तबेले की बला बंदर के सिर
वैसे तो यह एक कहावत है और बहुत पुरानी है । सही बात तो यह है की कहावत होती ही पुरानी है , किसी नई कहावत का इजाद हाल फिलहाल हुआ हो तो मुझे नहीं पता । तो कहावत को पुरानी कहने से मेरा अर्थ सिर्फ इतना है की इस कहावत को मैने बहुत पहले सुना था फिर बीच में भूल गया , कल अचानक याद आ गई जब दोस्तों के साथ गप शप में व्यस्त था ।
किसी मसले पर एक मित्र प्रकाश डाल रहे थे फिर अचानक कुछ देर खामोश हो गए और जब दुबारा बोले तो वाक्य में एक गाली का प्रयोग भी किया । कोई विशेष मुद्दा नहीं है परंतु मित्र ने गाली को जस्टिफाई करते हुए कहा कि मैं इस बात को इससे शालीन तरीके से नहीं कह सकता ।
कोई विशेष बात नहीं परंतु बातों का दौर एक नई दिशा में मुड़ने के लिए इतना ही पर्याप्त था । एक अन्य मित्र मोरल अध्याय लेकर शुरू हो गए और बताने लगे की अधिकांश आदमी बिना वजह गाली का प्रयोग करते है । अन्याय का विरोध करना तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है लिहाजा हमने भी विरोध दर्ज करवाते हुए कह दिया की अधिकांश लोग बिना वजह गाली नहीं देते और जरूरत पड़ने पर तो गाली देना जरूरी है । जैसे की हल्के फुल्के रोड ऐक्सिडेंट के वक्त थोड़ी बहुत तेज आवाज करना वक्त की जरूरत रहती है और उस तेज आवाज में गाली भी अक्सर शामिल हो जाती है परंतु इसे बिना वजह तो नहीं कहा जा सकता ।
मित्र भी अड़े हुए थे की अधिकांश आदमी बिना वजह गाली देते है । सिर्फ अपने ज्ञान की वृद्धि के लिए हमने पूछ लिए की आप ऐसे कितने लोगो को जानते है जो बिना वजह हर बात पर गाली देते है । मित्र अपने जीवन में 2 या 3 लोगों के बारे में बता पाए जो बिना वजह गाली देते है और उनकी जानकारी ज्यादा नहीं तो हजार लोगों तक तो है ही । मतलब की मित्र खुद सहमत है की लगभग 0.2 % लोग गाली देते है बिना वजह और इसे वो अधिकांश कहते है । अधिक कुरेदने पर मित्र ने बताया की फलाने हॉस्टल की लड़किया बिना वजह गाली दिए जाती है ।
ऐसा नहीं है की लड़कियां गाली देकर कुछ गलत करती है । पिछले कई दशकों से मीडिया और लोग उनको यही सीखा रहे है की मॉडर्न होना है तो सिगरेट का दुआ उड़ते हुए गालियां देना सीखो । दे रही है गालियां तो देती रहें अब इसे हमे क्या ?
अरे भाई लड़किया गाली देती है तो देती रहें परंतु उसका इल्जाम आदमी पर लगाते हो यह तो कुछ ऐसा हो गया की तबेले की बला बंदर के सिर ।