कर्म फल

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कर्म फल

पता नहीं ऐसा कब हुआ, परंतु हो गया , क्यों हुआ कैसे हुआ इतना सोचने का अवकाश ही कहां है मेरे पास । हकीकत बस इतनी सी है की मेरी मित्र मंडली में जितने मेरी अपनी आयु के लोग है उससे कहीं अधिक मुझसे काफी अधिक उम्र वाले है और हां काफी कम उमर वाले भी बहुत है । मेरे एक मित्र तो रिटायर होने के बाद अपना वक्त अच्छे से गुजर कर मृत्यु का वरण भी कर चुके और यहां अभी रिटायरमेंट की आयु ही काफी दूर दिखाई देती है ।
ऐसे ही एक मित्र है जो शायद 5 या 6 साल पहले रिटायर हुए थे । बीच के सालों में परिवार के साथ वक्त गुजारने के चक्कर में संपर्क तोड़ बैठे थे । कल मिल गए यूं ही इधर उधर घूमते हुए ।
जब मिल गए तो कुछ समय एक साथ वक्त गुजारा । उन्होंने मुझे निराश ही किया । मुझे उम्मीद थी कि इतने सालों बाद मिले है तो कुछ बिना मतलब की गप शप के बाद विदा होने , परंतु ऐसा हो न सका । जो वक्त साथ गुजारा उसमे साहब ने अपने घर परिवार के द्वारा व्यवहार पर ही बातचीत चलती रही । साहब को शिकायत है कि उनका लड़का उनकी देखभाल अच्छे से नहीं करता ।
अब मैं इसने भला क्या कह सकता था । शायद मेरे बोलने की गुंजाइश ही नहीं थी । अवसोस ऐसा भी हो ना सका ।
आज जब सोचने लगता हूं तब लगता है की शायद मेरी चुप ना रह सकने की आदत ही होगी जिसके कारण मेरी मित्र मंडली में मेरे हमउम्र अपेक्षाकृत कम है ।
जब साहब काफी देर तक लड़के पर आक्षेप लगाते रहे तो आखिर मेरी जुबान फिसल गई और मैने भी कह दिया की साहब कर्म फल है यही भुगत कर जाना है इसके अलावा अन्य कोई स्वर्ग नरक या अगला जन्म हिसाब किताब के लिए नहीं है ।
साहब ने मुझे ऐसे तबियत से घूर कर देखा तो एक बार तो इच्छा हुई कि यही पैंट गीली कर दूं फिर दिल को सम्हाला और दिमाग में साहब की सब कार गुजारियों को ताजा किया और तसल्ली हासिल की ।
साहब भी शायद मूड में थे जब मुझे संभालते हुए देखा तो पूछ ही लिया की बताओं तो जरा मेरे कौनसे कर्मो की बात कर रहे हो ।
अब एक बार फिर दिल में हुद हुद शुरू हुई और मैं सोचने लगा कि साहब की कौनसी कारगुजारी का जिक्र किया जाए । बहुत सारी घटनाएं फुदक फुदक कर सामने आई और आखिर में मैने सिर्फ हल्की मुस्कुराहट से ही साहब के सवाल का जवाब देना उचित समझा ।
हल्की मुस्कुराहट ने शायद उनकी यादाश्त को ताजा कर दिया और उन्होंने सहमति से गर्दन हिलाते हुए आंखें नीचे झुका ली ।  थोड़ी देर बाद मैं एक बार फिर बात का सिरा अपने हाथ में लेते हुए पूछ लिया या यूं कहें कि राय दे दी ।
आप अपने मान , अभिमान , गौरव , आदि के पास जाकर रहे अधिक उचित होगा । एक नजर मेरी तरफ देखकर उन्होंने इतने जोर का ठहाका लगाया यूं लगा जैसे पगला गए हो ।
जोरदार ठहाके ने जैसे उनके मान, अभिमान, गौरव और ना जाने क्या क्या , यानी की उनकी लड़की की काल्पनिक महानता को हवा में उड़ाने का निश्चय कर लिया हो ।
किसी के कर्मफल में दखल देना उचित ना जानकर मैने भी हाथ जोड़े और घर की तरफ रवाना हो गया ।