एक था गुरु – गर्लफ्रेंड
नेशनल फॅमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के अनुसार पुरुषों के द्वारा प्रथम सेक्स अनुभव आयु 20 से 24 वर्ष के बीच है जबकि महिलाओं में यही आयु 15 से 19 वर्ष के बीच है |
एक आयु के बाद विपरीत जेंडर के प्रति आकर्षण प्राकृतिक है | गुजरते वक़्त के साथ यह आयु कम ही हुई है | बहस सिर्फ इस बात पर की जा सकती है की सही आयु क्या होनी चाहिए, परन्तु आकर्षण होना स्वाभाविक एवं प्राकृतिक है | वर्तमान में कम्युनिकेशन के साधनों की उपलब्धता इस आयु को कम करने में महतवपूर्ण रही है |
इसका एक अर्थ यह भी निकलता है की स्कूल के आखिरी या कॉलेज के आरम्भ अधिकांश विद्यार्थी, सिर्फ विद्यार्थी नहीं रह जाते | कई अन्य कारणों के अतिरिक्त विपरीत जेंडर के प्रति आकर्षण भी एक महतवपूर्ण कारण बन जाता है |
ऐसे में कॉलेज के दौरान गुरु एक विद्यार्थी कैसे बना रह सका पिछले दिनों यह जानने की उत्सुकता काफी अधिक रही |
गुरु जब मेरे सामने आया तो हमेशा की तरह ही मेरे साइड वाली कुर्सी पर बैठ गया और अपने चिर परिचित अंदाज़ में हाय हेलो किया । कुछ विशेष काम नहीं था इसीलिए सोचा कि चलो आज उत्सुकता को शांत करने के साथ साथ गुरु को कुछ और कुरेदा जाए ।
शायद इसीलिए मैंने गुरु से उसकी गर्ल फ्रेंड के बारे में पुछना शुरू कर दिया । यह एक ऐसा विषय है जिसके विषय में हमारी पहले कभी बात नहीं हो पाई थी । जब गर्ल फ्रेंड की बात उठी तो गुरु का चेहरा एक बार तो शर्म से लाल हो गया, बताने में आनाकानी करने लगा परंतु अब बात शुरू कर दी तो तो बीच में कैसे छोड़ी जा सकती थी ।
विपरीत जेंडर के प्रति आकर्षण महसूस करना प्राकृतिक है और हर जनरेशन के साथ हुआ है । गुरु की जनरेशन भी इससे अछूती नहीं थी । जब सबके साथ होता है तो गुरु के साथ ऐसा अनुभव नहीं हुआ हो ऐसा नहीं हो सकता । परंतु गुरु ने जब स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि उसकी कभी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं थी तो एक बार तो दिमाग ने कहा कि शायद किताबों से फुरसत ही नहीं मिलती होगी । फिर सोचा कि संभव है कोई और कारण रहा हो । जब गुरु को सिर से पैर तक गौर से देखा तो कारण भी समझ में आ गया ।
संभव है कि गुरु की दिलचस्पी लड़कियों में रही हो परंतु लड़कियों की उसमे कोई दिलचस्पी रही होगी इसमें मुझे शक है ।
क्यों ?
शायद इसीलिए की गुरु हीरो जैसा नहीं था । गुरु कभी भी बनने सवरने अथवा अपने कपड़ों पर ध्यान नहीं देता था । उसके कपड़े अक्सर बिना प्रेस किये, और कभी कभी तो थोड़ा बहुत कलर उड़ जाने के बाद भी गुरु उन कपड़ो को पहन लेता था (उस जमाने में रंग उड़े कपड़े फैशन का हिस्सा नहीं माने जाते थे) । वैसे गुरु हमेशा अपने साइज से बड़े कपड़े पहनता था, उसे वो सुविधाजनक लगते थे । आज लगता है कि उन कपड़ो में वो दुबला पतला सा लड़का शायद मूर्ख अधिक दिखता होगा । गुरु को उस जमाने में इसकी परवाह ही कहाँ थी । वैसे अब भी अधिक नहीं है । इस वक़्त मेरे सामने बैठे गुरु की पेंट इतनी बड़ी है अगर बेल्ट न लगी हो तो पूरी तरह पैरों तक गिर जाएगी, और टीशर्ट यही कोई 200 – 250 रुपये वाली ।
वैसे गुरु के कपड़ो का उसके गरीब होने से कोई लेना देना नहीं है, ना ही उस जमाने में था । चलो उस जमाने में मान लेते है कि एक मिडिल क्लास फैमिली से संबंधित होने के कारण सीमित कपड़े होंगे, परंतु वर्तमान में तो ऐसा कुछ नहीं । कपड़ो का यह स्वरूप उसकी आदत या सुविधा कहा जा सकता है ।
गुरु का शोंक कपड़े नहीं गाड़िया है, शायद इसीलिए उसके पास आज 3 महंगी गाड़िया है । अब गाड़ियों की बात चली है तो गाड़ियों से संबंधित एक घटना याद आ रही है । वैसे तो असंबंधित है फिर भी सुना देता हूँ ।
