भोली भाली सी एक लड़की – 02

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भोली भाली सी एक लड़की

रीमा नाम की एक भोली भाली खूबसूरत सी लड़की की ज़िंदगी में संघर्ष के कुछ साल | संपूर्ण कथानक चार भागों में लिखा गया है

 

  • रीमा
  • नवजीवन
  • समाज सेविका
  • संघर्ष

नवजीवन 

 

जैसे ही रीमा ने अपना टिकट T.T. को दिखाया तो उसे पता चला की वह गलत ट्रैन में बैठ गयी है और अब बिलकुल उलटी दिशा में आ पहुंची है | अब रीमा के हाथ पैर फूल गए उसे समझ नहीं आ रहा था की क्या करना चाहिए | T.T. सज्जन व्यक्ति थे उन्हें रीना की परेशानी समझ आ रही थी परन्तु उन्हें ट्रैन के साथ बहुत आगे तक जाना था इसीलिए वह कुछ कर पाने में असमर्थ थे | उनके हाथ में सिर्फ इतना ही था की अगले स्टेशन पर रीमा को उतार दे जहां से रीमा वापसी की ट्रैन पकड़ सके | वापसी की ट्रैन कई घंटो बाद मिलती और तब तक रीमा को स्टेशन पर ही इंतज़ार करना पड़ता | एक घबराई हुई बच्ची अपने बल पर यह कर पायेगी या नहीं इसमें T.T. महोदय को शक था |

रीमा के बगल वाली सीट पर बैठा 35 – 40 वर्ष का व्यक्ति जो शायद T.T. का जानकार थे | वह हर रोज T.T. को इसी ट्रैन में सुबह शहर जाते हुए और दोपहर बाद वापिस लौटते हुए मिलता था | टी.टी. अपने खाली वक़्त में इस व्यक्ति से गप्पें भी लड़ा लिया करते थे या कभी चाय नाश्ता भी एक साथ बैठ कर कर लिया करते थे | उस व्यक्ति का नाम नवजीवन था | टी.टी. और नवजीवन की मुलाकात ट्रैन तक ही सीमित थी परन्तु हर रोज का यात्री होने के कारण टी.टी. नवजीवन के बारे में बहुत कुछ जानते थे और उन्हें यकीन था की यदि नवजीवन से रीमा की सहायता के लिए कहा जाये तो वह इंकार नहीं करेगा | समस्या थी की किस तरह की मदद मांगी जाये |

टी.टी. : बिटिया तुम गलत ट्रैन में आ गयी हो वापिस कैसे जाएगी

रीमा : क्या आप मुझे बता सकते है की किस स्टेशन से मुझे वापसी की ट्रैन मिल सकेगी

टी.टी. : वापसी की ट्रैन तो आगे आने वाले किसी भी स्टेशन से मिल जाएगी परन्तु देर रात तक इंतज़ार करना पड़ेगा

टी.टी.  : नवजीवन क्या तुम बिटिया की कुछ मदद कर सकते हो

नवजीवन : किस किस्म की मदद चाहिए

टी.टी. : बिटिया को स्टेशन पर उतरना है और वापसी की ट्रैन पकड़नी है

नवजीवन : दो स्टेशन के बाद तीसरा स्टेशन मेरा है वहां इंतज़ार करने का साधन तो नहीं है परन्तु में इसे पंचायत भवन में पहुंचा सकता हूँ जहाँ इनके कई घंटे रहने का इंतज़ाम हो सकता है |

टी.टी. : इसे देर रात ट्रैन पकड़नी है |

नवजीवन : देर रात तो गाओं से स्टेशन आने का कोई साधन मिलना मुश्किल है कल सुबह वाली ट्रैन में बैठा सकता हूँ |

टी.टी. : कल सुबह तुम भी तो आओगे तो साथ ही लेते आना

नवजीवन : नहीं कल रविवार है

टी.टी. : ओह हाँ मुझे ध्यान नहीं रहा

टी.टी. : तो बिटिया देर रात तक सुनसान स्टेशन पर बैठे रहना तो सही नहीं लगता इसलिये ऐसा ही करो आज रात पंचायत भवन में गुजार लो और कल सुबह वापसी की ट्रैन पकड़ लेना

रीमा : ठीक है |

नवजीवन का स्टेशन आया और ट्रैन नवजीवन के साथ साथ रीमा को भी छोड़ कर आगे बढ़ गयी | इससे आगे गाओं तक का सफर नवजीवन और रीमा ने पैदल चलते हुए ही किया | हलाकि नवजीवन के पास साइकिल थी जो स्टेशन पर खड़ी थी और गाओं तक नवजीवन साइकिल से ही जाता था परन्तु आज दोनों पैदल ही जा रहे थे | दोनों चुपचाप गाओं की तरफ चले जा रहे थे | ऐसा लग रहा था जैसे की नवजीवन की बातचीत में दिलचस्पी ना रखते हो या शायद उसके पास बातचीत करने का कोई विषय ही ना हो |

