02 – मैं तुम जैसा नहीं अलग हूं
आजाद परिंदा
वैसे तो वो मेरी मां है परंतु मेरा एक अलग अस्तित्व है मैं उसकी छाया मात्र नहीं हूं । बस यह बात उसे कभी समझ ही नहीं आई । और यही बात मुझे हमेशा तनाव में रखती रही ।
वक्त हमेशा बदलता है और शायद यही बदलाव ही वक्त की पहचान भी है । बदलते वक्त के साथ वो नहीं बदली । शायद उसे हमेशा एक जैसा ही बना रहना पसंद होगा । कुछ साल पहले तक उसके दिमाग में जो चलता रहता था मैं उसे कचरा कहता था और वो शायद उसे खजाना समझती होगी इसीलिए बड़े सम्हाल कर रखती थी ।
बस यह खजाने और कचरे का अंतर ही मुझे हमेशा परेशान किए रहा और मैं उससे दूर रहने का कोई न कोई बहाना तलाश करता रहा । आखिर गैर जरूरी बातें, जैसे की 50 साल पहले उसकी मां और उसकी चाची किस बात पर झगड़ते थे सुनने की मुझे क्या ज़रूरत है ।
मुझे आज भी याद है बचपन में हम लोग शाम को जल्दी खाना खा लेते थे यही कोई सात बजे । सभी जल्दी घर आते थे और जल्दी सो जाते ताकि सुबह जल्दी उठा जा सके ।
उस साल मैं काम धंधे में व्यस्त था शायद इसीलिए देर रात घर लौटता था । ऐसा नहीं था की काम धंधे में देरी होती थी बस काम धंधे से फुरसत के क्षण शाम के बाद मिलते तो वो समय में दोस्तों के साथ बिता कर देर रात घर लौटता । उसने मुझे बिगड़ गया लड़का घोषित करना शुरू कर दिया । बिगड़े लड़के को सुधारने के लिए एक दोस्त को चुना और उसकी सब असफलाएं और बुराइयां हर समय जब वक्त मिलता या जब साथ होते गिनवाना शुरू कर दिया । धीरे धीरे मेरी उस दोस्त से मुलाकातें कम होने लगी दूरियां बढ़ती गई । अब एक दूसरे दोस्त को चुना गया और एक बार फिर वही सब दोहराया गया । धीरे धीरे मेरे सभी दोस्त मुझसे दूर होते गए । मेरे पास भी कोई अन्य रास्ता नहीं था क्योंकि अक्सर मैं खामोशी से ही विरोध करता रहा ।
साल गुजरते गुजरते मेरे सभी दोस्त मुझसे दूर हो चुके थे । एक साल और लगा परिस्थितियों के अनुसार ढलने मैं । तकरीबन दो साल लगे और आज मेरे सभी दोस्त मुझसे बहुत दूर है और में अब शाम को वक्त पर घर आने की मजबूर । अब मैं एक अच्छा लड़का हूं।
हकीकत में अब मैं कुछ नहीं हूं सिर्फ एक मशीन , जिसे पास घर से ऑफिस और ऑफिस से घर इसके अलावा अन्य कोई जिंदगी है ही नहीं ।
हालाकि ऊपरी तौर पर मैने खुद को घर और ऑफिस तक सीमित अवश्य कर लिया परंतु मैं आज भी तुम जैसा नहीं अलग हूं ।
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Vishakapatnam