कैदी नंबर 306 (revised)

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कैदी नंबर 306

हम है राम खिलावन, कैदी नंबर 306, उम्र 52 साल और यहाँ जेल मैं सजा काट रहे है

आज बेशक एक कैदी से ज्यादा कुछ नहीं परन्तु कैदी होने से पहले  हम एक प्रेस रिपोर्टर थे घर पर एक घरवाली भी थी अब अइसन है की बाहरवाली रखने की तो हमारी औकात ही ना थी इसीलिए बस घरवाली थी और हाँ एक लड़का भी था | शायद अब भी होंगे शायद इसलिए क्योंकि पता नहीं पिछले 2 सालों से हम तो कैदी नंबर 306 है और घरवाली और लड़के से मुलाकात नहीं हुआ है पर कहीं न कहीं तो जरूर होंगे

अब ऐसा है की यहाँ जेल में टाइम बहुत सुस्त चलता है और यहाँ पर टाइम बिताने का सबसे अच्छा साधन है दूसरे कैदियों से बाते करते हुए एक दूसरे के किस्से सुनते और अपने किस्से सुनाते हुए मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान की वृद्धि करना | वैसे तो अखबार है बाहर की दुनिया की ख़बरों के लिए सबसे अच्छा साधन है नए आने वाले कैदी | वैसे नए कैदी कुछ मानसिक परेशानी भी अनुभव करते है तो उनके लिए पुराने कैदियों से बात चित टॉनिक का काम भी करती है | आज एक नया कैदी आया जय जेल में उसका नाम है नाथूराम |

रामखिलावन : नमस्कार नाथूराम जी

नाथूराम : हम्म

रामखिलावन : बहुत परेशान दिख रहे हो

नाथूराम : यह जेल है कोई ऐसी जगह नहीं जहाँ आकर खुश हुआ जाये

रामखिलावन : सही बात है परन्तु अब तो आ गए हो परेशान होने से कुछ नहीं होगा

नाथूराम : बात तो सही है परन्तु दिमाग ससुरा मानता नहीं

रामखिलावन : खाली दिमाग शैतान का घर होता है दिमाग तो कुछ काम दो

नाथूराम : जैसे की

रामखिलावन : कुछ अपनी कहो और कुछ दूसरों की सुनो

नाथूराम  : परन्तु में तो यहाँ किसी को नहीं जानता

रामखिलावन : अरे हम है न रामखिलावन तुम कहो हम सुनेगे

नाथूराम : नहीं नहीं तुम कहो अपनी में बस सुनुँगा

रामखिलावन : अच्छा ठीक है फिर सुनो

 

कुछ बरस पहले की बात है जब मैं अपनी रामदुलारी यानि की  बाइक से आफिस जा रहा था सामने  देखा तो गाड़ियों की भीड़ दिखाई दी भीड़ में कुछ भी देख पाना संभव नहीं था ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई एक्सीडेंट हो गया है । भीड़ और हवलदार  जिस तरह से डंडा लहरा रहा तो ऐसा लगता था जैसे कि कोई बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुआ हो । मुझे एक्सीडेंट और बहते हुए खून को देख कर मितली आ जाती है फिर भी डरते डरते नज़दीक पहुंच गया गौर से देखा तो सुकून मिला कोई एक्सीडेंट नहीं था बस पुलिस चेकिंग चल रहा था में भी अपने पेपर चेक करवाने के लिए लाइन में लग गया । ऐसा नहीं था कि सबको रुकना पड़ रहा हो कुछ लोग सड़क पर गाड़ी हवलदार के पास और लगभग तुरंत  ही रवाना हो जाते ऐसा क्यों था की कुछ लोग लम्बी लाइन मैं खड़े थे पेपर चेक करवाने के लिए और कुछ लगभग बिना रुके निकल रहे थे मुझे उत्सुकता हुई जानने की | लाइन मैं पीछे खड़े पडोसी ने बताया की जो लोग हवलदार को 50 रूपये दे रहे है उनको जाने दिया जा रहा है जो नहीं दे रहे उनको लाइन मैं खड़ा किया जा रहा है ध्यान से देखा तो पता चला की बात सही थी खेर हमें क्या हमने  अपने पेपर चेक करवाए और फिर ऑफिस चले गए

