अनाम
उसे सभी शाह जी कहते थे । व्यापार उनका पारिवारिक पेशा था पिता से उनको चलता हुआ व्यापार मिला जिसको उन्होंने जमीन से उठा कर आसमान तक पहुंचा दिया ।
आजकल शाह जी दिन रात व्यापार में ही व्यस्त थे, उन्हें ना घर जाने की चिंता थी और ना ही खाने पीने की । घर का खाना खाएं उनके कई महीने गुजर चुके थे, आजकल वो नज़दीकी ढाबे से मांग कर खाना खा रहे थे । हमेशा से शाह जी ऐसे नहीं थे वो व्यापार में जितना ध्यान देते थे उतना ही सामाजिक रिश्तों में भी । परंतु आजकल शाह जी बस हर समय अपने आफिस में ही रहते घर जाना जैसे भूल ही गए । लोग आश्चर्य करते आखिर शाह जी जो सामाजिक व्यक्ति थे अचानक व्यापारी कैसे बन गए ।
बहुत कम लोग शायद एक या दो लोग ही है जो उनकी व्यथा जानते है ।
शाह जी का विवाह उनके पिता के ज़माने में ही हो गया था । विवाह के पश्चात पिता 6 महीने ही ज़िंदा रहे । गृहस्थी ठीक चल रही थी कि अचानक उनकी पत्नी बीमार हो गयी । हर संभव इलाज के बावजूद हालात बिगड़ते चले गए आखिर डॉक्टरों ने इनकार कर दिया । बस दुआ का ही भरोसा था ।
शाह जी की पत्नी को अपनी बीमारी का अहसास था परंतु उसका आखिरी वक्त चल रहा है यह अहसास उसे नहीं था ।
एक दिन पत्नी ने शाह जी से पुछा की यदि वो मर जाएगी तो शाह जी क्या करेंगे । शाह जी को पता था कि वो मरने वाली है परंतु शाह जी ने उसके बाद के विषय में कुछ सोचा ही नहीं था इसीलिए वह खामोश रह गए कोई जवाब उन्हें नहीं सूझा । पत्नी को शंका हुई, की शाह जी किसी अन्य महिला के साथ प्यार मोहबत में व्यस्त है और उसके मरने का इंतज़ार कर रहे है । हर गुजरते दिन के साथ शंका यकीन में बदलने लगी । बढ़ते बढ़ते इस हद तक पहुंच गई कि वो शाह जी कसमें देने लगी कि शाह जी हमेशा उनके रहेंगे उनके मरने के बाद भी । शाह जी ने अपनी मृत पिता और माता की कसम भी खा ली । परंतु पत्नी को यकीन नहीं आया । शाह जी ने सभी प्रय्यास कर देखे परंतु पत्नी को यकीन नहीं आया ।
अंत में शाह जी ने ऐसा निर्णय लिया जो शायद ही कोई ले सके । शाह जी ने अपना अंग विशेष आपरेशन के जरिये कटवा लिया ताकि पत्नी को यकीन हो जाये कि उसके मरने के बाद भी शाह जी उसके ही रहेंगे ।
अब पत्नी को यकीन तो आ गया परंतु शाह जी समस्या में घिर गए ।
दुआ असर लाई और शाह जी की पत्नी धीरे धीरे ठीक हो गयी । 2 वर्ष बीते शाह जी पूरी तरह व्यापार में ड़ूब गए घर का रास्ता ही भूल गए । घर अब शाह जी के लिए नहीं रहा अब वो शाह जी की पत्नी और उसके कई यारों की ऐशगाह की जगह थी । और शाह जी की नज़र में अब वो जगह घर नहीं एक वैश्यालय से अधिक कुछ नहीं रहा ।
और शाह जी उस वेश्यालय का खर्च उठाने को मजबूर ।