कहते है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है । क्या वास्तव में ऐसा है । हो सकता है कि आज न हो परंतु क्या पहले था ?
साहित्य के किरदार युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, दुर्योधन, कुंती और माद्री आदि , अरे वही महाभारत वाले , तकरीबन 2 से 3 हजार साल पहले तैयार किए गए , तो क्या इन किरदारों से उस वक्त के समाज का अनुमान लगाया जा सकता है ?
पता नहीं लेकिन कोशिश तो की ही जा सकती है ।
किसकी बात करें ?
अर्जुन की ?
पहले ही बहुत लोग बकबक कर चुके ।
युधिष्ठिर या भीम या भीष्म की ?
अरे बहुत लोग कर चुके अब और बोर होने से क्या फायदा ।
तो किसी ऐसे किरदार की बात करें जिस पर कम कहा गया है । चलो कुंती और माद्री की बात करते है ।
कुंती की बात करें तो करण और माद्री की बात करें तो व्यास का आ जाना स्वाभाविक ही है । कहने वालों को छोड़ो और सच का साथ पकड़ो । और सच सिर्फ इतना है कि करण और व्यास का जन्म ठीक वैसे ही हुआ जैसे कि हर बच्चे का होता है । और एक सच यह भी है कि करण और व्यास दोनों छोड़ दिए गए , क्यों ? शायद इसीलिए की कुंती और माद्री दोनों को राज्य चाहिए थे बहुत बहुत सारी धन दौलत चाहिए थे । तो कुछ नया है इसमें ? अरे नहीं कुछ नया नहीं है हमेशा से ही दुनियादारी का किस्सा यही रहा है । आज भी वही किस्सा है ।
कुंती का किस्सा बस इतना सा है कि उसमें करण को छोड़ दिया ताकि महारानी बन सके और माद्री का किस्सा भी कुछ अलग नहीं है ।
क्या इससे कोई फरक पड़ता है ?
नहीं लेकिन फरक इससे पड़ता है कि सच को खूबसूरत मुखौटे के पीछे छिपाने के लिए कई काल्पनिक किस्से घड़े जाते रहे है । हमेशा से ही ऐसा रहा है । कुंती और माद्री के लिए भी खूबसूरत किस्से घड़ दिए गए और आज भी कुछ नहीं बदला । किसी आदमी को मूर्ख बनाना है तो किस्से तो गढ़ने ही पड़ेंगे ना ।
हर किस्से का अंत तो होता ही है । कुंती के किस्से का भी और माद्री के किस्से का अंत भी आखिर हुआ । आखिर एक दिन करण और व्यास की हकीकत सामने आई ही । हर किस्से का अंत आखिर में होता ही है ।
एक लड़की थी , खूबसूरत शायद थी । शायद इसीलिए क्योंकि खूबसूरती देखने वाले की आंखों में रहती है जो मुझे खूबसूरत लगी जरूरी नहीं किसी और को भी लगे । तो एक दिन उसके सामने रोजी रोटी कमाने का सवाल पैदा हुआ और उसने वेश्यावृति को पैसा कमाने का जरिया बना लिया । कुछ साल गुजरे और अब उसकी खुबसूरती गायब होने लगी । तब उसने ऐसे आदमी की तलाश शुरू की जो उसे दे सके आलीशान मकान , बैंक बैलेंस और ऐश आराम की जिंदगी । काम मुश्किल था शायद बहुत मुश्किल ।
कहते है कि मुश्किल कुछ नहीं होता बस मेहनत करने की जरूरत है । एक ऐसा किस्सा चाहिए जो मुश्किल को आसान कर सके । किस्से लिखना तो कहानीकारो का काम है और ऐसा कहानीकार मिलना कौनसा मुश्किल काम है । जब कुंती और माद्री को मिल गया तो इस लड़की को भी मिलना ही था ।
कहानीकार मिला और किस्सा तैयार । अब लड़की वेश्यावृति नहीं कर रही थी बस वो तो ग्राहकों को मूर्ख बना कर पैसा लेती थी और फिर बिना सेक्स किए ही निकल लेती थी ।
किस्सा अच्छा लगा ?
लगना ही था आखिर एक वैश्या को बिल्कुल सती सावित्री , दया और त्याग की मूरत और न जाने क्या क्या साबित करने योग्य किस्सा था । ऐसा किस्सा और एक आदमी ना मिले , ऐसा कैसे हो सकता है ।
किस्सा तो खेर किस्सा ही है पर कहानीकारों की हकीकत बस इतनी सी ही है कि वो काल्पनिक किस्से के जरिए आदमी को मूर्ख बनाने के लिए पैदा हुए है ।
शायद इसीलिए ही अब साहित्य डेढ़ रुपए किलो के हिसाब से बिकता है और वह भी इसीलिए क्योंकि समोसे वाले को समोसे रखने के लिए पेपर चाहिए ।
खैर कहानीकारों के कर्मों के कारण अब इनका किस्सा ही खत्म हो चुका है । कोई नहीं पढ़ता इसीलिए छोड़ो इनको , इनके डेढ़ रुपए किलो के साथ ।
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