04. रंग बिरंगे लोग
मृत्यु वैसे तो अपने आप में दुखद घटना है परंतु यदि मृत्यु किसी ऐसे व्यक्ति जो हो को अपनी आयु बिता चुका हो यानी की ऐसा व्यक्ति जिसकी आयु 80 , 90 या 100 के ऊपर हो उसकी मृत्यु कुछ हद तक संतोष भी देती है । शायद यही कारण है की किसी ऐसे बुजुर्ग के मरने पर जो अपने पीछे भरा परिवार छोड़ गया हो जलेबी बनवाए जाने की परंपरा हमारी साइड में है । संभव है हर जगह ना है परंतु हर जगह कुछ हद तक सेलिब्रेट करने जैसा कुछ किया जाता है जैसे की रंग खेलना, जलेबी बनवाना या धूम धाम से आखिरी यात्रा निकालना। शायद इसका मकसद व्यक्ति विशेष की मृत्यु पर खुशी मानना नहीं बल्कि मरने वाला व्यक्ति जो अपनी जिंदगी में कर गया उसे सम्पूर्ण मान कर संतोष प्रगट करना हो सकता है ।
परंतु यदि मृत्यु किसी ऐसे व्यक्ति की हो जो अभी अपनी आयु के बीच में हो अपनी जिमेदारियां पूरी नहीं कर पाया हो , जिसके बच्चे अभी बीच मझधार हो , ऐसे व्यक्ति की मृत्यु यकीनन दुखदाई ही है । ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पर किसी किस्म का ऐसा कोई संस्कार नहीं है जिसे जश्न खुशी या संतोष के साथ जोड़ा जा सके । सब कुछ सामान्य तरीके से करने की परंपरा रही है ।
शायद अपवाद हो सकते है परंतु मेरी अपनी जिंदगी में अपवाद देखने का अवसर पहली बार ही था । जब जीजा की मृत्यु हुई तब उनकी आयु थी यही कुछ 45 के आसपास बच्चो की पढ़ाई अभी स्कूल लेवल तक ही है कॉलेज या डिग्री अभी काफी दूर है ऐसे में संपूर्ण अंतिम यात्रा बहुत ही साधारण तरीके से संपन हुई और सात दिन बाद धार्मिक कार्यक्रम की समाप्ति का आयोजन भी सामान्य तरीके से ही किया गया । सभी प्रबंध करने की जिमेदारी लोकल रिश्तेदारों ने उठाई परंतु मैं स्वयं अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उनके साथ था इसीलिए कह सकता हूं की कहीं ऐसा कुछ नहीं था जिसे अतिसाधारण से अधिक कुछ और कहा जा सके ।
लेकिन अपवाद शायद सब जगह होते है यहां भी निकल आया । कुछ दिन बाद मुझे पता चला की अंतिम दिन की प्रार्थना में शामिल होने के लिए एक महिला ने ब्यूटी पार्लर से मेकअप एक्सपर्ट को बुलवाया था । किसी अन्य महिला द्वारा आपत्ति किए जाने पर ब्यूटीशियन को वापिस भिजवा दिया गया परंतु अगले दिन ब्यूटीशियन को उस वक्त फिर से बुलवाया गया जिस वक्त आपत्ति करने वाली महिला घर पर नहीं थी । शायद उस महिला के लिए अंतिम प्रार्थना में शामिल होने से अधिक जरूरी था अंतिम प्रार्थना के वक्त खूबसूरत दिखना । हा ऐसा होना संभव है आखिर अंतिम रस्म अदायगी में बहुत सारे रिश्तेदार आते है । परंतु यदि वो महिला कोई और नहीं बल्कि मरने वाले व्यक्ति की अपनी मां हो तब आश्चर्य होना स्वाभाविक है ।
थोड़ा अजीब लगा परंतु हर किसी के अपने विचार हो सकते है और हम उन्हे कंट्रोल नहीं कर सकते । वैसे तो यह भी माना जा सकता है की शायद वो महिला बहुत ऊपर पहुंची हुई हो इतनी ऊपर की दुनियादारी की मोह माया उसे प्रभावित ही न कर सकती हो । संभव तो कुछ भी हो सकता है परंतु मुझे ऐसा नहीं लगता बल्कि कहीं ना कहीं मुझे इसमें उस महिला की खुशी झलकती है या शायद ऐसा कहा जाए की शायद उसके लिए बेटे की मृत्यु से अधिक महत्वपूर्ण कुछ और था।
वैसे मेरे लिए भी इस मृत्यु से कुछ विशेष अंतर नहीं पड़ा क्योंकि इस मृत्यु की दस्तक तो तकरीबन एक साल पहले से ही मिल गई थी इंतजार अगर था तो दरवाजा खुलने का । मैं इस मृत्यु के लिए पहले से ही तैयार था परंतु इसका अर्थ यह तो नहीं की मेरे लिए मरने वाला महत्वपूर्ण नहीं था ।
शायद दुनिया मेरी अपेक्षा से कुछ अधिक ही रंग बिरंगी है ।