश क्रिएशन नास्तिक यानी कि वैज्ञानिक लोगों ने ही किया है । और मैं सिर्फ वास्तविक वैज्ञानिकों की बात कर रहा हूं ।

तो हा यह झुंड मेरे खिलाफ बहुत कुछ कर सकता है लेकिन जब तक मैं चाय की चुस्कियों के साथ उनके किए पर मुस्कुरा सकने का दम रखता हूं तब तक मेरा कुछ बिगड़ सकें यह संभव नहीं । शायद जल्द ही मैं इस कॉलोनी को बाय बाय कह सकता हूं क्योंकि सामने तो एक बेकार का झुंड है जिसका सबसे महत्वपूर्ण काम मेरी नजर में मूर्खता का प्रदर्शन करना ही है । लेकिन मेरे पास तो अभी बहुत काम है ।

सुनने में आ रहा है कि आज किसी पत्रकार के साथ बातचीत हुई है , आगे शायद किसी वकील से भी बात हो ।

लेकिन कहते है कि जब सामने जंग का मैदान हो तब बहादुरी इसी में है कि जंग के मैदान के बीचों बीच आगे बढ़ा जाए । लिहाजा अगले कुछ दिन या शायद कुछ महीने यहीं रहना तय है ।

 

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