गुलाब – एक मर्डर मिस्ट्री
आज़ाद परिंदा
विवाद
गुलाब की शादी जिसके साथ हुई वो बहन पागल तो नहीं परंतु दिमागी तौर पर थोड़ी कम विकसित अवश्य है और गुलाब एक पूरी तरह स्वस्थ और समझदार युवक यह अपने आप में आश्चर्य का विषय हो सकता है परंतु सोदामणि के लिए इस तरह के आश्चर्य पैदा कर लेना कोई नई बात नहीं है । सोदामणि इस तरह के आश्चर्य किसी न किसी जोडतोड़ से करती ही रहती है । सोडामणि का एक लड़का पोलियो के कारण अपाहिज हो गया था । वह चल फिर तो सकता है परंतु बिना किसी सहारे के नहीं और सोदामणि उसके लिए एक खूबसूरत दुल्हन की व्यवस्था करने में सफल रही है तो ऐसे में अल्पविकसित दिमाग को छिपाकर गुलाब की तलाश कर लेना कौनसा आश्चर्य है । और वैसे भी उस ज़माने में मोबाइल नहीं हुआ करते थे की लड़का लड़की हर वक्त बात कर रहे हो और छिपाया हुआ राज खुल सके ।
मुझे पूरा यकीन है कि यदि सोदामणि चाहती तो अपनी हैसियत के हिसाब से लड़का तलाश कर सकती थी , परंतु उसने गरीब घर का लड़का तलाश किया यकीनन दूर तक सोच कर किया होगा । उस वक्त हम इतना दूर तक नहीं सोच सकते थे परंतु सोदामणि तो हम बच्चों से बहुत ऊपर की चीज थी । और इसका सबूत बहुत जल्द मिल भी गया । अल्पविकसित दिमाग बेशक छिपाकर शादी कर दी गई परंतु इस वास्तविकता को आखिर कितने दिनों तक छिपाया जा सकता था ? चंद रोज ही गुजरे थे को सोदामणि ने मेरे पिता को किसी विचार विमर्श के लिए बुलवा लिया । किस तरह का विचार विमर्श यह समझने में मुझे तकरीबन 10 साल लगे परंतु मेरी नजर में अच्छी बात सिर्फ इतनी ही है की मेरे पिता ने सोदामणि के साथ खड़े होने से इंकार कर दिया । चंद रोज में ही सोदामणि अपनी लड़की को अपने साथ ले आई और गुलाब अपने परिवार के साथ जेल और फिर कोर्ट के चक्कर लगाने में व्यस्त हो गया । उसे जेल और कोर्ट से छुटकारा तब मिला जब उसने सोदामणि के सामने पूरी तरह आत्मसमर्पण कर दिया और अपने माता पिता को छोड़ा कर सोदामणि के शहर में रहने आ गया । सोदामणी गुलाब को उसके माता पिता से तो अलग करवा लाई परंतु उसने गुलाब को अपने पास नहीं रखा बल्कि किराए के मकान में पहुंचा दिया ।
मुझे सालों बाद , गुलाब की मृत्यु के बाद पता चला की इस चक्कर में गुलाब के माता पिता को जो थोड़ी बहुत खेती योग्य जमीन थी वो बिक गई और वर्कशॉप भी लगभग खत्म हो गई , उनमे जवाब देने का सामर्थ्य था ही नहीं उनके पास समर्पण के अलावा अन्य कोई विकल्प मौजूद ही नहीं था । शायद इसी लंबी सोच के तहत ही सोदामणी ने मामूली हैसियत का लड़का चुना था ।
गुलाब अपनी पत्नी के साथ सोदामणि के शहर में ही रह रहा था परंतु वो सोदामणि पर निर्भर नहीं था और ना ही उसने पूरी तरह सोदामणि के सामने समर्पण किया । गुलाब ने अब हर वो काम करना शुरू कर दिए जो सोदामणि को परेशान कर सकता था । संभव है कुछ लोग गुलाब को गलत कहें परंतु मुझे लगता है की गुलाब सोदामणि के सामने पूरी तरह तन कर खड़ा था और वो बदला ले रहा था । एक तरह से गुलाब ने सोदामणि की जिंदगी नरक में तब्दील कर दी ।
गुलाब अब शराब पीने लगा , और अक्सर गुलाब और उसकी पत्नी के बीच झगड़ा भी होता था । हालांकि लोग कहते है की गुलाब अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता था परंतु मेरा कहना है की गुलाब के पास लड़ने के अपने हथियार थे और वो उन हथियारों का उचित इस्तेमाल करता था । हालाकि मुझे ऐसे सबूत भी मिले जो कहते थे कि गुलाब भी पीटता था परंतु यदि इसे छोड़ भी दें तब भी गुलाब गलत नहीं कर रहा था वो सिर्फ विरोध कर रहा था बस उसका तरीका अपना था और हथियार अपने थे । अगर सोदामणि के हथियार जायज कहे जा सकते है तो गुलाब के हथियार भी नाजायज नहीं कहे जा सकते ।
फिर अचानक एक दिन रात में सोते हुए ही गुलाब दुनिया छोड़ गया । मेरे घर पर उसकी मृत्यु की सूचना मिली तो मम्मी अंतिम संस्कार में उपस्थिति दर्ज कराने पहुंच गई । वहां एक किस्म की जल्दबाजी के साथ अंतिम संस्कार हुआ यहां तक कि गुलाब के माता पिता का इंतजार अगर जरूरी नहीं होता तो शायद मम्मी भी अंतिम संस्कार के बाद ही पहुंच पाती। सब कुछ तैयार करके रखा हुआ था और जैसे ही पता चला की गुलाब के माता पिता शहर में दाखिल हो चुके है , अर्थी उठा कर श्मशान की तरफ रवाना करवा दी गई । गुलाब के माता पिता ने गुलाब के अंतिम दर्शन भी श्मशान में ही किए ।
चिता जला देने की जल्दबाजी काफी शंकाएं पैदा करती है परंतु मैं वहां मोजूद नहीं था इसीलिए जो पता चला वो सब सुनी सुनाई बातें ही है । कहने वालो का कहना है की गुलाब का पूरा शरीर जख्मी था और उसके गले पर भी निशान थे ।
कुछ लोग कहते है की जिस बेड पर गुलाब मृत पाया गया उसके पास ही एक घोंटना (चटनी बनाने वाला लकड़ी का मोटा सा डंडा) मोजूद था और शराब की बोतल भी (खाली या भरी हुई यह पता नहीं) । वैसे तो और भी बहुत कुछ है जो शंका पैदा करता ही परंतु जिस तेजी से चिता तक पहुंचाया गया और अग्नि आईसमर्पित किया गया वो अवश्य ही दाल में काले की तरफ इशारा करता है ।
यहां तक कि चिता जलाने के तीसरे दिन ही सभी कार्यक्रम जैसे की फूल चुनना और पानी में बहाना, अंतिम पूजा पाठ, दान दक्षिणा आदि सम्पूर्ण कर लिए गए । चौथे दिन के लिए कुछ बचा ही नहीं ।
शायद गुलाब के साथ कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए था, परंतु शायद रहस्य खोलने में किसी की कोई दिलचस्पी भी नहीं थी ।