मैं नवयुगीन सीता
Yuvraj Katare
मैं नवयुगीन् सीता हु
जो नही राम के वनवास कि सहभागी,
मैं नवयुगीन सीता हु
जो स्वयं रावन संग हु भागी।
त्याग, तपस्या कि कथा अब व्यथा है,
मैं तो हु बस आनन्द् रस अभिलाषी,
मै नवयुगीन सीता हु।
झूठ, कपत् धोखा, यह आभुषन् मेरे,
कानून नया मुझे सुख् देता घनेरे,
बस् एक ही इच्छा, लेते तुम संग फेरे,
कैसे भी कर दास बनाउ तुम्हे शाम सबेरे।
मैं नवयुगीन सीता हु ।
न मै सतयुग मे दबी, न द्वापर मे,
शासन मेरा ही चला सदा तुम्हारे घर मे,
मैंने ही लक्ष्मण रेखा तोड़ दी पल मे,
सोने का म्रगा मुझे चाहिए था उस वन में,
मै नवयुगीन् सीता हु।