उसे खुद पर गर्व था । उसे अपनी सोच पर गर्व था । उसे लगता था कि वो सबसे अलग है । उसमें आत्मविश्वास कूट कूट कर भर हुआ था । उसे यकीन था कि वो जो करना चाहे कर सकती है अकेले अपने दम पर । उसे इस बात की परवाह नहीं थी कि लोग क्या सोचेंगे ।
आज जब बुधिया से उसकी मुलाकात हुई तो उसने स्पष्ट एवं आत्मविश्वास से लबरेज शब्दों में कह दिया कि विवाह के बाद नौकरी करने या नहीं करने का फैसला सिर्फ और सिर्फ वो खुद करेगी । नौकरी करना या नहीं करना यह सिर्फ और सिर्फ उसका खुद का विकल्प है किसी और का नहीं ।
सामने से बुधिया ने धीमी परंतु संयत आवाज में कह दिया कि नौकरी तो उसे करनी ही है । नौकरी नहीं करना कोई विकल्प है ही कहाँ ।
यदि वो नौकरी नहीं करेगी तो खाएगी क्या ?
बुधिया ने खुद को कोल्हू का बैल बनाने से संयत भाषा में इनकार कर दिया था । शायद इसीलिए उसका आत्मविश्वास कहीं डगमगाया हुआ था, आखिर कैसे कोई उसके विकल्प को छीन सकता है ।