दुश्मन से गुफ्तगू
एक महान व्यक्ति ने कभी कहा था कि निंदक को पास में रखना चाहिए । सिर्फ निंदक को ही क्यों ? दुश्मन को क्यों नहीं ?
मिश्रा जी मेरे साथ काम करते है हमारी आपस में अच्छी बनती है । हम इकठे ही सुबह और शाम की चाय के लिए अपनी सीट से उठते है । इसके बावजूद यह तय करना मुश्किल है कि हम दोस्त है या दुश्मन ।
हमारी दुश्मनी तो शायद पैदा होते ही शुरू हो गयी थी । ऐसा नहीं है कि हमारी कोई पारिवारिक दुश्मनी हो और हम पैदा भी सैकड़ों किलोमीटर दूर हुए । और मजे की बात है कि हम एक दूसरे से तब तक अपरिचित थे जब तक कि मैं 30 वर्ष का नहीं हुआ । फिर भी हमारी दुश्मनी पैदाइशी है ।
ऐसा है कि दुर्भाग्य से हम दोनों आदमी है और विज्ञान यह साबित कर चुका है कि एक आदमी दूसरे आदमी से दुश्मनी निभाने में पांच गुना आगे है किसी अन्य की तुलना में ।
हाल ही में एक वाक्या हुआ जिसने यह पक्का कर दिया कि हमारी दुश्मनी पैदायशी है ।
हुआ कुछ ऐसा ….. … चलो छोड़ो पहले आपको बताता हूँ कि आखिर हमारी दुश्मनी सामने कब आयी ।
कुछ साल शायद 10 से 15 साल पहले की बात है जब मेरी शादी हुई थी । सही समय बता पाना जरा मुश्किल है क्योंकि वो एक गैरजरूरी घटना थी, और गैरजरूरी घटनाओं की तारीख कौन याद रखता है । तो हुआ ऐसा की तकरीबन 3 दिन बाद मेरे सामने सवाल खड़ा किया गया कि मुझे या तो पत्नी के साथ रहना पड़ेगा या फिर माँ बाप के साथ । मुझे सोचने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई । और मेरे फैसले के कारण मिश्र जी आज तक मुझे दुश्मन मानते चले आ रहे है । वैसे मिश्रा जी का मेरी कागजी पत्नी को नहीं जानते ।
वो दुश्मनी आज तक कायम है । और गाहे बगाहे मिश्रा जी कोई ना कोई किस्सा निकाल कर साबित करने लगते है कि मेरा फैसला गलत था और मैं कितना बड़ा अत्याचारी हूँ । वो यह समझना ही नहीं चाहते कि जब फैसला मुझे करना था तो अत्याचार का सवाल कहा पैदा हुआ जो विकल्प मेरे सामने थे उसमे से एक का चुनाव मैंने कर लिया ।
खैर अब आते है वर्तमान घटना पर ।
अभी कल की ही बात है मिश्रा जी ने उत्तर प्रदेश के किसी पुलिस अधिकारी की बदमाशी का किस्सा सुनाया । किस्सा कुछ यूं था कि अधिकारी की शादी हुई मिश्रा जी की पत्नी की किसी मित्र से । शायद शादी चल नहीं पाई या कुछ और कारण रहा हो पता नही, सिर्फ इतना पता है कि दोनों कई सालों से दो अलग शहरों में रह रहे है । शायद दोनो की मुलाकात होली दीवाली होती हो या शायद ना भी होती हो ।
अधिकारी साहब की अपने शहर की किसी महिला रिपोर्टर से दोस्ती हो गयी और वो दोनों लाइव इन में रहने लगे । कुछ साल बाद (शायद 3 या 4 साल) उसी महिला रिपोर्टर ने अधिकारी के खिलाफ कंप्लेन कर दी कि अधिकारी ने उसे धोखा दिया पहली शादी को छिपाया और बलात्कार कर दिया ।
मिश्र जी यह साबित करने के लिए की मैंने अपनी पत्नी पर कितना जुल्म किया इसी अधिकारी का किस्सा सुना रहे थे । मैंने मिश्रा जी से पुछा की यह तो एक तरफ का किस्सा है अधिकारी का पक्ष क्या है ?
अब मिश्रा जी के पास दूसरा पक्ष जानने का ना तो इच्छा थी और ना ही उन्होंने जरूरत समझी , आखिर दूसरा पक्ष उनका दुश्मन जो था । जब था ही नहीं तो भला बताते कहा से ।
खैर मुझे तो बात आगे बढ़ानी थी इसीलिए दूसरा सवाल पुछ लिया ‘अच्छा यह बताओ कि क्या यह संभव है कि एक रिपोर्टर को एक पुलिस अधिकारी की शादी के बारे में जानकारी ना हो’
मिश्रा जी मानना तो नहीं चाहते थे परंतु मजबूरी में उनको मानना पड़ा कि एक बड़ा पुलिस अधिकारी जिसकी जीवन सार्वजनिक अधिक हो और एक क्राइम रिपोर्टर उसके विवाह के बारे ना जानती हो यह संभव नहीं दिखता
तो मैंने भी लोहा गरम देख कर चोट करते हुए पुछ लिए की फिर इससे नतीजा क्या निकाला जाए ।
मिश्रा जी तो जैसे बोलना ही भूल गए थे इसीलिए जल्दी जल्दी चाय पीने में व्यस्त हो गए । लिहाज़ा नतीजा मुझे ही घोषित करना पड़ा ।
वैसे मैं समझता हूँ कि अधिकारी की पहली शादी नहीं चल पाई इसीलिए दोनो अलग रह रहे है ओर रिपोर्टर महोदया को सब जानकारी थी परंतु आज किसी झगड़े के कारण अधिकारी को ब्लैकमेल करने के लिए बलात्कर बलात्कार चिल्ला रही है ।
मिश्रा जी की खामोशी ही मुझे उनकी सहमति दिखी दे गई । और मैंने भी मिश्र जी के कंधे पर हाथ रख कर कह दिया कि कोई बात नहीं अगली बार थोड़ी ज्यादा तैयारी के साथ आइये । आखिर दुश्मनी तो निभानी ही है ।