वैवाहिक बलात्कार – दाम्पत्य जीवन की निजता में न्यायिक हस्तक्षेप!
दिल्ली उच्च न्यायालय में विचाराधीन एक जनहित याचिका के चलते मिडिया में ‘वैवाहिक बलात्कार‘ #MaritalRape के सन्दर्भ में अनेकों लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं। वामपंथी मिडिया द्वारा महिला सुरक्षा के नाम पर, हर लेख में यह सुनिश्चित करने के लिए जोर दिया रहा है कि वैवाहिक बलात्कार को एक नए अपराध के रूप में परिभाषित कर एक अलग कानूनी प्रावधान किया जाए। सब लोग IPC की ‘धारा 375 के अपवाद 2′ को ‘वैवाहिक बलात्कार की छूट‘ का नाम देते हुए, निरस्त करने और वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग कर रहे हैं।
धारा 375 के अपवाद 2 कहता है कि “किसी पुरुष की अपनी स्वयं की पत्नी के साथ मैथुन या लैंगिक कृत्य, यदि पत्नी पंद्रह वर्ष से कम आयु की न हो, बलात्संग नहीं है।“
[Section 375, Exception 2.—Sexual intercourse or sexual acts by a man with his own wife, the wife not being under fifteen years of age, is not rape]
न्यायिक पृष्ठभूमि
वैवाहिक बलात्कार एक विदेशी अवधारणा है, जिसे विदेशों से वित्त पोषित वामपंथी/महिलावादी संगठनों द्वारा भारतीय समाज पर थोपने का प्रयास किया जा रहा है; इसलिए इसे पहले विदेशी, फिर भारतीय, दोनों दृष्टिकोणों से समझने की आवश्यकता है।
हमें सबसे पहले यह समझने की आवश्यकता है कि ‘IPC की धारा 375 के अपवाद 2′ और ‘IPC की धारा 376ख‘ में से कौन ‘वैवाहिक बलात्कार‘ से संबंधित है? यदि हम ‘IPC की धारा 375 के अपवाद 2′ को ‘वैवाहिक बलात्कार‘ अपवाद मानते हैं, तो सरकार को इस उद्देश्य को परिभाषित करने की आवश्यकता है जिसके लिए ‘IPC की धारा 376ख‘ बनाई गई!
जितने भी लेख या वक्तव्य प्रकाशित हो रहे हैं, सभी कुछ चुनिन्दा बिंदुओं पर चुप्पी साध लेते हैं:
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जिन भी देशों में वैवाहिक बलात्कार के लिए अलग क़ानून है (चाहे वह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप या कहीं और), वहाँ पहले से मौजूद बलात्कार कानून लैंगिक आधार पर पक्षपात पूर्ण नहीं थे और वैवाहिक बलात्कार कानून भी लैंगिक आधार पर पक्षपात पूर्ण नहीं है। जबकि भारत में कानून यह स्वीकार ही नहीं करता कि एक पुरुष भी बलात्कार पीड़ित हो सकता है। सभी अंतर्राष्ट्रीय वैवाहिक बलात्कार कानून, पति–पत्नी दोनों के हित की बात करते हैं।
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सभी अंतरराष्ट्रीय वैवाहिक बलात्कार के कानून इसको स्वीकार करते हैं कि विवाह के रूप में एक पति अथवा पत्नी द्वारा दी गई निहित ‘सहमति‘ को कानून की प्रक्रिया से, अथवा किसी ऐसे अन्य जग–जाहिर तरीके से वापस किया जा सकता है या रद्द किया जा सकता है, ताकि दूसरे पति/ पत्नी को यह स्पष्ट हो सके कि उसके पति/पत्नी ने अपनी सहमति वापस ले ली है और इस पति/पत्नी ने बलात्कार के आरोप के विरुद्ध अपनी प्रतिरक्षा/छूट खो दी है। जहाँ पति–पत्नी साथ नहीं रहते या अलग हो गए हैं, वहाँ यह प्रतिरक्षा/छूट लागू नहीं होती है।
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सभी लेख इस बिंदु पर शांत हैं कि IPC में, हमारे पास पहले से ही धारा 376ख है, जैसा कि Criminal Law (A), 2013 द्वारा संशोधित है, जो कहता है:
376ख के अनुसार: पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान मैथुन – जो कोई, अपनी पत्नी के साथ, जो पृथक्करण की डिक्री के अधीन या अन्यथा, पृथक रह रही है, उसकी सहमती क्र बिना मैथुन करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
[376B. Sexual intercourse by husband upon his wife during separation.—Whoever has sexual intercourse with his own wife, who is living separately, whether under a decree of separation or otherwise, without her consent, shall be punished with imprisonment of either description for a term which shall not be less than two years but which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.]
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अंतर्राष्ट्रीय वैवाहिक बलात्कार कानून स्वीकार करते हैं कि सहमति अलग न होने पर भी वापस ली जा सकती है, लेकिन कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि ‘सहमति की वापसी‘ के तथ्य का साक्षी कौन और कैसे होगा? इसे दर्ज कैसे किया जाएगा?
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भारतीय परिदृश्य में, जहां लगभग 80% बलात्कार के मामले झूठे पाए जाते हैं और लगभग सभी मामलों में पूर्व में दी गई सहमति को ही बाद में विवादित बता दिया जाता है।
सभी लेख इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हैं कि किसी भी अन्य देश में IPC के 498a जैसा कोई प्रावधान नहीं है, जो कि भारतवर्ष में सबसे ज्यादा दुरूपयोग किए जाने वाला प्रावधान है। 498a में पहले ही जुलाई 2014 के बाद से ही एक पति को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए अप्राकृतिक यौन शोषण, तथा उसके भाई/पिता/बहनोई आदि पर छेड़–छाड़/बलात्कार के आरोप लगाना एक साधारण बात है।
निष्कर्ष
यदि अपवाद को समाप्त कर दिया गया तो रात में पति–पत्नी के बीच संभोग होगा और यदि सुबह में दोनों के बीच किसी कारण विवाद हो गया तो पत्नी सीधा थाने जाकर बलात्कार का मामला दर्ज करा देगी। सहमती का प्रमाण क्या होगा?
एक नए वैवाहिक बलात्कार के प्रावधान के रूप में, वामपंथी महिलावादी, समाज में परिवारों का उत्पीड़न करने के लिए एक घातक हथियार तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं।
विदेशी कानूनों का आंख मूंदकर पालन करते हुए, यदि वामपंथी/महिलावादी ‘धारा 375 के अपवाद 2′ को वैवाहिक बलात्कार की छूट का नाम देकर निरस्त कराने में सफल हो जाते है, तो यह विवाह संस्कार को ही समाप्त करने की दिशा में एक और कदम होगा।