एक दफा गुरु को विजयवाड़ा से कुछ आगे तक जाना था तो गुरु ने शौकिया तौर पर ही गाड़ी से जाने का फैसला कर लिया । लंबा सफर और गुरु अकेले ड्राइव करते हुए निकल पड़ा । यकीनन गाड़ी में बहुत तेज आवाज में गाने बज रहे होंगे । गाड़ी में तेज आवाज में गाने चला कर सुनना गुरु की पुरानी आदत है । रातभर का सफर करने के बाद गुरु हैदराबाद पहुंचा जहां पर थोड़े आराम के साथ नाश्ता वगेरह भी किया और उसके बाद आगे का सफर शुरू कर दिया ।
हैदराबाद से सूर्यपेट या विजयवाड़ा की तरफ जाने वाले लोग अक्सर बस का इस्तेमाल करते है । परंतु यहां पर कुछ ऐसा देखा जाता है कि कुछ लोग बस का इंतज़ार नहीं करके किसी गाड़ी में लिफ्ट लेकर भी यात्रा करते है । हालांकि इसे लिफ्ट कहना सही नहीं है क्योंकि इस तरह की लिफ्ट में अक्सर सवारियां टिकट का पैसा गाड़ी वालो को देती है । इससे जो लोग अकेले सफर कर रहे होते है वो दो या तीन सवारियां बैठा लेने से आने जाने का खर्च कम हो जाता है । इस तरह की पूलिंग हैदराबाद में बहुत कॉमन है । इसके अतिरिक्त अहमदाबाद से गांधीनगर जाने वाले भी अक्सर इस तरह की पूलिंग करते है । अन्य शहरों में भी शायद होता हो मुझे जानकारी नहीं है ।
सुबह सुबह जब गुरु ने आगे की यात्रा आरम्भ की तो चोंक पर खड़ी सवारियां लिफ्ट का इशारा करने लगी । गुरु ने देखा कि 3 बच्चे, शायद किसी स्कूल के, भी उसी भीड़ में मौजूद है । गुरु ने उन तीन बच्चों को गाड़ी में बैठा लिया । ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि गुरु को उनसे मिलने वाले किराए का लालच होगा, क्योंकि गुरु शौकिया मुम्बई से ड्राइव करके ला रहा ।
लगभग 4 घंटे का सफर और तीनों विद्यार्थी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे हुए अपनी भाषा में बातचीत करते रहे जिसे गुरु नहीं समझ सका परंतु बच्चों के उसके साथ व्यवहार और हरकतों से इतना स्पष्ट था को वो गुरु को गाड़ी का मालिक नहीं ड्राइवर ही समझ रहे थे । बच्चों के लिए गुरु की मालिक के रूप में कल्पना थोड़ी मुश्किल जो थी, तकरीबन 35 लाख की नई चमचमाती गाड़ी और ड्राइविंग सीट पर बैठे आदमी ने एक ढीली ढाली पेंट और शायद 200 से 300 रुपये की टीशर्ट पहनी हो तो उसके मालिक होने पर यकीन करना संभव जान नहीं पड़ता ।
आखिर बच्चे अपने गंतव्य पर पहुंच कर उतरे तो गाड़ी के दरवाजे बंद किये बिना ही चले गए । करना चाहिए भी नहीं, ड्राइवर साहब का काम है दरवाजे बंद करना, आखिर ड्राइवर रखे किस लिए जाते हैं । गुरु कपड़ों ने गुरु को ड्राइवर बना दिया ।
गुरु के हिसाब से जो कपड़े सुविधाजनक थे उन्होंने गुरु को गर्ल फ्रेंड बनाने में सहायता नहीं की, बल्कि ऐसा कहा जाना चाहिए की गर्लफ्रेंड नहीं बनने दी । और गुरु विद्यार्थी बना रह सका ।
बहुत कुरेदने पर या इस तरह कहा जाए कि बहुत सोचने के पश्चात गुरु ने स्वीकार किया कि कॉलेज के जमाने में उसके साथ कई लड़कियां थी परंतु उन सबके साथ कुछ ना कुछ समस्या थी । जैसे कि एक लड़की थी जो इतने टाइट कपड़े पहनती थी कि गुरु की पसंद हो ही नहीं सकती थी । वही एक और लड़की थी जिसके चलने का ढंग गुरु को पसंद नहीं था । एक और लड़की थी जिसे शायद गुरु पसंद कर सकता था परंतु वो बहुत ज्यादा बोलती थी, शायद ही कभी चुप होती हो । गुरु उस जमाने में बहुत ही कम बोलने वालों में गिना जाता था । मतलब यह कि सभी लड़कियों में कुछ ऐसा था जो गुरु उनसे दूरी बनाए रख सका और उसकी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं बन सकी और गुरु विद्यार्थी बना रह सका |
अब गुरु की आयु काफी अधिक है और उसके कपड़े आज भी वैसे ही है । तो क्या आज भी गुरु की कोई गर्लफ्रैंड नहीं है ?