अपने अपने हथियार

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अपने अपने हथियार

आजाद परिंदा

अब गुलाब इस दुनिया में नहीं है और शायद उसकी यादें भी नहीं है । बस कभी कभार आंगन में खिले लाल गुलाब उस गुलाब की याद दिलवा देते हैं ।

वैसे तो गुलाब के साथ मेरी नजदीकी रिश्तेदारी थी , परंतु मुलाकात जहां तक याद कर पाता हूं सिर्फ एक मुलाकात ही याद आती है और वो भी उस वक्त जब गुलाब की शादी थी और वो एक छोटी सी स्टेज पर बैठा था । सही मायनों में उस मुलाकात को भी मुलाकात नहीं कहा जा सकता क्योंकि एक तो मेरी आयु बचपन की थी और फिर मुलाकात भी बहुत छोटी सी थी ।

गुलाब वैसे तो मेरी बहन का पति था परंतु वो मेरी मौसी सोदामणि का जमाई था और सोदामणी का आर्थिक स्टेटस हमसे काफी ऊपर था इसीलिए आना जाना कम ही था ।

गुलाब से कभी मुलाकात नहीं हुई परंतु उसका परिचय जब भी मिला तो एक शराबी के रूप में ही मिला जो अपनी पत्नी को अक्सर पीटता रहता था । एक शराबी के रूप में जिसे पहचानते हुए बचपन गुजरा उसकी मृत्यु की खबर कोई विशेष उत्सुकता जगा पाती ऐसा संभव नहीं था । परंतु जाना तो जरूरी था ही । अंतिम संस्कार से पूर्व एवम बाद में लोगों की जुबानी जो सुना उतना ही काफी था उत्सुकता जगाने के लिए और फिर वहां गुलाब के मां बाप और अन्य भाई आदि भी थे । मृत्यु तो अवशयम्बवी है उसे बदला नहीं जा सकता परंतु उत्सुकता एक दिन मुझे गुलाब के गांव में ले गई ।

गांव से गुलाब के बारे में मुझे जितना पता चला वो सिर्फ इस बात की तरफ इशारा करता है की गुलाब एक बहुत ही खूबसूरत और समझदार व्यक्ति था । नई जानकारी उस जानकारी से एकदम उलट थी जो आज तक सुनते आया था ।

जिस बहन से गुलाब की शादी हुई वो दिमागी तौर पर थोड़ी सी कम विकसित थी । बचपन में कभी सोचा नहीं परंतु एक उमर के बाद समझ में आ गया की सोदामणि अपने आप में एक अजूबा थी और उस अजूबे के लिए कुछ भी असंभव नहीं था ।

आज जब सोचता हूं तो लगता है की गुलाब ना तो शराबी था और ना ही वो अपनी पत्नी को पीटता था वो तो बस अपने हथियार इस्तेमाल कर रहा था । हर व्यक्ति के अपने अपने हथियार है और वो उन्ही हथियारों के दम पर अपनी लड़ाई लड़ता है । बस गुलाब की कहानी भी इतनी सी ही है ।

सोदामणि ने अपनी कम विकसित बुद्धि वाली लड़की के लिए गुलाब जैसे खूबसूरत और शरीफ लड़के को शादी के लिए कैसे राजी किया यह तो एक रहस्य ही है परंतु कैसे गुलाब को मजबूर किए यह तो खुला खेल ही रहा है ।

गुलाब गरीब घर से तो नहीं परंतु अमीर घर से भी नहीं था । उसकी शादी जिस वक्त हुई वो अपने भाइयों के साथ ही काम धंधे में लग चुका था । शादी के एक सप्ताह बाद ही सोदामणि ने गुलाब को अपने शहर में आकर रहने और वहीं कोई काम करने के लिए कह दिया । नहीं मानने की स्थिति में सोदामणि अपनी लड़की को ले आई और पुलिस की मदद से गुलाब के मां बाप , भाई और भाभियों को जेल यात्रा भी करवाई । गुलाब की मृत्यु पर जब मेरी उसकी मां से मुलाकात हुई तब पता चला की गुलाब के परिवार को जमानत लेने के लिए जो खर्च करना पड़ा वो उनकी वर्कशॉप बेच कर ही चुकाया गया था । सालों तक मुकदमेबाजी झेलने की क्षमता उनमें थी ही नहीं लिहाजा गुलाब ने आत्मसमर्पण कर दिया और अपने परिवार को छोड़ कर चला आया ।

बेशक वो शराबी बन गया था परंतु वो मजबूर नहीं था । उसके पास अपने हथियार थे और उसने सोदामणि और उसकी लड़की दोनो को पूरी जिंदगी परेशान किए रखा । शायद वो बदला ले रहा था या शायद इस तरह कहा जाए की सोदामणि और उसकी लड़की ने अपने हथियार इस्तेमाल किए और बदले में गुलाब अपने हथियारों के साथ मैदान में उतर आया और उसने सोदामणि को जिंदगी को नरक बना दिया ।

तो क्या गुलाब गलत कर रहा था ?

मेरे विचार से तो नहीं उसने वही किया जो उसके सामर्थ्य में था । उसे सोदामणि के द्वारा गुलाम बना लिया गया था परंतु उसकी आत्मा जिंदा थी और आखिरी सांस तक वो गुलामी का विरोध करता रहा ।