रीमा के पास पैसे नहीं थे और उसे वापसी का टिकट भी लेना था और खाने का इंतज़ाम के अलावा पंचायत भवन में भी कुछ पैसा देने की आवश्यकता होती इसीलिए रीमा का नवजीवन से बातचीत करना आवश्यक था | अंततः रीमा ने खामोश नवजीवन को टोक ही दिया

रीमा : साहब क्या आप बता सकते है वापसी का टिकट कितने का होगा

नवजीवन : 25 रुपये

रीमा : पंचायत भवन में कितना रुपया देना होगा

नवजीवन : पंचायत भवन में कुछ नहीं देना होगा | यदि कोई परेशानी है तो स्पष्ट बताओ

रीमा : मेरे पास कुल मिलकर 15 रुपये ही है

नवजीवन : हम्म

रीमा : यदि कहीं काम मिल जाये तो

नवजीवन : छोटा मोटा काम ही मिल सकता है |

रीमा : कोई भी काम मिल जाये

नवजीवन : कुछ सोचने के बाद नवजीवन ने पूछा खाना बनाना आता है

रीमा : हां

नवजीवन : ठीक है फिर आज शाम का खाना मेरे घर पर बना लेना रात का खाना खा कर पंचायत भवन जाना और कल स्टेशन जाने से पहले अपना खाना पैक करके ले जाना टिकट में ले दूंगा

रीमा : ठीक है

काफी लम्बा रास्ता तय करने के बाद सामने फलों का बड़ा बगीचा दिखाई देना लगा उसी बगीचे में दो मंज़िल मकान भी दिखाई दे रहा था वही नवजीवन का निवास स्थान था | इसी बगीचे से आगे जाने पर गाओं की सीमा आरम्भ होती थी | रीमा और नवजीवन उसी दो मंज़िलें मकान में आ गए जहां रीमा को चाय वगैरह भी पीने को मिली | नीचे की मंज़िल पर रसोई आदि थे जबकि नवजीवन ने अपने रहने का इंतज़ाम ऊपरी मंज़िल पर कर रखा था | शाम का खाना बनाने के लिए अभी वक़्त था इसीलिए रीमा अपने खाली वक़्त में बगीचा देखने के लिए बाहर निकल आयी जबकि नवजीवन ऊपरी मंज़िल पर चला गया |

नवजीवा के पिता किसान थे और नवजीवन पिता की किसानी में योगदान देने के साथ पढ़ाई भी किया करता था | पिता की मृत्यु के पश्चात नवजीवन ने खेतों को फलदार बागों में परिवर्तित कर दिया और खुद शहर में नौकरी कर ली जहाँ सुबह से दोपहर तक उसे हिसाब किताब देखना होता था और शाम को नवजीवन अपने बागों की देखभाल कर सकता था | और रहने के लिए उसके पास मकान था ही | नवजीवन ने शादी नहीं की इसीलिए खाने वगैरह के लिए उसे खुद ही हाथ पैर चलने पड़ते थे परन्तु यह कोई समस्या नहीं थी |  सुबह का खाना वह शहर में खा लिया करता था और शाम का खाना घर पर बना लिया करता था | आज शाम का खाना रीना बना रही थी इसीलिए नवजीवन अपने कमरे में आ कर लेट गया |

रीमा समय बिताने के लिए फलदार बागों की तरफ चली गयी जहाँ उसने कई तरह के फल टेस्ट करने का अवसर भी मिला जो उसे बहुत पसंद भी आये और वापिस आते आते थोड़ी देर भी हो गयी थी शायद इसीलिए खाना बनाते और खाते हुए रात हो गयी | जब रात में नवजीवन रीमा को पंचायत भवन पहुँचाने के लिए गया तब उसे मालूम हुआ की पंचायत भवन में एक बारात ठहरी हुई है और वहां जगह नहीं है | अलबत्ता उसे और रीमा को वहां खाने के लिए ढेर सारी मिठाइयां जरूर मिल गयी | लिहाज़ा रीमा को नवजीवन के मकान में ही निचली मंज़िल पर रात गुजारनी पड़ी | और यह सुविधाजनक भी था अगली सुबह रीमा को सुबह जल्दी उठ कर खाना तैयार करना था और फिर रेलवे स्टेशन भी जाना था | परन्तु रात में कुछ अधिक खा लिया था और नींद भी देर रात आयी शायद इसीलिए ही जब नवजीवन की आँख खुली तब सूरज भी अपनी आँखें खोलने की कोशिश कर रहा था और इसका मतलब था की ट्रैन पकड़ने के लिए बहुत अधिक देर हो चुकी है | रीमा अभी भी सो रही थी | लिहाजा उस दिन रीमा ट्रैन नहीं पकड़ सकी | दिन में नवजीवन बागों की देखभाल करता रहा और रीमा उसका सहयोग करती रही |

