हुर्रर्रर ….
दादा : अरे बिटवा ….
बिटवा : हुर्रर्रर
दादा : अरे काहे डर गए बिटवा
बिटवा : अरे दादा अइसन लगा कि कोई दरिंदा झपट पड़ा … थोड़ा धीरज से बुलाया करो
थोड़ी देर बाद
दादा : अरे बिटवा …
बिटवा : हुर्रर्रर
दादा : अरे फिर डर गए बिटवा इस बार तो धीमे से पुकारा था
बिटवा : अइसन लगा कोई जानवर कूद पड़ा … थोड़ा और धीमा पुकारा करो
थोड़ी देर बाद
दादा : अरे बिटवा …
बिटवा : हुर्रर्रर
दादा : अब काहे डर गए अब तो बहुत ही धीमे पुकारा था
बिटवा : अइसन लगा कोई भूखा भेड़िया गुर्रा रहा था …. तुम बस पुकारा ही मत करो
दादा : क्या हुआ बिटवा कहीं दोपहर में कीकर के पेड़ के नीचे से तो नहीं निकले थे उस पेड़ पर भूत रहता है
बिटवा : नहीं
दादा : तो जरूर शाम के वक़्त कोने वाले पीपल के नीचे गए होंगे वहाँ भयानक चुड़ैल रहती है
बिटवा : नहीं
दादा : समझ गया तो तुम रात में उस तालाब वाले खंडहर में गए थे उसमे तो बहुत भारी प्रेत रहता है । किसी को ना छोड़ता ।
दादा : अरे बहुरिया वो मंदिर वाले तांत्रिक को बुलवाओ जल्दी वरना अपना बिटवा तो गया काम से
बिटवा : नहीं दादा खंडहर में नहीं गया था
दादा : और तो कोई भूतिया जगह नहीं अपने गांव में फिर क्या हुआ क्यों हर तरफ दरिंदे, जानवर, भेड़िये दिख रहे तुझको
बहुरिया : अरे इसे कुछ ना हुआ यह facebook पर नारीवादी साहित्य पढ़ कर आ रहा है । दो दिन फोन छीन लो ठीक हो जाएगा
दादा : अइसन बात है जरा लठ तो पकड़ा मेरा