03. रंग बिरंगे लोग

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03. रंग बिरंगे लोग

जीजा की मृत्यु से तकरीबन 15 या 20 दिन पहले जब वो ICU में भर्ती थे उस वक्त मुझे देखभाल का अवसर प्राप्त हुआ । तकरीबन 10 – 12 दिन मैंने ICU के बाहर वेटिंग एरिया में गुजारे । वहां मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था सिवाय इंतजार के इसीलिए यदि कुछ कर रहा था तो वो था वही जो भारतीयों का सबसे आनंददायक कार्य माना जाता है यानी की आस पास के माहोल की जानकारी हासिल करना ।

मेरे बगल वाले बेंच पर एक अन्य फैमिली मोजूद थी जिसकी एक बुजुर्ग महिला ICU में थी । कई दिनों तक गौर करने के बाद पता चला की बुजुर्ग महिला ICU में भर्ती है अपने कैंसर की आखिरी स्टेज के साथ । लगभग मृत, लगभग इसीलिए क्योंकि सांस ले रही है मशीनों के माध्यम से और डॉक्टर्स का कहना है की मशीनों को हटा कर बुजुर्ग महिला को उसकी तकलीफ से मुक्ति दे देनी चाहिए क्योंकि उसका बच पाना संभव नहीं है । इसके लिए महिला के परिवार जनों को साइन करके देने की आवश्यकता थी । परंतु परिवार जन साइन करके को तैयार नहीं दिखते या इस तरह कहा जाए की सभी एकमत नहीं थे ।

प्रथम दृष्टया सुनने में अच्छा लगता है को परिवार को बुजुर्ग महिला की इतनी आवश्यकता है की जब कोई उम्मीद नहीं तब भी वो महिला को बचाने का प्रयास कर रहे है । लंबी बहस के बाद एक वक्त ऐसा आया की सभी परिवारजन एकमत से महिला को विदाई देने के लिए सहमत हो गए । सहमत करने में मेरा भी कुछ योगदान रहा हालाकि इसका आज भी पछतावा है ।

रात के समय जब सब परिवार जनों की महिला से मुलाकात हो चुकी तब महिला को मुक्ति प्रदान करने के लिए मशीनों को हटा दिया गया । अगली सुबह बहुत सुखद एवम आश्चर्यजनक थी बुजुर्ग महिला मुक्त नहीं हुई बल्कि उसकी समस्त कार्यप्रणाली सही तरीके से काम करने लगी थी । बुजुर्ग महिला का वक्त नहीं आया था और उसे शायद चंद महीनों का जीवन मिल गया था । खुशी की बात थी और परिवारजन खुश दिखाई दे रहे थे ।

दो दिन के बाद महिला को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई और परिवार जनों को बता दिया गया और यही वो क्षण थे जब मुझे बुजुर्ग महिला की आयु में वृद्धि का आवसोस हुआ ।

महिला की तीन लड़किया थे और तीनों के मकान इस वक्त अचानक सिकुड़ कर इतने छोटे रह गए थे की मां के लिए जगह नहीं बना पा रहे थे इसीलिए डॉक्टर से बहस की जा रही थी की महिला को हॉस्पिटल से छुट्टी ना दी जाए बल्कि हॉस्पिटल में ही रखा जाए । जिसके लिए डॉक्टर तैयार नहीं थे क्योंकि अब डॉक्टर के करने लायक कुछ था नहीं और वो बेड किसी अन्य जरूरतमंद को देने के लिए चाहते थे की बुजुर्ग महिला को छुट्टी दी जाए ।

मेरे शैतानी दिमाग में कहीं ना कहीं एक कहानी उछलकूद मैच रही थी जिसमे लेखिका लडको की नालायकी की चर्चा करते हुए कह रही थी की काश उसने एक लड़की पैदा की होती । यहां तो तीन तीन थी और तीनों लेखिका को खुला चैलेंज दे रही थी ।