005. एक था गुरु – बक बक
गुरु अपना खाली वक़्त पढ़ने में व्यतीत करता है और इसी पढ़ने का नतीजा यह निकला कि एक अच्छी खासी लाइब्रेरी बन गयी । परंतु आज लाइब्रेरी गायब पाकर जहां घर कुछ खाली खाली सा दिख रहा था वही दिल में एक सुकून सा भी था । शायद यह लाइब्रेरी मेरे और मेरे जैसे कई लोगो के लिए समस्या का कारण रही है ।
मुझे गुरु के साथ वक़्त बिताना कैसा भी लगता हो लेकिन उसकी यह लाइब्रेरी कई लोगो के लिए समस्या का कारण भी रही है । खास तौर पर मेरे घर वाले उससे जो नफरत करते है उसके कई कारणों में से एक कारण यह लाइब्रेरी भी थी । हालांकि मेरे विचार से अधिक महत्वपूर्ण कारण कुछ और रहा है परंतु फिर भी कुछ योगदान अवश्य ही यही से आया ।
बचपन से कई बार ऐसी ऐसी बातें सुनने को मिलती है जिसका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता । या कई बार गुजरते वक़्त के साथ प्रासंगिकता खो देती है। इसके बावजूद मस्तिष्क उसी जानकारी के अनुसार काम करता है जोकि बहुत पहले बचपन में फीड कर दी गयी हो । ऐसे ही टाइम गैप को भरने का काम बहुत बार इस लाइब्रेरी ने किया था ।
एक बार ऑनर किलिंग को लेकर गरमा गरम बहस हुई और मेरे अधिकांश तर्क उस जानकारी पर आधारित थे जो बचपन से TV पर देखे गए प्रोग्राम पर आधारित थे । मेरी जीत लगभग पक्की थी । परंतु कम्बखत लाइब्रेरी के कारण जीत हार में बदल गयी । इसी लाइब्रेरी से ही हमें ऑनर किलिंग के लेटेस्ट डेटा दिए जो तकरीबन जीरो के आस पास थे ।
इसी तरह रामायण एवं महाभारत काल में वैज्ञानिक तरक्की पर हुई बहस के लिए भी अधिकांश तर्क इसी लाइब्रेरी से ही चेक किये गए थे । मेरे परिवार में रामायण एक बहुत बड़ा ग्रंथ माना जाता है और हम मानते है कि रामायण महाभारत काल वैज्ञानिक उपकरणों से लैस युग था । इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति यह दावा कर दे कि वो युग महलों नहीं झोंपड़ियों का युग था और इस मुद्दे पर पूरी बहस करने को तैयार हो, तो उससे पसंद कैसे किया जा सकता है ?
एक धार्मिक व्यक्ति होने के कारण मुझे कई बार कहानी या घटना सुनने के बाद यह सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं होती कि आखिर यह कैसे हो सकता है ।
ऐसे व्यक्ति को हमारे धर्म पर लांछन लगाने के लिए पूरी तरह लताड़ा जाना आवश्यक है । परंतु गुरु के साथ यह संभव नहीं दिखता ।
अधिकांश लोगों की तरह खुद को आधुनिक दिखाने के लिए मैं भी भूत प्रेत के अस्तित्व से इनकार करता हूँ । भूत प्रेत पर हुई बहस भी कहीं ना कहीं इसी लाइब्रेरी तक पहुंचती है ।
और भी कई ऐसे मुद्दे है जो मुझे और गुरु को इस लाइब्रेरी के साथ जोड़ते है । ऐसा नहीं है कि यह लाइब्रेरी सिर्फ गुरु की ही सहायता करती हो,मैन भी कई बार इसी लाइब्रेरी से रेफरेंस उठाये है । अक्सर गुरु के द्वारा दिये गए नाम या नंबर्स गलत होते रहे है इसका कारण रहा है गुरु की यादाश्त ।
गुरु की याददाश्त काफी कमजोर है उसे नाम याद नहीं रहते और ना ही सन याद रहते है । गुरु स्वयं इस बात को स्वीकार करता है उसने अपनी याददाश्त से संबंधित घटना काफी पहले सुनाई थी ।
कॉलेज में प्रथम वर्ष के दौरान कई मित्र बने जिनमें से कई के साथ गहन मित्रता भी हुई । ऐसे ही एक मित्र के बारे में यह घटना है ।
प्रथम वर्ष के बाद तकरीबन दो माह का अवकाश था और इस दौरान सभी मित्रों का अपना अपना प्रोग्राम था इसीलिए मुलाकात संभव नहीं थी । दोबारा कॉलेज शुरू होने पर ऐसे ही एक गहन मित्र से मुलाकात हुई तो गुरु को उस मित्र का नाम याद नहीं आ रहा था । पूरा दिन साथ गुजरने के पश्चात भी मित्र का नाम याद नहीं आया । शायद शर्म या हिचक के कारण गुरु ने मित्र से नाम पूछना उचित नहीं समझा । वैसे अगर पुछा होता तो यह बड़ा अजीब लगता । कई दिन तक दोनो मित्र साथ घूमते रहे परंतु नाम याद नहीं आना था सो नहीं आया । कई दिन बाद किसी ने मित्र को उसके नाम से पुकारा तब जाकर गुरु को अपने गहन मित्र का नाम याद आया ।
गुरु की यादाश्त से जुड़ी हुई कई कहानियां है परंतु फिर कभी ।
वैसे तो गुरु को देख कर लगता है कि वो सिख धर्म को मानता है । यदि उसकी दिनचर्या या पहनावा देखा जाए तो कोई भी कह सकता है कि वो सिख धर्म को मानता है । गुरु का पहनावा वैसे तो एक ढीली ढाली सी पेंट शर्त है परंतु सिर पर बंधी पगड़ी उसके सिख होने की चुगली करती है । हर रोज सुबह जल्दी उठने के पश्चात मोबाइल पर चलता हुआ धार्मिक संगीत भी उसके सिख होने की चुगली करता है । हर शनिवार को गुरुद्वारे जाना भी उसे सिख साबित करता है । परंतु उसका स्वयं का कहना है कि वो नास्तिक है । वैसे मेरा अनुभव भी कुछ ऐसा ही है । गुरु बेशक दिखने में सिख दिखता हो परंतु अंदर से उसे नास्तिक माना जाना अधिक तर्कसंगत जान पड़ता है ।
ऐसे नास्तिक लोग हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या क्योंकि उनकी हर घटना के पीछे तर्क तलाश करने की जिज्ञासा हमारे लिए समस्या बन जाती है । शायद इसी कारण से ही मेरे लिए रामायण महाभारत काल ऐसे काल है जहां चमत्कार ही चमत्कार है जबकि गुरु उन चमत्कारों को बेदर्दी से ठुकरा देता है । मुझे और मेरे घर वालों को उसकी यह ठुकराहत बकबक से अधिक कुछ नहीं लगती । शायद यही कारण है कि मेरे घर पर उसका स्वागत नहीं होता ।
वैसे सोचने वाली बात है कि यदि गुरु नास्तिक है तो सिख जैसा क्यों दिखने की कोशिश करता है ?