
रात के तीन बजे थे।
कमरे में बस लैपटॉप की स्क्रीन की नीली रोशनी थी और पंखे की धीमी आवाज़। बाहर शहर सो रहा था, लेकिन अर्जुन जाग रहा था — उस सपने के साथ जो अब तक सिर्फ़ उसकी डायरी में था। एक छोटा-सा स्टार्टअप, एक बड़ी उम्मीद, और ढेर सारा डर।
अर्जुन ने कई महीनों पहले अपनी नौकरी छोड़ दी थी। एक अच्छी-खासी सैलरी, पर खालीपन से भरा जीवन। हर सुबह ट्रैफिक, ऑफिस, और लौटकर वही थकान। उसे लगा था कि वो किसी और के सपने के लिए काम कर रहा है। और फिर एक दिन उसने तय किया — अब वो अपना सपना बनाएगा।
लेकिन किसी भी सपने की शुरुआत अकेले नहीं होती।
वो शाम यादगार थी जब उसने अपने सबसे करीबी दोस्तों — समीर और रोहित — को बताया था कि वो नौकरी छोड़ चुका है।
“तू पागल है क्या?” रोहित ने कहा था, “इतनी बढ़िया जॉब छोड़ दी?”
अर्जुन मुस्कुराया था, पर अंदर से कांप रहा था।
तभी समीर ने धीरे से कहा, “अगर तूने छोड़ दी है, तो इसका मतलब तूने कुछ सोचा होगा। क्या करना चाहता है?”
और उसी शाम से सब शुरू हुआ — तीन दोस्तों की छोटी-सी टीम, एक पुराना लैपटॉप, और एक बड़ी ख्वाहिश: कुछ ऐसा बनाना जो लोगों की ज़िंदगी में फर्क लाए।
हर स्टार्टअप की कहानी के शुरुआती कुछ महीने सबसे कठिन होते हैं।
किराया देना, घर वालों के सवाल झेलना, और अंदर से बढ़ती असुरक्षा से लड़ना। अर्जुन के लिए भी ऐसा ही था।
वो दिन में बिज़नेस प्लान बनाता, रात में वेबसाइट कोड करता, और बीच-बीच में खुद से लड़ता कि क्या वो सही कर रहा है।
लेकिन जब भी सब कुछ टूटता हुआ लगता, समीर का संदेश आता —
“भाई, हिम्मत रख। तू वो कर रहा है जो हम सब सोचते हैं, पर करते नहीं।”
और रोहित हर हफ़्ते कुछ न कुछ लाकर रख देता — कभी चाय, कभी कॉफी, कभी बस साथ बैठने का बहाना।
कभी-कभी उनकी मौजूदगी ही अर्जुन के अंदर दोबारा विश्वास जगा देती।
कई लोग सोचते हैं कि स्टार्टअप की सफलता निवेश या तकनीक पर निर्भर करती है।
लेकिन असल में, यह उस मानसिक ताकत पर टिकी होती है जो दोस्तों से मिलती है।
जब अर्जुन ने अपने आइडिया को निवेशकों के सामने रखा और उसे ठुकरा दिया गया, वो टूट गया था।
“शायद मैं इसके लायक नहीं हूँ,” उसने कहा।
समीर ने बस एक बात कही, “भाई, ये सिर्फ़ ‘ना’ नहीं है, ये एक सिग्नल है कि हमे और बेहतर करना है।”
उसने उसे वापस उठाया, फीडबैक नोट्स पढ़े, नए तरीके सुझाए।
रोहित ने अपने ऑफिस के दोस्तों को वेबसाइट ट्राई करने को कहा — पहले ग्राहक वही बने।
धीरे-धीरे, अर्जुन ने महसूस किया कि दोस्त ही उसकी असली ‘टीम’ हैं — जो तनख्वाह नहीं लेते, पर दिल से साथ रहते हैं।
एक रात सर्वर क्रैश हो गया। वेबसाइट डाउन, सारे डेटा गायब।
अर्जुन का चेहरा सफ़ेद पड़ गया। सब कुछ खत्म सा लगा।
वो बैठ गया फर्श पर, चुपचाप।
समीर ने बिना कुछ कहे उसका कंधा थपथपाया, “चल, चाय बनाते हैं।”
“अभी?” अर्जुन ने कहा, गुस्से और थकान में डूबा हुआ।
“हाँ, अभी। जब तक दिमाग ठंडा नहीं होगा, तब तक कुछ ठीक नहीं होगा।”
दोनों बालकनी में बैठे थे — बारिश हो रही थी, और हवा में मिट्टी की खुशबू थी।
उसने कहा, “भाई, अगर ये सब खत्म हो गया तो?”
समीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “फिर से शुरू करेंगे। हमने सपना खरीदा नहीं है, बनाया है। दोबारा बना लेंगे।”
वो रात अर्जुन के लिए निर्णायक थी।
उसे एहसास हुआ कि जब दोस्त साथ होते हैं, तो असफलता डरावनी नहीं लगती।
कुछ हफ्तों बाद, समीर ने अपनी बचत का एक छोटा हिस्सा लाकर टेबल पर रखा।
“ये मेरा हिस्सा है,” उसने कहा।
“तू पागल है क्या?” अर्जुन ने कहा, “तू भी फंसेगा इसमें।”
“भाई, फंस नहीं रहा, साथ चल रहा हूँ।”
वो कोई बड़ा निवेश नहीं था, पर वो सबसे बड़ा ‘विश्वास’ था जो अर्जुन को मिला।
रोहित ने अपने डिज़ाइन स्किल्स लगाए, समीर ने मार्केटिंग संभाली, और अर्जुन ने डेवलपमेंट।
तीनों मिलकर रात-दिन काम करते रहे।
धीरे-धीरे वेबसाइट चलने लगी, यूज़र्स आने लगे।
पहली कमाई सिर्फ़ ₹700 थी, लेकिन अर्जुन की आँखों में जो चमक थी, वो लाखों की थी।
पहले महीने के अंत में, अर्जुन ने अपने दोस्तों को उसी छोटे से कमरे में बुलाया।
टेबल पर समोसे, चाय, और दीवार पर लिखा था — “पहली कमाई!”
तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा और हँस पड़े।
किसी ने टोस्ट उठाया नहीं, न किसी ने तस्वीर खींची।
बस उस पल में एक सुकून था — कि ये सपना अब अकेला नहीं था।
अर्जुन ने कहा, “तुम दोनों ना होते तो शायद ये दिन नहीं आता।”
समीर ने जवाब दिया, “भाई, अगर तू कोशिश ना करता, तो हमें साथ चलने का मौका ही नहीं मिलता।”
स्टार्टअप सिर्फ़ बिज़नेस नहीं होते — वो रिश्तों की परीक्षा भी होते हैं।
हर असफलता में ईगो की परतें उतरती हैं, और दोस्ती का असली चेहरा सामने आता है।
अर्जुन ने सीखा कि दोस्त वो नहीं जो सिर्फ़ सफलता में ताली बजाए,
बल्कि वो है जो असफलता में कंधा थामे।
जो कहे — “चल फिर से कोशिश करते हैं।”
दोस्त हर स्टार्टअप के ‘अनकहे को-फाउंडर’ होते हैं।
वे न मार्केटिंग में गिने जाते हैं, न इनवेस्टर लिस्ट में,
पर हर सफलता के पीछे उनका नाम लिखा होता है — बस अदृश्य स्याही में।
दो साल बीते।
अब वो छोटा-सा स्टार्टअप एक छोटी कंपनी बन गया था — दस लोग, एक ऑफिस, और ढेर सारी कहानियाँ।
अर्जुन ने एक दिन अपनी पुरानी डायरी निकाली, जिसमें लिखा था —
“अगर कभी थक जाऊं, तो दोस्तों को याद करना।”
वो मुस्कुराया।
बाहर रोहित और समीर अब भी वही थे — हँसी, मज़ाक, और नए आइडिया के साथ।
उन्होंने मिलकर न सिर्फ़ एक स्टार्टअप बनाया था, बल्कि एक ऐसा रिश्ता जो किसी भी अनुबंध से बड़ा था।
हर आदमी के जीवन में एक ऐसा मोड़ आता है,
जहाँ उसे खुद पर भरोसा कम और अपने दोस्तों के भरोसे पर ज़्यादा विश्वास करना पड़ता है।
अर्जुन की कहानी सिर्फ़ एक उद्यमी की नहीं,
बल्कि हर उस इंसान की कहानी है जो सपने देखने की हिम्मत करता है,
और उन दोस्तों की जो उसे गिरने नहीं देते।
दोस्त वही असली ‘सीड फंडिंग’ हैं —
जो पैसों से नहीं, पर विश्वास से निवेश करते हैं।
जो कहते हैं, “चल भाई, तू कर सकता है।”
और यही वाक्य हर बड़े सपने की शुरुआत होती है।

Leave a Reply