Lockdown
Manish
काफी पहले शायद 1919-20 मैं वैश्विक महामारी फैली शायद भारत मैं भी इसका प्रभाव पड़ा कितना प्रभाव पड़ा यह कहना मुश्किल है | मुश्किल इसीलिए क्योंकि 100 साल पुरानी बात है और मैं उस वक़्त पैदा भी नहीं हुआ था संभव है महामारी सम्बन्धी दस्तावेज कहीं उपलब्ध हो परन्तु मुझे इसकी जानकारी नहीं है |
इसके बाद आयी भारत विभाजन के रूप मैं एक अन्य त्रासदी | इस त्रासदी को भी मैंने अपनी आँखों से नहीं देखा परन्तु मेरे परिवार के बुजुर्गों ने अवश्य ही देखा और भोगा और यही वह पीढ़ी थी जिसने स्वतंत्रता संग्राम मैं सक्रिय योगदान दिया था | जिस वक़्त मेरा जन्म हुआ और मेरा बचपन गुजरा वह ऐसा वक़्त थे जब हमारे पास मोबाइल या सोशल मीडिया नहीं था | इसका मतलब हमारे पास वर्चुअल मित्र न होकर वास्तविक मित्रों का एक बड़ा भंडार था | उस वक़्त TV भी नहीं होता था इसीलिए शाम और रात का वक़्त दादा दादी से गप्पे लड़ते हुए गुजरता था | उस वक़्त का और गप्पों अपना महत्व रहा है | इन्ही गप्पों की बदौलत ही हम विभाजन की त्रासदी का परिचय पा सके है | आने वाले समय मैं कई लेखकों ने अपने अनुभवों को सकलित भी किया |
1920 की महामारी, स्वतंत्रता संग्राम, विभाजन आदि ऐसी घटनाए रही है जोकि हमसे दो पीढ़ी पीछे के लोगों ने स्वयं देखी और अनुभव की जिसे उन्होंने हमारी पीढ़ी को अपनी यादों के रूप मैं दिया |
जब मैं अपनी पीढ़ी के विषय मैं सोचता हूँ तब मुझे ऐसा अनुभव होता है की हमारी पीढ़ी के पास ऐसा कोई अनुभव नहीं है जिसे यादगार दारोहर के रूप मैं अगली पीढ़ी को सौंपा जा सके | कुछ लोग मुझसे असहमत हो सकते है शायद कुछ लोग मोबाइल क्रांति को धरोहर के रूप मैं मान सकते है परन्तु मेरा विचार है की यह हमारी धरोहर हो सकती है परन्तु अगली पीढ़ी इससे अनजान नहीं रहने वाली | तो हमारे पास ऐसा यूनिक क्या है जिसे हम अपनी धरोहर मान सके |
2019 के आखिर और 2020 के शुरू मैं कोरोना महामारी के रूप मैं सामने आया | उस वक़्त भारत मैं कोरोना ने अपना असली रूप नहीं दिखाया था शायद इसीलिए भारतीय इसे अधिक सीरियसली नहीं ले सके | परन्तु उसी दौर मैं lockdown के द्वारा संक्रमण को रोकने का प्रयास किया गया |
आरंभिक lockdown सिर्फ 21 दिन के लिए था बाद में इसे बढ़ाया गया ।
यह वह समय था जो शायद मेरी ज़िंदगी मैं पहली बार आया था जब मेरे पास करने के लिए कुछ नहीं था | इससे पूर्व अध्ययन के दौरान परीक्षा के बाद कुछ समय ऐसा अवश्य आता था जिसमे कुछ वक़्त खाली रहना पड़ता था परन्तु यह ऐसा समय नहीं था जब की करने के लिए कुछ न हो | अधिकांशतया अपने खाली समय मैं मैं अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए बहार चला जाता था | सुबह से शाम तक बाहर कई बार तो दोपहर का खाना और शाम की चाय भी छोड़ दी जाती थी | फिर जॉब शुरू करने के बाद तो छुटी जैसे सातवे आसमान के बराबर बन गया | और पिछले 4 या 5 साल तो ऐसे रहे की छूटी भी नहीं ले पाया और शायद संडे के अलावा और कोई दिन नहीं था जब घर पर रह पाया हूँ
