02. वैज्ञानिक

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वैज्ञानिक 02

अनाम

मैं वैज्ञानिक बनाना चाहता था और बन न सका, रोमी वैज्ञानिक बनाना चाहता था और बन गया ।

बस यही है मेरे और रोमी के सफर का निचोड़ । मेरा और रोमी का सफर बहुत लंबा है कई दशक लंबा । हमारा सफर उस वक्त शुरू हुआ था जब 10 पैसे बहुत कीमती थे और सफर आज तक जारी है जब लाखो का भी कोई मूल्य नहीं । इसका महत्व नहीं क्योंकि हमारा सफर विज्ञान के सहारे शुरू हुआ और परवान चढ़ा ।

मैने रोमी को विज्ञान सीखने के लिए कई तरह के प्रपंच रचे कभी लाल और नीली टॉफियां डिब्बे से निकलने के बहाने और कभी पहाड़ी की चोटी तक चढ़ने के बहाने से विज्ञान के नियम उसे समझता रहा । एक दफा उसे उड़ने का सिद्धांत समझने के लिए खिलौना प्लेन खरीदने और उसमे अलग अलग तरह के पंख लगाकर उड़ाने का प्रयास भी किया । यकीनन सफर रोचक रहा ।

हमारा सफर यकीनन काफी लंबा रहा है । एक दिन रोमी शहर छोड़ कर चला गया और अब हमारी मुलाकात साल में एक बार ही होने लगी । बस चिठ्ठी के जरिए संपर्क बना रहा ।

जल्दी ही समय बदला और मुलाकात चिठ्ठी से आगे निकलते हुए फोन पर कभी कभी होने वाली बात अब लगभग हर सप्ताह आने वाले फोन तक पहुंच गई । सफर की असली रोचकता अभी बाकी थी । इंतजार खत्म हुआ और सुबह सुबह रोमी की तरफ से गुड मॉर्निंग का मैसेज व्हाट्सएप पर मिला । धीरे धीरे टेक्स्ट मैसेज की जगह पिक्चर्स ने ले ली । सुबह सुबह गुड मॉर्निंग कहते हुए पिक्चर रोमी के व्यक्तित्व का खुलासा करने लगे ।

हर रोज रोमी की तरफ से गुड मॉर्निंग की पिक्चर आती और मेरी तरफ से भी जवाब जाता । परंतु कमी थी कुछ तो कमी थी जो पिक्चर्स रोमी के व्यक्तित्व को स्पष्ट दिखा नहीं पा रही थी । या शायद संभव है की मुझसे ही रोमी के व्यक्तित्व को समझने में गलती हो रही हो ।

मेरी चाहत थी की रोमी वैज्ञानिक है तो विज्ञान को जीए । मेरा इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा था । मैने अपनी तरफ से खत्म करने का असफल प्रयास भी किया इसके बावजूद इंतजार चलता रहा ।

एक सुबह जल्दी उठ कर एक पिक्चर अपने लैपटॉप पर बनाई । पिक्चर में बकायदा मैक्सवेल इक्वेशन को लिखा और उस पर गुड मॉर्निंग लिख कर भिजवाया । रोमी का जवाब तुरंत ही आ गया । एक रंगीन पिक्चर पर गुड मॉर्निंग लिखा था । रोमी हमेशा गुड मॉर्निंग पिक्चर भिजवाता रहा कुछ ऐसे पिक्चर जिनका विज्ञान से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था । रोमी खुद को वैज्ञानिक कहता रहा परंतु उसकी डे टू डे लाइफ में विज्ञान कहीं नहीं था अगर कहीं था तो बस जुबान पर ।

मैं विज्ञान की जीता रहा और रोमी खुद को वैज्ञानिक कहता रहा ।