 

नाथू : अच्छा आपने शिकायत नहीं की बड़े अधिकारीयों से

राम : अब ऐसा है नाथू भाई हवलदार जो रिश्वत ले रहा था उसमे बड़े साहब का भी तो हिस्सा था तो बड़े साहब मेरी शिकायत क्यों सुनते |

नाथू : आप उससे बड़े साहब को भी शिकायत कर सकते थे न

राम : उससे क्या होता मेरे कई चक्कर इधर से उधर लग जाते और हम ठहरे काम धंधे वाले लोग हमारे पास बर्बाद करने के लिए टाइम कहाँ है |

नाथू : आप ऐसा सोचते है

राम : उस वक़्त ऐसा ही सोचता था

नाथू : अब ऐसा नहीं सोचते

राम : नहीं अब हम लड़ने को तैयार है

नाथू : बहुत बढ़िया किस्सा था कुछ और सुनाइए

राम : ठीक तो एक और किस्सा सुनो

 

कुछ दिन बाद सब्जी मंडी का चक्कर  लगा बहुत भीड़ थी ऐसा नहीं है की सब्जी मंडी के लिए जगह कम  हो पर क्या है न की पार्किंग वाली जगह पर और लोगों के चलने वाली जगह पर फेरी वालों ने कब्ज़ा कर रखा है इसीलिए लोग गाड़ियाँ सड़क पर पार्क करते है और फिर भीड़ इतनी बढ़ जाती है की बस पूछो मत | चिड़चिड़ा कर शर्मा जी से शिकायत की और उनसे विचार विमर्श किया ताकि अवैध कब्ज़े वाली पार्किंग पुलिस की मदद से खाली करवाई जा सके तो उन्होंने बताया की ऐसा है की अवैध कब्ज़े वालों से पुलिस हफ्ता लेते है इसीलिए शिकायत का कोई फायदा नहीं है | चलो कोई बात नहीं हमें क्या फर्क  पड़ता है हम भी दूसरों की तरह सब्जी ख़रीदे और घर आ गए

 

नाथू : हर जगह यही हाल है हमारे यहाँ भी सब्जी मंडी की जगह पर अवैध कब्ज़ा किये रहते है

राम : और हम मतलब रखते है सिर्फ सब्जी लेने तक

नाथू : सही बात है

राम : बाकि चाहे शहर में माफिया डॉन पालते रहे या पुलिस रिश्वत खा खा कर अपराध बढ़ने दे

नाथू : सही है

राम : और आखिर खामियाज़ा हमें या हमारी सन्तानो को भुगतना पड़ता है

नाथू : सही बात है कुछ और सुनाइए

राम : चलो फिर एक और किस्सा सुनो

 

कुछ दिन और गुजरे एक दिन सुबह सुबह बहार आये अखबार उठाने तो पता चला की हम हमारी रामदुलारी यानि की फटफटिया रात को अंदर करना ही भूल गए थे और अब क्या देखते है की रामदुलारी का साइड वाला बक्सा कोई चोर  चुरा  कर ही ले गए | हमने भी छाबड़ा जी की घंटी बजा दी और उनसे रिक्वेस्ट की ताकि वह पुलिस स्टेशन तक साथ चले और कम्प्लेन दर्ज़ करवा आएं अब छाबड़ा जी समझने लगे की भैया जी साइड वाला बक्सा  ही तो गया है 200 रूपये का नया लगवा लीजिये न पुलिस कम्प्लेन करेंगे तो सारी  की सारी  फटफटिया ही पुलिस खा जाएगी |  बात हमारी दिमाग मैं भी घुस गयी और हमने 200 रूपये मैं नयी बक्सा लगवा लिया

 

नाथू : वैसे तो छाबड़ा जी सही कह रहे थे परन्तु फिर भी आपको कम्प्लेन दर्ज़ करवानी चाहिए थी

राम : बिलकुल करवानी चाइये थे

नाथू : हमारे कम्प्लेन न करने से चोर गिरोह के होंसले बढ़ जाते है

राम : नाथू भाई आप बिलकुल सही कह रहे है परन्तु समस्या क्या है ना की उस वक़्त हमारे सोचने का तरीका कुछ अलग था