ऐसे व्यस्त कार्यक्रम मैं एक दिन अचानक पता चला की लगातार 21 दिन कहीं नहीं जाना है | शुरुआती तौर पर ख़ुशी अनुभव हुई | स्वाभाविक भी था क्योंकि लगातार कई वर्षों से छुट्टी नहीं मना सका था | ऐसे मैं पहला हार्दिक विचार यही था की चलो अब एक लम्बी और आवश्यक छुट्टी का आनंद लेंगे |
प्रथम दिन कुछ इसी आनंद मैं गुजरा भी कुछ समय TV पर कुछ Laptop पर कुछ समय सोने मैं और कुछ समय पढ़ने मैं बिता दिया | तकरीबन पहला सप्ताह समाप्त होते होते यह छुट्टी एक बोझ बन कर रहा गयी | पूरी की पूरी दिनचर्या की समाप्त हो गयी | ना सोने के समय सोया गया और ना जागने के समय जगा जा सका | दिन भर सोना और रात को 3 और कई बार 4 बजे तक जागते रहना | सब गड़बड़ होने लगा | ऐसा लगा की छुट्टी बोझ है इसे ख़तम होना चाहिए जल्द से जल्द |
फिर एक दिन विचार आया की यह एक यूनिक अवसर या घटना है जो आज हम अनुभव रहे है ऐसा अनुभव ना तो हमारी पिछली जनरेशन के पास है और ना ही शायद आने वाली जनरेशन के पास होगा | ऐसे मैं जरूरी है की हमारे अनुभव भी यादगार बनाया जाए | कुछ ऐसा किया जाना चाहिए जिससे की इस वक़्त को यादगार दरोहर के रूप में सहेजा जा सके |
घर से बाहर जाना संभव नहीं था इसीलिए नयी संभावनाओं की तलाश उपलब्ध सामग्री से ही करनी थी | ऐसे मैं मैंने अपने प्रयासों से 2 ऐसे साधन तलाश कर डाले जिसके लिए लिए घर से बहार जाने की आवशकता नहीं थी |
बचपन से ही पड़ने का शौंक रहा है पिछले कई वर्षों से अपने इस शोक से दूरी बनी हुई थी | हलाकि बहुत सारी किताबें खरीदी गयी परन्तु पढ़ने का अवसर नहीं आ पाया | ऐसे मैं जब वक़्त मिला तो घर पर उपेक्षित खजाने को एक बार फिर से अनमोल खजाने मैं बदल डालने का कार्य आरम्भ किया | आरंभिक 21 दिन और बाद के एक्सटेंडेड समय मैं कुल मिलकर 17 किताबों का अध्ययन किया | कुछ मुख्य किताबें इस प्रकार है |
- श्रीकांत – श्रीकांत शरतचंद्र की बहुत ही खूबसूरत किताब है । इसका नायक एक आवारा यात्री किस्म का व्यक्ति है । जो अपने जीवन के अलग अलग मोड़ पर कई महिलाओं से संपर्क में आया और इसी संपर्क का विस्तृत विवरण किताब का अनमोल खजाना है ।
- सच्चा झूठ – यशपाल द्वारा लिखित एक बेहतरीन किताब जो भारत विभाजन और विभाजन के बाद कि परिस्थितियों को बहुत ही रोचक एवं सवेदनशील तरीके से प्रस्तुत करती है । हालांकि कुछ भाग ऐसे हैं जो मुझे पसंद नहीं आये परंतु इसके अर्थ यह तो नहीं कि इनमें सचाई नहीं । कुल मिलाकर इस किताब को पढ़ना रोचक था ।
- अपना अपना सच – ओम प्रकाश शर्मा द्वारा लिखी हुई बहुत ही रोचक किताब । इस किताब की विशेषता यात्रा के दौरान विभिन जगहों का वर्णन और संगीत के विषय में नवीन जानकारी है ।
