एक था गुरु : परिचय

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एक था गुरु : परिचय

 

गुरु और मैं, मैं और गुरु दो अलग व्यक्ति होते हुए भी दो नहीं । शायद ही गुरु के जीवन का ऐसा कोई पल होगा जिसका परिचय मुझे ना मिला हो । हर रोज को तरह इस वक़्त भी गुरु मेरे सामने बैठा है, बिल्कुल खा…….

 

एक मिनट, गुरु सामने बैठ है ?

इसका मतलब गुरु जिंदा है ?

फिर ‘था’ किस लिए ?

 

एक कारण है, जिसके विषय में फिर कभी बात करेंगे । आज सिर्फ गुरु के बारे में कुछ कहूंगा ।

वैसे तो उसका नाम कुछ और था परंतु सभी उसे गुरु ही बुलाते थे । कुछ अन्य लोग जो स्वयं को ज्यादा मॉडर्न समझना या प्रदर्शित करना चाहते थे वो लोग उसे गुरि भी कह देते थे परंतु गुरु कहने वाले ही अधिक थे । और फिर धीरे धीरे गुरि नाम कहीं अंधेरे कोनो में दम तोड़ गया, और रह गया सिर्फ गुरु ।

मेरी उससे पहली मुलाकात कहाँ और कैसे हुई अब यह तो याद नहीं परंतु जो बात निश्चित तौर पर कह सकता हूँ वो यह है कि उसके बारे में मेरे जो विचार उससे मुलाकात से पहले थे, वो निश्चित रूप से आज नहीं है । क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिला गुरु को जानने के बाद जानने से पहले और जानने के बाद के विचार ठीक उतने ही विपरीत जितने संभव हो सकते है । कुछ वैसे ही जैसे चुम्बक के दो पोल एक दूसरे से विपरीत ।

गुरु से मिलने से पहले जब मैं उसे आस पास घूमते देखा करता था तब ऐसा कुछ भी नहीं था जो मुझे उनकी तरफ आकर्षित कर सकता हो । इसके विपरीत ऐसा काफी कुछ था जो उससे दूर रहने के लिए प्ररित करे । परंतु उससे मिलने के बाद, बातचीत करने और कुछ वक्त गुजरने के बाद आज हम दोनों ना केवल अच्छे मित्र है बल्कि मैं गुरु के बारे में उतना जनता हूँ जितना कि उसकी पर्सनल डायरी ।

शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जिस दिन हमारी मुलाकात ना हुई हो । यदि कभी किसी कारण से मुलाकात नहीं भी हो पाई तब भी किसी ना किसी साधन से बातचीत हो ही जाती है ।

अक्सर गुरु को कुरेदने के बाद किस्से बारिश की फुहारों की तरह बरसने शुरू हो जाते है । गुरु जब खामोश हो तो घंटो तक खामोश, पर एक बार शुरू होने के बाद ब्रेक फैल ट्रक की तरह चलता है ।

आखिर मैंने ट्रक का ही इस्तेमाल क्यों किया ?

क्योंकि गुरु अक्सर कहता है कि वो ट्रक ड्राइवर बनाना चाहता था । ट्रक ड्राइवर बनाना ही उसका सपना था । थोड़ा अजीब लगता है । अक्सर लोग बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहते है कोई IAS कोई IPS कोई टाटा बिड़ला, कोई अम्बानी । गुरु से पहले किसी को ट्रक ड्राइवर बनाने का सपना बुनते नहीं देखा ।

गुरु ट्रक ड्राइवर बन नहीं सका, मेरे विचार से उसने कोशिश ही नहीं कि । उसका पहला सपना अधूरा ही रह गया । उसका एक और सपना था, उसके बारे में फिर कभी ।

गुरु का जन्म उस जमाने में हुआ जब मेहनत करना और मेहनत से कमाए पैसे से ज़िंदगी व्यतीत करना गौरव की बात समझी जाती थी । गुरु एक ऐसे ही परिवार में पैदा हुआ जो बेशक बहुत अमीर नहीं था परंतु सुखी और प्रसन्न अवश्य था ।

उसे गुरु नाम मिला स्कूल के जमाने में, जहां वो हमेशा एक बहुत अच्छा विद्यार्थी रहा । स्कूल का जमाना गुजरा और कॉलेज का जमाना शुरू हुआ । यहां भी गुरु ने अपना रिकॉर्ड कायम रखा, वो विद्यार्थी ही रहा ।

