उजड़ते आशियाने
रमन राणा
झूठे केसों का उसने कुछ ऐसा पुलिंदा बनाया
पंचायत,रिश्तेदार और न जाने कितनों को बहकाया
चुन-चुन कर मेरे ऊपर इल्जाम का हर दाग लगाया
करके तैयार कानूनी लड़ाई मेरा फिर दरवाजा खटखटाया
काले कोट वाले भी खड़े थे मोटी फाइल बना कर
ये वक्त था जब गैरों से नहीं मैंने अपनों से भी धोखा खाया
भाई,बहन, मां, बाप सबको लिए फिरता हूं सड़कों पर
सालों हो गए इस घर का कोई शख्स नहीं मुस्कुराया
निर्दोष होते हुए भी इल्जाम हजारों है मुझ पर
दहेज, घरेलू हिंसा झूठ का उसने हर गुल खिलाया
किसी ने एक शब्द ना सुना मेरी बेगुनाही का
पति ही होगा गलत, भरी पंचायत ने भी यही फरमाया
हम कर भी क्या सकते हैं चुपचाप सह रहे हैं
मेरे घर के तो बुजुर्ग को भी दुल्हन ने अपराधी बनाया
कानून के साथ समाज भी आज हुआ पड़ा है अंधा
झूठ की नींव पर केस टिके हैं,यह किसी ने ना बताया
लेकिन हम प्रताड़ित लोगों में भी हौसला कमाल है साहब
हमने खुद के साथ समाज को भी समझाया
मोटा पैसे मांगने वाले, वो लोभी यह सुन लें
तिनका ना देंगे क्योंकि मेहनत से है सब कमाया
जीवन के अंत तक साथ जीने की खाई थी कसम
लेकिन झूठे केसों के इस रिवाज ने हर घर को जलाया
रमन राणा
दामन