नाथू : सही बात है ज्यादातर लोग परवाह नहीं करते वह सिर्फ अपने से मतलब रखते है

राम : छोडो और आगे सुनो

 

कुछ दिन और गुजरे हमारे घर से 5 मकान छोड़ कर एक मकान बिक रहा था बहुत महँगा था साल भर से ग्राहक आ रहे थे कोई ले नहीं रहा था एक हफ्ता पहले बिक गया हमने भी शुक्र मनाया | क्या है न की हर हफ्ते कोई न कोई ग्राहक आ जाता था मकान के बारे मैं पूछताछ करने चलो अब मकान बिक गया झंझट खत्म हुआ शाम को ऑफिस से वापिस लोटे तो पता चला की नया मकान मालिक शिफ्ट हो गया है कोई पुलिस वाला है हमने भी सोचा प्रेस रिपोर्टर को पुलिस वाले से बना कर रखनी चाहिए न तो मिलने चले गए | अरे यह क्या यह  तो अपने भंडारी बाबू है पर भंडारी बाबू तो हैडकांस्टेबले है इतना महँगा मकान कैसे ले सकते है पर क्या करें भंडारी बाबू से पूछ तो नहीं सकते न तो चले आये चाय पीकर वापिस |

 

नाथू : पुलिस वाले रिश्वत खाने में माहिर होते है

राम : बात तो सही है परन्तु मेरी जानकारी में भंडारी बाबू तो रिश्वत नहीं लेते थे वह तो गऊ आदमी थे |

नाथू : तो राम भाई बिना रिश्वत के गऊ आदमी महंगा मकान कैसे ले लिए ?

राम : अब नाथू भाई इसका तो और बहुत इंतज़ाम हो सकता है

नाथू : जैसे की ?

राम : जैसे की वह जिस पुश्तैनी मकान में रहते थे उसको बेच कर अच्छा पैसा मिल गया होगा या फिर गाओं की ज़मीन ही बेचीं जा सकती है या फिर और कुछ जैसे की गहने आदि बेचे जा सकते हैं |

नाथू : हां ऐसा भी हो तो सकता है

राम : तुम तो आगे सुनो

 

घर आये तो रमेश जी इंतज़ार कर रहे थे आते ही लपककर गले मिले और हाथ मैं 1 लाख रूपये रखते  हुए बोले की रामभरोसे जी यह 1 लाख भंडारी बाबू को देने है उन्होंने हमारा एक ट्रक पकड़ लिया है उसको छोड़ने की कीमत है हमने भी रमेश बाबू को बोल दिया ऐसा नहीं हो सकता हमारे भंडारी बाबू  पैसा नहीं खाते | रमेश जी ने ज़बरदस्ती भेज दिया तो हम भी बुड़बुड़ाते चले गए पैसा देने और मजे की बात भंडारी बाबू ने वह  पैसा तुरंत ले लिया एक डकार तक नहीं ली चलो कोई बात नहीं कोनसा मेरा पैसा गया है

 

नाथू : मतलब की आपकी जानकारी गलत थी भंडारी बाबू रिश्वत कहते थे

राम : हाँ ऐसा ही कुछ मामला था बस उन्होंने मुखौटा अच्छी क्वालिटी  वाला चढ़ा रखा था

नाथू : इतना बढ़िया मुखौटा की आपको समझने में कई साल लग गए

राम : बिलकुल सही …….. हा हा हा ………

 

कुछ दिन और गुजरे दीनानाथ जी के पोते को पुलिस पकड़ कर ले गयी कुछ नशे वगैरह का मामला था अब एक ही मोहल्ले मैं रहते है तो दीनानाथ जी के साथ जाना पड़ा दीनानाथ जी ने हमको पुलिस स्टेशन भेज दिया और रास्ते  मैं खुद कुछ जरूरी काम निबटाने चले गए | हम भी सोच रहे थे की कैसा बुड़बक आदमी है लड़के की जमानत से ज्यादा जरूरी काम इनको और क्या सूझ गया | दीनानाथ जी आये और उन्होंने 2 लाख दिए SI को और बस लड़के को लेकर घर आ गए न कोई केस हुआ न कोई जमानत न कोर्ट कचहरी, पुलिस ने पैसा खा कर सब थाने  मैं ही निपटा दिया | पर हमें क्या कोनसा हमको अपनी जमानत करवानी थे

