दब्बू
आजाद परिंदा
मेरे अधिकांश मित्र मुझे दब्बू कहते है , क्यों ?
पता नहीं या शायद पता है ।
मुझे बचपन से हथियारों का शौक रहा है शायद इसीलिए जब मैने कमाना शुरू किया तब सबसे पहला काम किया रिवॉल्वर का लाइसेंस हासिल करने का । कुछ भाग दौड़ कुछ जोड़ तोड़ और काफी सारी मेहनत नतीजा तकरीबन साल भर बाद ही मेरे पास रिवॉल्वर और राइफल दोनो आ गए ।
काफी साल गुजर गए, अब तक समझ नहीं आया की मेरे लिए हथियारों का इस्तेमाल क्या है । हमेशा अलमारी में पड़े रहते है । पूरी जिंदगी या कहें की पूरी जवानी गुजर गई और मैं सिर्फ एक अवसर याद कर पा रहा हूं जब मेरे पास रिवॉल्वर होनी चाहिए थी, परंतु नहीं थी ।
बहुत साल पहले की बात है एक जानकार से तू तू मैं मैं हो गई । दोपहर गुजर गई शाम का अंधेरा शुरू हो चुका था की मोबाइल पर उसी जानकार की घंटी बजने लगी । उस वक्त में बाजार में एक मित्र के साथ था । फोन उठाया तो जानकार ने धमकी के लहजे में चुनौती दे डाली ‘दम है तो आ जा फलानी जगह पर’ । कायदे की बात तो यह थी की मैं समझदारी से काम लेता और जाता ही नहीं या अगर जाना था तो घर से रिवॉल्वर ले कर जाता । परंतु शायद उस वक्त मेरे दिमाग ने काम नहीं किया या शायद जानकार को कम आंक लिया । मैं और मित्र बताए ठिकाने पर पहुंच गए निहत्थे । सामने मोजूद थे तकरीबन 5 या 6 लोग और 3 या 4 राइफल के साथ । एक दो के हाथ खाली थे परंतु संभव है की उनके पास भी छोटे हथियार रहे हो । अब क्या हो सकता था अब तो आमने सामने पहुंच गए थे । 5 या 6 हथियार बंद और शराब पिए लोगों के सामने दो निहत्थे । करने लायक कुछ नहीं था या शायद था । पैर पकड़ कर माफी मांगी जा सकती थी । कौन जाने शायद जानकार माफ कर भी देता । परंतु जब किस्मत फूटी हो तो कोई क्या कर सकता है । मैने आगे बढ़ कर जानकार के मुंह पर दो तमाचे जड़ दिए । हो सकता है तमाचे ज्यादा जोर से लग गए हो या संभव है शराब का असर हो जानकार के हाथ से राइफल गिर गई और जानकार भी जमीन पर गिर गया । और बाकी लोग ? वो सब तो शायद फ्री की शराब पीने के लिए इकठ्ठा हुए होंगे और नशे में जानकार को हवा भरते रहे होंगे ।
जैसे ही जानकार गिरा बाकी सब शराबी शोर शराबा करने लगे और इसी शोर शराबे में एक या दो हवाई फायर किए और फिर वहां से भाग गए । कहना मुश्किल है की उस दिन वास्तव में क्या हुआ आखिर सामने शराबी ही तो थे । शायद किस्मत साथ दे रही थी या शायद शराबियों की उम्मीद ही नहीं रही होगी की दो निहत्थे उनकी पिटाई करने लगेंगे । उसके बाद कई साल गुजर गए ना तो जानकार कभी सामने आया और ना ही किसी अन्य ने सामने खड़े होने की कोशिश ही की ।
खैर चाहे जो हो उस दिन पहली बार लगा की रिवॉल्वर पास होनी चाहिए थी । परंतु आज सोचता हूं तो लगता है की उस दिन रिवॉल्वर ना होने का जो असर हुआ वो शायद रिवॉल्वर होने का नहीं होना था ।
उस दिन के बाद (वैसे पहले भी) से मैने छोटी छोटी बातों पर जवाब देना बंद कर दिया । एक दिन सड़क पर एक्सीडेंट हो गया और मैने बजाए लड़ने के सेटल कर लिया । एक दिन ऑटो वाला भी नाजायज पैसे मांग बैठा तो मैंने दे दिए । इसी तरह ना जाने कितनी घटनाएं हर साल होती चली गई जिनका मैने जवाब देना या जवाब में लड़ाई झगड़ा करना उचित नहीं समझा । शायद इसीलिए मित्र मंडली मुझे दब्बू कहती है ।
एक मित्र है जो मुझे दब्बू कहते है बल्कि उसी मित्र ने मुझे दब्बू नाम दिया है । एक दिन वही मित्र अपनी पत्नी के साथ कहीं जा रहे थे ऑटो से । ऑटो वाले को बड़ी सवारी मिल रही थी लिहाजा उसने मित्र को उतार दिया और बड़ी सवारी को बैठा लिया । ऑटो वाला गलत है परंतु पैसे की महिमा ही अलग है । भला कौन इंकार कर सका है आज तक आती हुई लक्ष्मी को ? इसीलिए मैं ऑटो वाले को बिलकुल ही गलत नहीं मानता ।
संभव है कुछ तू तू मैं मैं भी हुई हो परंतु मित्र ने ऑटो वाले की कंप्लेन पुलिस में करवाई अपनी पत्नी के द्वारा । महिला यात्री के साथ अभद्र व्यवहार (सेक्सुअल ह्रैशमेंट आदि) की कंप्लेन । मामूली झगड़ा था इसमें महिला यात्री के साथ अभद्र व्यवहार कहां से आ गया ? मित्र बहुत बहादुर है ।
मैं दब्बू हूं क्योंकि मैंने आज तक किसी ऑटो वाले की कंप्लेन नहीं की आज तक और किसी महिला की पीठ पीछे छिपकर तो हरगिज नहीं करवाई ।
शायद मैं कभी बहादुर नहीं बन सकूंगा दब्बू पैदा हुआ था और दब्बू ही मर जाऊंगा ।