दोपहर में खाने के दौरान नवजीवन रीमा की जीवन गाथा भी सुनता रहा और अंत में जब रात आयी और दोनों खाना वगैरह खा चुके तब नवजीवन ने रीमा से कहा की जल्दी सो जाये ताकि अगली सुबह ट्रैन पकड़ी जा सके |  कहने के बावजूद रीमा इधर उधर की बातें करती रही परन्तु अगली सुबह नवजीवन को भी तो अपने काम पर जाना था इसीलिए उसे जल्दी जागना ही था | लिहाज़ा अब स्पष्ट कहने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचा था |

नवजीवन : अच्छा ठीक है अब जा कर सो जाओ सुबह जल्दी रेलवे स्टेशन जाना है

रीमा : ठीक है (इसके बावजूद रीना बैठी रही )

नवजीवन : यदि कुछ कहना है तो स्पष्ट कह दो सुबह हमें जल्दी उठना है

रीमा : मैं सोच रही थी की यदि यहाँ गाओं में मुझे कोई छोटा मोटा काम मिल जाये तो

नवजीवन : तुम तो सेठ जी के पास जा रही थी न

रीमा : वहां भी तो काम करना है

नवजीवन : यह तो गाओं है यह कोई बड़ा काम तो मिलेगा नहीं

रीमा : छोटा मोटा ही सही

नवजीवन : हम्म पंचायत में देखना पड़ेगा शायद आँगन बाड़ी या स्कूल में कुछ काम मिल जाये

रीमा को पंचायत में छोटा सा काम मिल गया परन्तु रहने की समस्या कायम थी | काफी सोच विचार के बाद यह तय हुआ की रीमा नवजीवन के बाग में रखवाले के लिए बनाये हुए कमरे में रह सकती है और बदले में नवजीवन के बाग की देखभाल और नवजीवन के लिए सुबह शाम का खाना बना दिया करेगी |

रीमा मेहनती लड़की थी और गाओं में रहते हुए उसे तकरीबन दो साल हो चुके थे | इन दो सालों के दौरान रीमा ने काफी तरक्की कर ली थी | रीमा अभी भी नवजीवन के बाग़ वाले कमरे में रहती थी और पंचायत में काम कर रही थी | परन्तु अब पंचायत का काम उसके लिए महत्वपूर्ण नहीं था क्योंकि उसने अपना छोटा सा व्यवसाय शुरू कर दिया था | गाओं की महिलाओं से उसने बहुत तरह के अचार और मसाले बनाने सिख लिए थे और वह बाग़ में रहते हुए अचार, मसाले, पापड़, बड़ियाँ आदि बना लेती थी जिसे महीने में एक दिन शहर में बेच आती थी | शहर के कई दुकानदार और कई सेठ उसके अचार और मसालों के ग्राहक थे इसीलिए उसे भटकना नहीं पड़ता था |

अब रीमा की दिनचर्या बहुत व्यवस्थित थी | रीमा सुबह जल्दी उठ कर नवजीवन के लिए खाना बनती उसके बाद दो घंटे पंचायत का काम करती वापिस आकर आवश्यकता अनुसार अचार, मसाले आदि बनाती तब तक नवजीवन भी शहर से वापिस आ जाता तब दोनों मिलकर बाग की देखभाल करते और शाम को एक बार फिर रीमा नवजीवन के लिए खाना बनाने के बाद अपने कमरे में सोने चली जाती | दिनचर्या बहुत व्यस्त थी और अब रीमा की कमाई भी बहुत बढ़िया थी इसीलिए नवजीवन कई बार रीमा से कह चूका था की अब वह बागों की देखभाल और नवजीवन के लिए खाना बनाने का काम ना किया करे परन्तु बागों में घूमना उसे पसंद था और खाना उसे स्वयं के लिए बनाना ही थी इसलिए दो लोगों का बना लेती थी |

रीमा का व्यवसाय लगातार बढ़ता जा रहा था और इसके फलस्वरूप उसका बढ़ता बैंक बैलेंस उसे बहुत सुकून देता परन्तु कुछ समस्याएं हमेशा रहती है उनका कोई हल नहीं हो सकता | जब रीमा इस गाओं में आयी थी तब उसने देखा था की बाग़ से गाओं की तरफ जाते हुए रास्ते में शमशान आता है और शमशान के बगल से गुजरते हुए उसे कम्कपी छूट जाती | पंचायत के लिए जाते हुए अलग रास्ता था परन्तु गाओं के बाजार के लिए जाते हुए शमशान के बगल से ही गुजरना पड़ता था | इसीलिए बेशक खाना बनाने का काम रीमा कर रही थी परन्तु अब भी बाजार जाने और सब सामान खरीद कर लेन के लिए वह नवजीवन पर ही निर्भर थी | यहाँ तक की उसके अचार मसलों आदि के लिए भी जो ख़रीददारी करनी होती वह नवजीवन ही करके लाता |

रीमा के आने के बाद दोनों के जीवन में परिवर्तन आया था | रीमा को एक व्यवस्थित जीवन जीने का अवसर मिला तो वहीँ नवजीवन को खाना बनाने और खेत की देखभाल करने के लिए एक सहयोगी भी मिल गया था | दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता नहीं थी परन्तु फिर भी दोनों मिल कर एक दूसरे का जीवन थोड़ा सरल बना रहे थे |