कड़क जांच अधिकारी
वैसे तो मेरा थाना कोई बहुत बड़ा नहीं और यहां वारदात भी लगभग नहीं के बराबर ही होती है । दरअसल मेरे इलाके में अधिकांश साहित्यकार रहते है और लड़ना झगड़ना हो तो कविता कहानी को ही हथियार बनाते है । कुछ आम लोग भी है जब वो कविता कहानियों की बमबारी से परेशान हो जाते है तब कुछ वारदात होती है ।
लिहाजा मैं मेरे थाने में सारा दिन मक्खियां मरता रहता हूं । ऐसा कोई अवसर मिलता ही नहीं जहां मुझे इन्वेस्टिगेशन में अपना दम खम दिखाने का अवसर मिले, मीडिया मेरे आगे पीछे माइक लेकर घूमे, अफसर मुझ पर जल्दी केस हल करने का प्रेशर बनाए । लगता है उम्र इसी आस में गुजर जायेगी की कोई बड़ी वारदात हो ।
श्रद्धा कांड वैसे तो एक अपराध मात्र है परंतु लेखक लोग तो अपने प्रोपेगंडा फैलाने के लिए बहाने तलाश करते ही है लिहाजा जब से श्रद्धा कांड हुआ है लेखक लोग मुद्दे को ले उड़े है । आजकल माहोल गरम है और छोटी मोटी वारदात होने की पूरी उम्मीद है । इसीलिए टेलीफोन 24 घंटे तैयार रखने के आदेश दे दिए है । बड़ा ना सही छोटा मोटा कांड ही सही ।
कहते है की 12 साल बाद तो कुत्ते के भी दिन फिरते है और में तो फिर अपने इलाके का इंचार्ज हूं । फोन की पहली घंटी सुनते ही झपट कर फोन उठाया और खबर सुनकर जैसे दिल बाग बाग हो गया । तुरंत घटनास्थल की तरफ गोली की रफ्तार से निकल लिए ।
नदी किनारे हवलदार रामसिंह एक टुकड़े टुकड़े हुई लाश के पास खड़ा था । लाश के 17 टुकड़े उसी ने ही बरामद किए थे । तो जनाब मेरे इलाके में भी श्रद्धा कांड का जुड़वा हो गया था अब मेरी धाक जमाना तय था । मीडिया मुझ पर टूट पड़ने वाला था , अधिकारी लोग बार बार प्रेशर बनाने वाले थे , नेशनल टीवी पर मुझे जांच की रिपोर्ट देते बार बार सुबह से शाम तक दिखाया जाना था । मेरी तो हर मुराद पूरी होने वाली थी ।
मैने भी तुरंत केस हल करके दिखाना था लिहाजा खाना पीना भूल कर जांच पड़ताल में लग गया और 2 घंटे में ही अपराधी मेरे सामने था । बस सबूत जुटाने बाकी थे ।
सबूत जुटाने कोई मुश्किल काम नहीं था फिर भी अधिक जरूरी काम था हवा बनाना । अधिकारियों को पता चलना चाहिए की कैसे मैने एक मुश्किल कैसे को अपनी सूझ बुझ से हल कर दिखाया। बस इसी इरादे से मोहल्ले में सबसे पूछताछ करना जरूरी था । आखिर साहित्यकारों का मोहल्ला है जैसे श्रद्धा कांड को ले उड़ा वैसे इस इस जुड़वा कांड को भी ले उड़ना था बस पता लगने की देर थी । बस समझ लीजिए कि पूछताछ का तो बहाना ही था असल मकसद था साहित्यकारों को जुड़वा कांड की खबर करना ।
शाम होते होते सब कसबल ढीले हो गए सब साहित्यकारों को पकड़ पकड़ कर खबर सुनी फिर भी सब जैसे सोते रहे किसी ने दिलचस्बी ही नहीं दिखाई । किसी ने यह कहते हुए किनारा कर लिया की मरने और मरने वाले दोनो हिंदू है और किसी ने कह दिया की मरने वाला आदमी है । यूं लगा जैसे कुत्ते के दिन फिरकर भी नहीं फिरे।