 

नाथू : सही बात है ना तो आपको जमानत करवानी थी और ना आपके बाप को

राम : …….. हा हा हा हा  ….. आगे सुनिए

 

कुछ दिन और गुजरे।  ……

 

नाथू : रुकिए साहब

राम : रुक गए साहब हुकम कीजिये

नाथू : राम भाई आपके किस्से मजेदार है परन्तु छोटे छोटे है कुछ बड़ा किस्सा सुनाइए

राम : बड़ा किस्सा चलिए फिर आपको यह बताते है की रामखिलावन यानि की हम यहाँ कैसे पहुंचे

नाथू : अब आप सही किस्सा सुनाने जा रहे है | पहले आप सुनाइए फिर में भी आपको बताऊंगा की में कैसे यहाँ पर पहुँच गया |

राम : आपकी बात ठीक है | अब ऐसा है की कहाँ तक सुनाते रहे सब जानते है की पुलिस क्या है और कैसे काम करती है कैसे झूठे केस बनती है कैसे मुजरिमों को छोड़ देती है सब पैसे का खेल है  पर एक दिन हमारे शहर के तो भाग ही खुल गए सुबह सुबह जागे तो पता चला की हमारे शहर की पुलिस तो एकदम ईमानदार और दूध की धुली बन गयी अब ये रिफ़ॉर्म कैसे हुआ वह सुनो |

 

हां तो कुछ दिन गुजरे थे एक दिन सुबह सुबह पेपर उठाने बाहर गए तो देखा की मोहल्ले मैं सब इकठे हो रहे है कहीं जाने के लिए काफी उत्तेजित दिख रहे थे हमने भी सोचा की मोहल्ले की कोई समस्या होगी सो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है | हमने भी अखबार छोड़ा और उन सबके साथ चलने की तैयारी करने लगे |  पता चल की सब पुलिस स्टेशन जा रहे है हमने भी पेन्ट-शर्ट  पहनी अपना कैमरा कलम उठाई और पुलिस स्टेशन की और भाग लिए | और पुलिस स्टेशन पर क्या देखते है |

अरे यह सामने तो पूरा का पूरा पुलिस थाना ही घिरा हुआ है भीड़ बहुत ज्यादा है बीच बीच मैं हमारे मोहल्ले वाले भी दिख रहे थे कुछ पुलिस वाले भी दिख रहे थे जो एक तरफ खड़े थे सीना फूला कर | फूल नारेबाज़ी पुलिस की जयकार हो रही थे फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ भीड़ अचानक पुलिस थाणे मैं घुस गयी खूब हंगामा हुआ जब भीड़ छंटी तो वहां बच गयी थी बस 2 आदमियों के मुर्दा जिस्म पहचाने भी नहीं जा रहे थे हम अपने कैमरा के साथ दूर एक तरफ खड़े रहे पास जाकर फोटो लेने की हिम्मत नहीं हुई बताया था न की एक्सीडेंट खून वग़ैरा से मितली  होने लगती है |

तभी अपने भंडारी बाबू दिखाई दिए सोचा की उनसे डिटेल पता की जाये शायद अख़बार मैं छपने लायक कुछ हो भंडारी बाबू ने बताया की  कल देर रात  तकरीबन 10 से 11 के बीच अपने भूतों वाले बगीचे मैं एक लड़की का रेप और उसका क़त्ल हो गया उसी सिलसिले मैं दो लड़के गिरफ्तार किये थे | रेप और क़त्ल करने के बाद ट्रैन से भागने की कोशिश कर रहे थे तुरंत कार्यवाही की और पकड़ लिए | बाकि आप देख ही रहे हैं की कैसे भीड़ बेकाबू हो गयी और दंगे मैं दोनों लड़के मारे  गए |  हमने सोचा चलो अच्छा हुआ साले मारे गए ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए थी सालो को |

