Crime Against Men & Ignorant Society

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Crime Against Men & Ignorant Society

 

 

महिलाएं सम्मान लेकर पैदा होती है

जबकि पुरुषों को कामना पड़ता है

टीवी एक ऐसा साधन है जिसके विषय मैं हर व्यक्ति जानकारी रखता है यदि कोई यह कहे की टीवी के विषय मैं उसे जानकारी नहीं है तो सहज प्रवृति मानने से इंकार करती है किसी वक़्त टीवी सुचना के आदान प्रदान का माद्यम रहा है परन्तु वर्तमान मैं टीवी सुचना के साथ साथ मनोरंजन का बड़ा साधन बन कर उबरा है वर्तमान मैं टीवी पर छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के कार्यक्रम दिखाए और बनाये जा रहे है या यह कहा जाये तो उचित होगा की TV हर आयु वर्ग के व्यक्ति को प्रभावित करने मैं सक्षम है किसी वक़्त रेडियो एवं साहित्य का भी इसी तरह बोलबाला रहा है चंद्रकांता नमक किताब जोकि देवकी नंदन खत्री ने लिखी उसके बारे मैं दावा किया जाता है की लोगों ने किताब को पड़ने के लिए हिंदी सीखी इसी दावे से ही साहित्य का समाज मैं प्रभाव को समझा जा सकता है वर्तमान मैं साहित्य (विशेष तौर पर छपी हुई किताबों) के प्रति रूचि कम दिखाई दे रही है परन्तु इसका कारन यह नहीं है की लोग पड़ने मैं रूचि नहीं रखते इसका अर्थ सिर्फ इतना है को अन्य माध्यमों की उपलब्धता ने किताबों पर निर्भरता जरा कम कर दी है

किसी वक़्त जो स्थान किताबों का था आज वही स्थान ब्लॉग अवं सोशल मीडिया ने ले लिटा है इसका बड़ा कारन उपलब्धता है किताब को हर वक़्त साथ रखना पड़ता है जबकि सोशल मीडिया या ब्लॉग हर वक़्त आपके साथ रहता है फिर चाहे आप रेलवेस्टेशन पर रेल का इंतज़ार कर रहे हो या बिच पर डूबते सूरज की रौशनी मैं ठंडी एवं नम हवा के जोंके का आनंद उठा रहे हो

आजकल ब्लॉग से आगे निकलते हुए वीडियो ब्लोग्स भी काफी पॉपुलर हो रहे है इसका कारन शायद यह है की जो व्यक्ति पड़ने मैं दिलचस्पी नहीं रखते या कम रूचि रखते है वह भी वीडियो देख सकते है हाई स्पीड इंटरनेट एवं स्मार्ट फ़ोन की उपलब्धता ने वीडियो ब्लोग्स को और अधिक पॉपुलर बनाने मैं योगदान दिया है

आज जब हमारे पास हर तरह के साधन कम कीमत मैं उपलब्ध है तब यह आवशयक है की इन साधनो का व्यक्ति पर या समाज पर क्या प्रभाव पद रहा है यह जानकारी आवशयक है

कुछ सप्ताह पहले एक खबर पड़ने को मिली जिसके मुताबिक BLUEWHALE नामक खेल लोगों पर मानसिकता पर बुरा प्रभाव दाल रहा है और उनको आत्महत्या के लिए प्रेरित कर रहा है इसके बाद पड़ने को मिला की PUBG नमक खेल बच्चों पर बुरा प्रभाव डाल रहा है इस तरह की एडिक्टिवे खेल अक्सर आते जाते रहते है और कई बार चर्चा मैं भी आते है क्योंकि इनका प्रभाव तेजी से पड़ता है और आसानी से नोटिस किया जा सकता है परन्तु उन प्रभावों का क्या जो धीमे धीमे असर करते है ?

अक्सर हम और हमारा समाज उन सभी प्रभावों को इग्नोर कर देते है जिनका प्रभाव तेजी से नहीं पड़ता सोचने वाली बात है की क्या धीमे असर करने वाला जहर, जहर नहीं होता ?

