दलाल
सरदार सिंह मेरा बहुत पुराना और घनिष्ट मित्र है । घनिष्टता का आलम कुछ यूं है कि हम अक्सर एक दूसरे को अपशब्द भी कह देते है ।
आजकल मुझसे थोड़ा नाराज़ चल रहा है । बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि आजकल मुझे वो ऐसे समझता है जैसे कि मेरा दिमागी संतुलन गड़बड़ा गया हो । शायद इसीलिए पार्क में मित्र मंडली ने मेरा स्वागत नहीं किया । अगर बस चलता तो शायद मुझे भगा ही देते परंतु मैं खुद ही दूर चला आया ।
नाराजगी का किस्सा शुरू हुआ तीन दिन पहले जब सरदार सिंह पार्क में दाखिल हुआ । मैंने जोर से पुछ लिया ‘क्यों दलाल साहब सौदा कितने में निबटा’ बस तभी से सारी मित्र मंडली नाराज़ है ।
सरदार सिंह की एक लड़की है । पढ़ने में होशियार और हाल ही में उसका विदेश जाने का रास्ता साफ हो गया । विदेश जाने का खर्च यही कोई बीस लाख । इस बीस लाख के इंतजाम के लिए सरदार सिंह ने ऐसे लड़के की तलाश शुरू की जो बीस लाख खर्च करके लड़की को विदेश भिजवाने का इच्छुक हो । बदले में लड़की उस लड़के से शादी करके उसे भी विदेश ले जाएगी । आखिर इंतज़ाम हो ही गया । बस इसी सिलसिले में मैंने पुछ लिया था ।
पहले मुझे लगा था कि मित्र मंडली भाषा की वजह से नाराज़ है फिर लगा ऐसा तो हो ही नहीं सकता ।
तकरीबन एक साल पहले मैंने अपने लड़के कि शादी तय की उस वक़्त सरदार सिंह अपनी रिश्तेदारी से एक रिश्ता ले कर आया । उस वक़्त लड़के के लिए तीन रिश्ते आये हुए थे और मैंने अपनी हैसियत के अनुसार रिश्ता तय कर दिया । बस उसी वक़्त से सरदार सिंह हर रोज मुझसे पार्क में चिल्ला कर पुछता था ‘क्यों दलाल सौदा कितने में तय किया’
देखा देखी पूरी मित्र मंडली मुझे एक साल से दलाल कह रही थी । पता नहीं मित्र मंडली अब नाराज़ क्यों हो गयी ।
शायद मुझे ‘साहब’ नहीं कहना चाहिए था ।