शर्मिला लड़का
मैं स्वयं के लिए यह तो नहीं कह सकता कि बच्चो से नफरत करता है परंतु ऐसा भी नहीं कह सकता कि बच्चों से बहुत प्यार है । बच्चों से थोड़ी सी दूरी शायद परिस्थितिवश स्वाभाविक है ।
जिस कॉलोनी में मैं पिछले एक वर्ष से निवास कर रहा हूँ वहां कुल मिलाकर 6 या 7 बच्चे है (10 वर्ष से कम आयु के) । उनसे मेरा सिर्फ इतना हो संबंध है कि यदि कोई सामने आ जाये तो नमस्ते कह देता है । उन्ही बच्चों में से एक बच्ची ऐसी भी है जो बाकायदा मुझे नमस्ते बुलाने के लिए सामने आती थी । घने काले वालो वाली छोटी सी खूबसूरत बच्ची । उसे अपने बाल बहुत प्यारे थे ।
बच्ची के पिता फ़ौज़ में है और माँ बच्चों की देखभाल करती है । हाउसवाइफ ना कहकर बच्चों की देखभाल शब्द इसीलिए इस्तेमाल किया क्योंकि उसे इसके अलावा और कोई काम नहीं बाकी सब काम अफसर के मातहत करते है ।
कई महीने कॉलोनी में रहने के बाद तकरीबन 2 महीने पहले मौहल्ले से चली गयी अपने माँ बाप के साथ किसी अन्य मौहल्ले में रहने ।
आज छुट्टी वाले दिन एक मित्र के यहां निमंत्रण था और वहां एक लड़का भी आया हुआ था । शायद बहुत ही शर्मिला , इतना शर्मिला की मुझसे आंखें मिलाने का साहस भी उसमे दिखाई नहीं दे रहा था । लिहाजा मैंने भी नज़रें चुरा ली । पता नहीं क्यों वो शर्मिला लड़का बहुत जाना पहचाना भी लग रहा था । बस जाना पहचाना ही लग रहा था पहचान दिमाग के किसी कोने में मौजूद नहीं थी ।
लड़के की माँ से भी मुलाकात हुई । वो मेरे सामने ही बैठी हुई अपने नए पड़ोस की बातें सुना रही थी । पड़ोस के घरों के बाहर टंगे हुए निम्बू मिर्च, पड़ोस के मकान का डिज़ाइन साइज, पड़ोसन के कपड़े पहनने का तरीका और भी बहुत सारी बारीक जानकारी । इतनी बारीक जानकारी की शायद मैं उनके नए मोहल्ले में कभी पहली जाऊ तो हर घर के बाहर खड़े होकर मालिक को उसने नाम से बुला सकूं ।
बहुत देर तक उनके पड़ोस की बाते सुनते सुनते बोर हो चुकने के बाद बातचीत की दिशा बदल देने के इरादे से मैंने हिम्मत करके पुछ ही लिया कि बच्ची को भी साथ लाना चाहिए था ।
मेरा दिमाग हमेशा के लिए अंतरिक्ष की सैर को निकल गया जब उसने हंसते हुए बताया कि वो शर्मिला लड़का दरअसल वही लड़की है बस उसके बाल कटवा दिए क्योंकि मेरे पास वक़्त नहीं था उसकी चोटी करने का ।
नोट : सत्य घटना पर आधारित