वर्तमान मैं जो कोई भी सुचना के किसी माध्यम (टीवी, रेडियो, अखबार, सोशल मीडिया, ब्लॉग, वीडियो ब्लॉग आदि ) का इस्तेमाल कर रहा है उन सबके लिए ‘क्राइम अगेंस्ट वीमेन’ न केवल जाना माना शब्द है वहीँ पर ‘क्राइम अगेंस्ट मेन’ ना केवल अनजाना बल्कि अस्वीकृत शब्द बन गया है आखिर ऐसा क्यों ? ऐसा क्यों की एक ही माता पिता की संतान और दोनों के लिए अलग अलग तरह की सोच ?

महिलाएं सम्मान लेकर पैदा होती है

जबकि पुरुषों को कामना पड़ता है

हाल ही मैं २ लाइन का पोस्ट सोशल मीडिया पर दिखाई दिया पोस्ट मैं तो कोई विशेषता नहीं थी परन्तु विशेषता थी उस पोस्ट पर वाह वाह करने वालों मैं इस पोस्ट के जरिये इंसान ने भगवान् को भी अपने खेल मैं शामिल कर लिया ना लिखने वाले ने जरूरी समझा ना ही वाह वाह करने वालों ने पूछना जरूरी समझा की भगवान् अपने दो बच्चों के साथ भेदभाव क्यों और कैसे करेगा ?

खेर यह खेल भगवान् का नहीं हमारा अपना है ईश्वर को तो जबरदस्ती इसमें खिंच लिया गया है और यह खेल नया नहीं बल्कि बहुत पुराना है और इसका राज हमारे आस पास ही मौजूद है आखिर क्यों ऐसा है की ‘क्राइम अगेंस्ट वीमेन’ से सब परिचित है परन्तु ‘क्राइम अगेंस्ट मेन’ से ज्यादातर लोग सहमत नहीं इसका मुख्य कारन है की वर्तमान मैं सुचना का हर साधन पुरुष को अत्याचारी के रूप मैं पेश कर रहा है और इस पेशकश को देखने या सुनने वाले पर यह स्लो पाइजन की तरह असर करता है कब यह स्लो पाइजन सोचने की क्षमता को एक तरफ झुका देता है पता तक नहीं चलता

महिलाएं को सम्मान लेकर पैदा नहीं होना चाहिए

उन्हें भी पुरुषों की तरह कामना चाहिए

हाल ही मैं एक फिक्शन आधारित किताब मार्किट मैं आयी यक़ीनन किताब बहुत अच्छी बन पड़ी है इसे पड़ना अपने आप मैं आनंददायक है मैंने भी पढ़ा और यक़ीनन आनंद का अनुभव किया परन्तु इसी किताब का एक नकारात्मक प्रभाव भी दिखाई दे सकता है इसी किताब से उठाई हुई एक घटना का पहले अध्यन कर लेना उचित है

 

 

 

 

घटना का वर्णन निर्विरोध अत्यंत रोचक है परन्तु अब अगर यह सवाल पुछा जाये की क्या पाठक इस घटना और इस घटना के कारन उत्पन हुए न्याय से सहमत है मेरा स्वयं का अनुभव यह कहता है की अधिकांश लोग इससे सहमत होंगे बल्कि अधिकांश लोग कहेंगे की वास्तविक न्याय किया गया दामिनी रपे कांड के दौरान लोगों का ऐसा व्यवहार दिखाई भी दिया यदि कोई मुझसे यह सवाल करे की क्या वास्तव मैं मैं इस घटना और इस घटना के न्यायिक विवरण से सहमत हूँ

स्पस्ट रूप से मेरा जवाब नहीं होगा | ऐसा क्यों ? क्या मैं अपराधी को दी गयी सजा से सहमत नहीं हूँ

