यात्रा – साहित्यकार

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यात्रा – साहित्यकार

 

 

 

दिल्ली से घर वापसी की फ्लाइट पकड़ने से पहले जरूरी था की दिल्ली पहुंचा जाए और इसके लिए एकमात्र साधन ट्रेन ही थी । वैसे तो दिल्ली जाने के लिए दिन भर में पांच ट्रेन हैं , परंतु मेरी पसंदीदा ट्रेन है इंटरसिटी एक्सप्रेस , 5 घंटे का सफर और वो भी बिना रिजर्वेशन । हालाकि इस ट्रेन में रिजर्वेशन होता है और लोग करवाते भी है परंतु इस रिजर्वेशन का कोई मतलब ही नहीं क्योंकि रिजर्वेशन के डिब्बे में बिना रिजर्वेशन वाले ही मिलते है और इसमें किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होती अक्सर रिजर्व सीट वाले अपनी सीट किसी बिना रिजर्वेशन वाले बुजुर्ग या महिला को दे देते है । शायद छोटा सफर और अधिकतर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आए लोगों के कारण । हालांकि सफर के दौरान भीड़ ठीक ठाक होती है लेकिन 5 में से 2 घंटे का सफर तो खचाखच भरा रहता है ।

मैने भी अपनी सीट ली और कुछ खाने पीने का सामान लेकर सफर शुरू कर दिया । मेरे बगल वाली सीट पर एक बुजुर्ग और एक महिला थे और सामने वाली सीट पर एक मेरे जैसा ही आदमी था । बीच के किसी स्टेशन पर दो लड़कियां यानी कोई 18 से 20 की आयु वाली, सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई उनके साथ एक अधेड़ आदमी भी था । हालांकि डिब्बा खचाखच भरा हुआ नहीं था परंतु सीट खाली भी नहीं थी ।

सफर के दौरान मुझे आस पड़ोस के यात्रियों के साथ गप्पें लड़ाना ज्यादा पसंद नहीं है बल्कि मैं कुछ खाते पीते और पढ़ते हुए सफर करना पसंद करता हूं , लेकिन हर कोई ऐसा नहीं करता । मेरे पड़ोस में बैठे बुजुर्ग को अपने सहयात्रियों में बहुत दिलचस्पी थी शायद इसीलिए सबका परिचय हो ही गया । और परिचय के बाद मुझे दोनो लड़कियों में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी पैदा हो गई क्योंकि दोनो मेरी जानकार थी ।

दोनो लड़कियों के साथ जो अधेड़ व्यक्ति था वो उनका  पिता था । अगले पांच घंटे दोनो लड़कियों ने आराम से बैठ कर गुजारे और अधेड़ उनके पास ही खड़ा रहा ।

दिल्ली स्टेशन पर पहुंचने के बाद हम सब लगभग एक साथ ही स्टेशन पर उतरे और मैं उसी स्टेशन पर रुक कर सोचने लगा कि आगे एयरपोर्ट तक कैसे जाया जाए और दोनो लड़किया अपने पिता के साथ एस्क्लेटर पर चढ़ गई ।

मैं भी इधर उधर देखते हुए आगे का सोचने लगा तभी एस्कलेटर से आई तेज आवाज ने मुझे पलटने को मजबूर कर दिया । आधे रास्ते में किसी वजह से एस्क्लैटर झटके के साथ रुक गया था शायद किसी ने इमरजेंसी बटन दबा दिया था । झटका लगने से अधेड़ गिर गया और उसके हाथ के दोनो बैग भी लुढ़कते हुए कुछ नीचे आ गए । या शायद अधेड़ व्यक्ति के गिरने के कारण ही किसी ने एस्कलेटर बंद किया हो कहना मुश्किल है क्योंकि मैंने देखा नहीं बस आवाज सुनकर ही पलटा था ।

एस्कलेटर बंद हो गया और अभी दोनो लड़कियां और उनका पिता नीचे ही थे लिहाजा दोनो लड़कियां वापिस नीचे आकर लिफ्ट से ऊपर जाने की लाइन में लग गई और अधेड़ व्यक्ति जैसे तैसे उठ कर सामान इकठ्ठा करते हुए एक एक बैग ऊपर ले जाने लगा ।

हालांकि नजारा कुछ नया नहीं था स्टेशन पर हर तरफ लड़किया मेकअप से भरा हल्का फुल्का हैंडबैग झुलाते घूमती दिख जाती है और उनके साथ के आदमी बड़े बड़े बैग कुली की तरह ढोते हुए दिख जायेंगे ।

परंतु यह वाली लड़की विशेष थी , मेरी जानकार थी , आप सब की भी जानकार । पहचाना ?

नहीं पहचाना चलो कोई बात नहीं में याद दिलवा देता हूं ।

दोनो में से एक लड़की साहित्यकार थी और दूसरी इनफ्लूंसर । साहित्यकार अरे वही जो लगभग हर रोज वृदाश्रम के खिलाफ और मा बाप का ख्याल रखने वाली नसीहत आदमियों को देती रहती मिल जाती है ।

 

नोट – हर शिकारी एक महान लीजेंड है लेकिन सिर्फ तब तक जब तक की शेर लिखना नहीं सिख लेता ।