पता नहीं गुरु को एक वक्त में एक ही मुख्य लक्ष्य चुनने और उस पर काम करने की आदत किसने डाली, हो सकता है उसे अपने परिवार से यह गुण मिला हो या हो सकता है कि यह उसका जन्मजात गुण रहा हो ।

शायद इसी गुण के कारण ही गुरु जब कॉलेज में दाखिल हुआ तब एक विद्यार्थी के रूप में दाखिल हुआ और विद्यार्थी ही बना रहा । गुरु के साथी जहां कॉलेज में घूमना फिरना, खेल कूद, गर्ल फ्रेंड की तलाश करना आदि में व्यस्त थे वहीं गुरु कॉलेज में एक विद्यार्थी के तौर पर जाना जाता रहा ।

इससे संबंधित एक किस्सा गुरु ने सुनाया था जो अचानक याद आ गया ।

एक दफा क्लास के अधिकांश विद्यार्थी किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे । चर्चा का विषय कुछ ऐसा था जिसमे गुरु की विशेष दिलचस्पी नहीं थी, और ना ही उस विषय का ज्ञान ही । चर्चा में सभी अपने अपने मत रख रहे थे और गुरु विषय का ज्ञान ना होने के कारण चुपचाप सुन रहा था । मुझे नहीं पता उसके मन में क्या चल रहा था, पर वो चर्चा का हिस्सा नहीं था वो सिर्फ सुन रहा था । जैसा कि अक्सर होता है मित्र जब इकठे बैठे होते है तो किसी को भी चुपचाप नहीं बैठने देते सबको बातचीत में शामिल रखते है, और एक एक करके कई मित्रों ने गुरु को चर्चा में खींचने का प्रयास किया इसके बावजूद गुरु चर्चा में शामिल नहीं हुआ तो एक मित्र ने उसे चिढ़ाते हुए कहा दिया कि ‘गुरु से फिल्मों के बारे में पूछना व्यर्थ है इससे यह पुछो की विज्ञान की पढ़ाई के लिए कोनसी किताब सबसे बेहतर है’ ।

गुरु की दिलचस्पी फिल्मों में है ही नही अपनी 45 वर्ष की ज़िंदगी में उसने कुल मिलाकर 15 या 16 फिल्में देखी है, हर तीन साल बाद एक फ़िल्म । गुरु के कारण ही बॉलीवुड हॉलीवुड को टक्कर नहीं दे पा रहा ।

ऐसा नहीं है कि गुरि ने अपना कॉलेज किताबो की भेंट चढ़ा दिया हो उसने अन्य किर्याकल्पों में भी हिस्सा लिया । स्कूल के वक़्त में गुरु ने एक दफा स्वतंत्रता दिवस पर कविता पाठ और कॉलेज की रैगिंग में एक बार गाना गाने का प्रयास किया था । एक बार ही क्यों, यह मेरी समझ में आ गया जब मैंने गुरु को गाना गाते हुए सुना । वैसे मेरा विचार है कि रैगिंग करने वालो ने दुबारा किसी को गाने के लिए नहीं कहा होगा ।

गुरु का हाथ की हड्डी बचपन में एक बार बैडमिंटन खेलते हैं टूट गयी थी और कॉलेज के ज़माने में बॉलीबाल खेलते हुए हाथ की अंगुलिया दो बार टूटी । और भी कई जख्म है जो गुरु को खेलते हुए मिले । शायद गुरु बहुत बुरा खिलाड़ी रहा होगा, पता नहीं । आजकल गुरु सिर्फ कैरम खेलता है और बढ़िया खिलाड़ी है । वैसे गुरु के पास अपने काम करने के लिए लैपटॉप है, परंतु उसका कंप्यूटर इस बात का गवाह है वो कंप्यूटर गेम्स में भी दिलचस्पी लेता रहा है । गुरु की दिलचस्पी क्रिकेट को छोड़ कर लगभग हर तरह के खेल में रही और कभी ना कभी उसने अपने हाथ आजमाए भी, परंतु मुख्य रूप से उसका स्कूल / कॉलेज का जीवन एक विद्यार्थी का रहा ।

कॉलेज में आते आते अक्सर लड़के और लड़कियों का प्राकृतिक आकर्षण विपरीत जेंडर में हो ही जाता है । क्या गुरु की दिलचस्पी लड़कियों में भी रही ?