संभव है मेरा जवाब सुनकर कोई मुझसे सहमत न हो इस विषय मैं तर्क किया जा सकता है परन्तु आज नहीं फिर कभी क्योंकि आज मैं दी गयी सजा के विषय मैं बात नहीं कर रहा हूँ मेरा आज का मुद्दा है न्यायिक प्रकिर्या | अपराध और सजा के बिच मैं जो न्यायिक प्रकिर्या बल्कि सजा दिए जाते वक़्त भी कहीं पर भी अगर गौर किया जाये तो अपराधी को सजा बलात्कार करने की दी जा रही है परन्तु कहीं पर भी उन पुरुषों का जीकर तक नहीं जो की महिला का बलात्कार करने से पूर्व लाठियों से पीट पीट कर मर दिए गए उन पुरुषों को पूर्ण रूप से भुला दिया गया | मरने वाले पुरुषों का जिक्कर घटना के संदर्ब मैं आया उसके बाद न तो राजा के द्वारा न ही जज के द्वारा न ही जल्लाद के द्वारा और न ही पब्लिक के द्वारा पुरुषों के खिलाफ हुए जुर्म का जिक्कर हुआ सजा दिया जाना तो बहुत दूर की बात है

मुख्य रूप से एक बहुत अच्छी किताब मैं यह बताया जा रहा है पुरुषों की दर्दनाक हत्या जिक्कर करने लायक भी नहीं है हो सकता है की ऐसा इसीलिए किया गया हो क्योंकि कहानी की डिमांड रपे की घटना के इर्द गिर्द ही थी परन्तु क्या यह जस्टिफिकेशन पाठक के दिमाग पर पड़ने वाले असर को ख़तम कर सकता है मेरे विचार से तो नहीं बल्कि पाठकों को पता तक नहीं चलेगा की उनके मस्तिष्क को क्या खुराक दे दी गयी ठीक वैसा ही जैसा की स्लो पाइजन के साथ होता है

अगर यह एकमात्र किताब होतो जिसमे पुरुषों के खिलाफ होने वाले अपरदों को इग्नोर करना सिखाया गया तो शायद नुक्सान कम होता परन्तु ऐसा नहीं है तकरीबन हर किताब मैं यही दिखाई देता है एक तरीके से साहित्य के द्वारा हमारे मस्तिष्क को पुरुषों के प्रति और उनके प्रति अपरदों को इंसेस्टीवे बनाया जा रहा है और ऐसा आज से नहीं हो रहा बल्कि जहां तक का साहित्य उपलब्ध है सबमे यही दिखाया गया उद्धरण के तौर पर शरतचंद्र की कहानियों एवं किताबों मैं पाठक को बांधने का दम दिखाई देता है परन्तु उनकी तकरीबन हर किताब या कहानी मैं नायिका पर फोकस दिखाई देता है नायक एक सह कलाकार के रूप ही दिखाई देता है बल्कि नायक को हमेशा ग्रेशेड मैं दिखाया और उसे गैर जिम्मेदार बताया जाता है इसके विपरीत ग्रेशेड नायिका को महिमामंडित किया गया है दोनों ही पात्र ग्रे शेड मैं है परन्तु पुरुष ग्रे शेड को गैर जिम्मेदार एवं महिला ग्रे शेड को महिमंडित किया गया

शरत चंद्र से पुराणी साहित्य की भी यही कहानी है और इसी ट्रैंड को आगे बढ़ाने का काम आज प्रिंट मीडिया टीवी मैगज़ीन आदि कर रहे है

परन्तु ऐसा क्यों है की तकरीबन हर किसम का मीडिया पुरुषों के प्रति होने वाले अपराधों को इग्नोर कर रहा है शायद इसका कारन है की इस मीडिया को चलने वाले लोगों का मस्तिष्क बचपन से यही सीखते हुए परिपक्व हुआ है और पुरुषों पर अत्याचार को इग्नोर करना इस हद तक सिख चूका है की उसे शायद पता भी नहीं चलता

इसका एकमात्र समाधान यही है की बच्चों को बचपन से ही किसी एक जेंडर के लिए सेंसटिव होना न सिखाया जाये बल्कि उनको सिखाया जाये की पुरुष या महिला दोनों के प्रति अपराध गंभीर है अभी मंजिल बहुत दूर है परन्तु कहीं से तो आरम्भ करना ही होगा तो स्कूल से क्यों न किया जाये जहाँ कल का समाज तैयार हो रहा है ?

न पुरुष के खिलाफ अपराध

न महिला के खिलाफ अपराध

सिर्फ मानव के खिलाफ अपराध