भंडारी बाबू का फोटो लिया और फिर चलने की सोच ही रहे थे अभी तक मुर्दा जिस्म वही पड़े थे | एक बार तो सोचा की ऑफिस चला जाये फिर  सोचा की चलो हिम्मत करके दोनों लाशों की फोटो ले ली जाये ताकि अखबार मैं छाप कर वाह वाही कमाई जा सके |  अकेले जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी अब लाश हमला तो कर नहीं सकती पर डर तो लगता ही है न  इसलिए भंडारी बाबू से साथ चलने की रिक्वेस्ट कर दी |  भंडारी बाबू तो तैयार ही बैठे थे हमने भी कैमरा लाशों की तरफ किया और दबा दिया बटन 5 या 7  बार बस फिर जल्दी से  दूर हट  गए |

 

नाथू : अच्छा आपने लाशों को देखा भी नहीं

राम : नहीं खून बहुत थे और मुझे खून से समस्या होती है फिर लाशों की हालत ऐसी नहीं थी की एक नज़र में पहचाना जा सके |

नाथू : बिना देखे कैमरा का बटन दबा देने से बढ़िया फोटो आ गया ?

राम : जरुरी तो नहीं था इसीलिए हमने चेक करना जरूरी समझा |  आप आगे सुनिए

नाथू : हां हां सुनाइए

 

साइड मैं जाकर जब डिस्प्ले मैं देखा तो देखा की दोनों लड़को के कपड़े कुछ पहचाने से है गौर से देखा तो दोनों लड़के भी पहचाने से लगे धीरे धीरे पहचान पाए एक तो अपना भावेश था और दूसरा उसका छोटा भाई |

 

नाथू : कौन भावेश

राम : अरे अपने मुन्ना के दोस्त कल दोपहर मैं ही आये थे |

नाथू : अरे

 

यह दोनों लड़के तो कल शाम 7 बजे से लेकर 12 बजे तक मेरे साथ ही थे हम लोग होटल भानु मैं डिनर कर रहे थे और उसके बाद रेलवे स्टेशन चले गए 12 बजे उन दोनों की ट्रैन थी स्टेशन पर ही थे हम जब ट्रैन आयी और हम दोनों लड़कों को डिब्बे मैं बैठा कर घर चले आये |

 

नाथू : अरे जब दोनों लड़के 7 से 12 तक आपके साथ थे तो रेप और कत्ल कैसे कर सकते थे

राम : वही तो

नाथू : तो आपने क्या किया

राम : मैंने सोचा शायद पुलिस से कुछ गलती हुई है और हमें पुलिस को सच बता देना चाहिए

नाथू : आपने बता दिया

राम : हाँ बिलकुल

नाथू : फिर

राम : अब आप यूं समझो को हम यानि की रामभरोसे पूरी ज़िन्दगी पुलिस से दूर भागते रहे चोरी की रिपोर्ट भी नहीं लिखवाई | मतलब की पुलिस से कोई उम्मीद ही नहीं रखी कभी और कभी पुलिस सामने से आ गयी तो हमने तो रास्ता ही बदल लिया | परन्तु उस दिन …….

नाथू : उस दिन क्या हुआ ?

राम : उस दिन गलती कर गए हमने सोचा की दो निर्दोष लड़के पुलिस ने पकड़ लिए और हमें पुलिस को बताना चाहिए बस यही सोच कर हम भंडारी बाबू के पास भागे भागे गए और उनको बता की यह दोनों लड़के तो कल सारी  शाम  हमारे साथ थे |

नाथू : अच्छा फिर भंडारी बाबू ने क्या किया |

राम : पूछो मत नाथू भाई  बस  आफत टूट पड़ी हमारे ऊपर भंडारी बाबू ने तुरंत हमको मुजरिमो के तीसरे साथी के रूप मैं कोर्ट मैं पेश कर दिया और फिर बस क्या बताएं क्या क्या हुआ बस अब हम कैदी नंबर 306 है |

नाथू : बहुत बुरा हुआ

राम : बुरा हुआ या अच्छा हुआ यह तो पता नहीं परन्तु मेरा सोचने का और काम करने का नज़रिया पूरी तरह बदल गया |

नाथू : अच्छा वह कैसे

राम : आज इतने पर ही बस करते है अभी रात होने वाली है फिर कभी बैठेंगे एक साथ

नाथू : बिलकुल ठीक