- The alchemist एवं कई विदेशी राइटर्स की कहानियों का संग्रह भी काफी रोचक था
17 किताबों को पढ़ पाना मेरे लिए उपलब्धि के सामान है परन्तु मेरी वास्तविक उपलब्धि रही अपने इस खजाने को सम्हालने की व्यवस्था कर पाना | lockdown के इस समय मैं घर पर मौजूद सामान की मदद से एक रैक बनाने मैं कामयाब रहा जोकि मेरे इस बिखरे ख़ज़ाने को एक जगह समेत सके | इस रैक को बनाने मैं दोनों बच्चों का सहयोग भी महत्वपूर्ण है | जहाँ बच्चों ने रैक बनाने मैं सहयोग किया वहीँ lockdown के बाद रैक की खूबसूरती बढ़ाने के लिए पेंट एवं उस पर पेंटिंग भी बच्चों ने ही की |
और सबसे आनंददायव वाक्य यही है की अब रैक पर बच्चों का पुर्रा कब्ज़ा है मुझे रैक को हाथ लगाने की इज़ाज़त नहीं और यदि कोई किताब की इच्छा हो तो मांगने पर दी जाती है | अति आनंददायक अनुभव |
ऐसा नहीं है की सिर्फ मैंने ही कुछ नया किया हो बहुत सरे मित्रों ने नया कुछ करने का प्रयास किया | सफलता मिलना या नहीं मिलना आवश्यक नहीं जैसे की
- गुरशरण सिंह ने इस दौर मैं दही जमाना और बूंदी का रायता बनाना सीखा इससे पूर्व मित्र को कभी भी दही ज़माने मैं सफलता नहीं मिल पायी थी । वेसे साहब खाना अच्छा बनाते है बस दही की कमी थी
- सुरेंद्र जी ने भी इस दौर को यादगार बनाने का प्रयास किया और उन्होंने कविता लिखने का प्रयास किया । तकरीबन 10 दिन एक कविता पर प्रयास किया और 11वे दिन मित्र मंडली में सुनाई कुछ मजा नहीं आया परंतु असफलता भी अपने आप में आनंददायक है
- हमारे एक अन्य मित्र जिन्होंने नाम ना देने की शर्त पर अपना अनुभव बताया तो हम नाम नहीं लिख रहे है उन्होंने अपने हाथों से एक शानदार कुर्ता पजामा तैयार किया बहुत ही शानदार । हमे जानकारी ही नहीं थी कि मित्र मंडली में ऐसा। कलाकार भी मौजूद है
- इस पूरे वक़्त में बाजार बंद था और बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी ऐसे में एक मित्र जिनका नाम सुंदर है बहुत ही लाभदायक रहे । उन्होंने अपनी कलाकारी से जलेबी का स्वाद याद दिलवा दिया । लगातार 3 दिन तक हर शाम चाय के साथ जलेबी पेश करते रहे । 3 दिन बाद उनका स्टॉक खत्म हो गया जिसका हमे बहुत अवसोस हुआ । और शर्त लगाकर अगले दिन मैंने पकोड़े तैयार करने का असफल प्रयास भी किया ।
इसी तरह बहुत सारे मित्रों ने अपने प्रयासों से lockdown को यादगार बनाने में मदद की उन सब का तहे दिल से धन्यवाद । और अंत में विदा लेने से पहले उन बुजुर्ग महोदय का जिक्र जरूर करना चाहूंगा जिन्होंने अपार्टमेंट में स्वस्थ के प्रति जागरूकता अभियान चलाया और हर रोज सुबह आकर घंटी बजाई ताकि सब लोग उनके टेम्पररी योगा क्लास में शामिल हो सकें । इसी क्लास के कारण सुबह जल्दी उठ जाने की आदत भी बनी जो कम से कम आज सुबह तक लागू है । कल की कल देखेंगे
धन्यवाद