युगों पुरानी शिकायत

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युगों पुरानी शिकायत

बहुत पुरानी बात है, अब तो यह भी याद नहीं की कितनी सदी गुजर गई । याद करना चाहूं तब भी याद नहीं आता । बस इतना याद आता है की एक शिकायत है जो की जानी थी, परंतु की नही गई । क्या अब शिकायत कर दी जानी चाहिए ? शायद सही वक्त आ गया हो या शायद ना आया हो ।
जितनी महत्वपूर्ण शिकायत है उससे अधिक महत्वपूर्ण यह है की आखिर इतनी पुरानी शिकायत की क्यों नहीं गई ?
तो साहब मामला कुछ व्यस्तता का रहा है ।
जहां तक मुझे याद आता है बहुत बहुत पहले एक बार इरादा किया था परंतु फिर याद आया की अभी तो गुफाओं में रह रहे है कुछ अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए जहां सुरक्षित तरीके से रहा जा सके इसके लिए पुरुषार्थ की जरूरत थी लिहाजा शिकायत जैसी गैर वरीयता प्राप्त चीज को उस वक्त भुला ।
बदलते वक्त ने गुफाओं से निकाल कर छोटी छोटी झोंपड़ियों और छोटे छोटे समाज तक पहुंचा दिया लेकिन अभी भी सुरक्षा और छोटी छोटी जरूरतों की वरीयता के कारण एक बार फिर शिकायत को टाल दिया गया ।
कच्चे पक्के मकान बने, खेती शुरू हुई तब रोजमार्य की जरूरतों पूरी होने लगी और सुरक्षा भी कुछ हद तक सुनिश्चित हुई । परंतु अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी था , अभी भी बड़े खतरे मुंह बाए सामने खड़े थे । नजदीकी समुदाय के साथ होने वाली छुटपुट लड़ाईयां और बढ़ती जरूरतें सामने खड़ी थी । और पुरुषार्थ अपना सीना ताने तैयार था जवाब देने के लिए । ऐसा नहीं है की अब शिकायत की ही नहीं जा सकती थी, अब थोड़ा वक्त था लेकिन सोचा की अभी सफर बाकी है, शिकायत का क्या है फुरसत में करूंगा । पहले नजदीकी समुदाय से झगड़े खत्म किए जाएं ।
कुछ प्यार से और कुछ शक्ति से नजदीकी समुदाय को मिलाकर छोटे सुरक्षित राज्य का निर्माण कर लिए तब लगा की अब सब तरफ से निश्चिंतता है तो अब शिकायत कर देनी चाहिए । लेकिन अब नजदीकी छोटा राज्य समस्या खड़ी कर रहा था और जरूरत महसूस हुई की एक बड़े राज्य के गठन किया जाए बस इसीलिए एक बार फिर चुप लगा गया ।
बड़ा राज्य भी बन गया परंतु शिकायत का वक्त नहीं आया क्योंकि अब विदेशी आक्रांता के साथ बड़े राज्य की विशाल जनता के पालन पोषण से लेकर स्वस्थ और शिक्षा की समस्याएं सामने खड़ी दिखाई देने लगी ।
वक्त बदला और सत्ता का अत्याचारी रूप देखने को मिला, साथ ही समाज में व्यवस्था भी गड़बड़ाती दिखाई दी । सत्ता के अत्याचारों से लड़ने के लिए एक बार फिर मैं पूरे पुरुषार्थ के साथ कट मरने की तैयारी में जुट गया । शिकायत का वक्त अभी नहीं आया था ।
अभी फुरसत मिली ही थी , पंख पसारे ही थे उड़ान अभी शुरू ही की थी और सामने दिखाई देने लगी आजाद होने की जद्दोजहद । एक बार फिर पुरुषार्थ ने ललकारा और मैं पूरे जोश के साथ सड़क पर उतर आया आजादी की लड़ाई को जवामुखी बना देने के इरादे से । शिकायत को एक बार फिर भविष्य के लिए टाल दिया ।
आजाद हुए तो विकास, अंधविश्वासों से आगे निकलने विज्ञान को अपनाने के सिलसिले शुरू हो गए और शिकायत नहीं कर सका । हमेशा की तरह शिकायत एक बार फिर भविष्य में किया जाने वाला काम बन गई ।
विकास भी हुआ, विज्ञान भी बहुत आगे बढ़ा , अंधविश्वास भी कुछ हद तक दूर हुआ , आपसी नफरत और दंगे फसाद भी कम हुए बहुत कुछ हुआ , बहुत कुछ किया । पुरुषार्थ आगे आगे और आगे जाने के लिए लगातार प्रेरित करता रहा और मैं आगे आगे और आगे बढ़ता चला गया ।
फिर एक दिन खाली वक्त था तब सोचा की चलो अब तो बहुत कुछ कर लिए अब शिकायत की जाए । एक बार फिर पुरुषार्थ ने ललकारा और मैने चारों तरफ नजर दौड़ाई यह देखने के लिए की क्या कुछ और है जो अधिक वरीयता की अपेक्षा करता है या शिकायत कर दी जाए ।
चारों तरफ नजर दौड़ाई तब पता चला की जब मैं और मेरा पुरुषार्थ आगे आगे और आगे चलता जा रहा था ठीक इस वक्त मेरे खिलाफ साजिश की जा रही थी । एक पूरी प्रजाति मेरे खिलाफ लगातार जहर उगल रही थी, एक प्रजाति जिसने आजादी की लड़ाई से खुद को दूर रखा, एक प्रजाति जिसने अत्याचारी सत्ता की तरफ नजर उठा कर घूरना भी जरूरी नहीं समझा, एक प्रजाति जिसने लगभग कभी कुछ नहीं किया सिवाए खुद का काल्पनिक महिमामंडन करने के , उस प्रजाति ने मेरी व्यस्तता का फायदा उठाते हुए मेरे खिलाफ फर्जी शिकायतों का इतना बड़ा अंबार लगा दिया की मेरी एक छोटी सी शिकायत उसने दिखाई तक नहीं देने वाली ।
फर्जी शिकायतों का पहाड़ देखा कर एक बार फिर मेरा पुरुषार्थ मुझे ललकारने लगा । इस बार ललकार अलग किस्म की थी । अब ऐसी कोई लड़ाई सामने नहीं थी जिसके लिए छोटी सी शिकायत को भविष्य के लिए टाला जाए बल्कि अब लड़ाई थी शिकायतों के पहाड़ को फर्जी साबित करने की और इस लड़ाई के दौरान ही कहीं अपनी शिकायत को सामने रख देने की । अब शायद वक्त आ गया है की शिकायत को टाला नहीं जाए बल्कि एक प्रजाति की साजिश को नाकाम करते हुए अपनी शिकायत को रख दिया जाए । तो पेशे खिदमत है मेरी युगों पुरानी छोटी सी शिकायत ।
शिकायत बस इतनी सी है की ‘सीधी लड़की को गाय तो सीधे लड़के को गधा क्यों कहा जाता है ‘ यह घोर अत्याचार क्यों और और कब तक ।