हालाकि सारे कसबल ढीले हो चुके थे परंतु एक आखिरी उम्मीद की एक छोटी सी किरण अभी जिंदा थी । आखिरी किरण यानी की मोहल्ले की एक बहुत विद्वान लेखिका । वैसे अंदर की बात है किसी से कहना मत , दरअसल वो एक असफल लेखिका थी अरे यार उसे लिखना आता ही नहीं था । उसका लिखना कुछ ऐसा था जैसे की आलू की सब्जी बनाने की कोशिश करे और गुलाब जामुन बन जाए । अब दिन भर सुबह से अगली सुबह तक पुरुषों को नीचा दिखाने के लिए कुछ भी अनाप शनाप लिखती रहती है और चमचे तालिया बजाते रहते हैं । खैर अपुन को क्या अपुन को तो वो आखिरी उम्मीद है बस इसीलिए सबसे विद्वान लेखिका है । हा नी तो ।बिना वक्त गवाए पहुंच गए उन विद्वान लेखिका की शरण में । वही अपनी पुरानी पुलिसिया अकड़ , यह क्या विद्वान लेखिका ने घास भी नहीं डाली , आखिर हाथ जोड़े तब कुछ हलचल हुई ।
तेरे द्वार खड़ा एक जोगी ….. उस महान लेखिका ने जोगी की महत्वाकांक्षा को पहचाना और निराश भी नहीं किया । तुरंत जांच की फाइल लेकर अच्छे से पढ़ी और फाड़ कर फेंक दी । मेरे अंदर का कड़क जांच अधिकारी बस जागते जागते ही बचा । तुरंत एक नई जांच फाइल बनाई गई ।
पुरानी जांच जिसके मुताबिक पत्नी प्रेमी के साथ ऐश कर रही थी की तभी पति ऊपर से आ गया । चलो आ गया तो कोई खास बात नहीं चुपचाप कहीं कोने में पड़ा रहता । परंतु यह जो खुद्दारी नाम का कीड़ा है ना, बस मरना पड़ा साले को । अरे मार डाला तो कौनसी बड़ी बात हो गई अपनी लाश भी उठा कर नहीं ले गया और काट कर नदी में फेंकनी पड़ी । ना खुद्दारी होती ना मरना पड़ता ना लाश छिपाने के लिए काटनी पड़ती ।
बात सही थी इसीलिए कड़क जांच अधिकारी की समझ में आ गई थी बस फिर क्या था तुरंत ही एक शराबी, जुआरी, वेश्यागंमी, मारपीट करने वाले , दहेज मांगने वाले दरिंदे के खिलाफ एक तबला नारी ….. ओह सॉरी जुबान है फिसल जाती है कभी कभी तो क्या कह रहा था मैं , हा एक अबला नारी के संघर्ष गाथा की मोटी फाइल सबूतों के साथ तैयार की देर रात तक । अभी वापिस लौट कर सोया ही था की घंटी पे घंटी बजने लगी । पता था अधिकारी और मीडिया और आम पब्लिक बधाई देने के लिए घंटी मार रहे है । और हा साहित्यकार भी मेरी बात न सुनने के लिए क्षमा प्रार्थी थे ।
सब पता है इस कड़क जांच अधिकारी को बस यह वक्त अपना है और अपुन पूरा आनंद उठाने के मूड में । कुछ दिन अभी फाइल दबा कर बैठेंगे फिर धरपकड़ करके शाबाशी लेंगे और तब तक जय हो प्रोपेगंडा मंडली …. ओह सॉरी सॉरी साहित्यकार मंडली की । जुबान है फिसल जाती है कभी कभी ।
नोट : ध्यान दे इसका हाल में मिले 17 टुकड़ों वाली लाश से दूर का, मतलब की बहुत दूर का संबंध है । समझ लो की वो लाश यदि 25 साल के नौजवान की है तो यह वाली उसके चाचा के मामा के नाना के दादा के भाई के बेटे की बेटी की ……. चाचा के लड़के की है