11 th National Meet on Men’s Issues :
The 11th edition of National Meet under the aegis of ‘Save Indian Family Movement’ commenced on 15th to 17th of August 2019 at Hotel Tuli International, Sadar, Nagpur. Mr. Karan Oberoi & Mr. Vipul Deshpande were the guest dignitaries who graced the occasion with their presence.
Those who joined the National Meet were around 150 amazing men who are on a collective journey to ensure justice for Men and create a free from gender bias better India.
Men who made headlines and cracked social media to run some amazing and ground breaking campaign like #MenToo.
From helping Men and Boys access better counseling and guidance to taking up the task of making society and laws gender-neutral in the country. They’re working across India on various issues that relate Men and Boys.
These Men gathered in the city of Nagpur for the 11th edition of National Conference on Men’s Issues under the aegis of Save Indian Family Movement.
#11thNationalMeet was an amazing and heartwarming experience! We heartily congratulate Gender Equality Organization, Nagpur for being a wonderful host and for successfully organizing the National Conference and achieving yet another major milestone in the journey of Save Indian Family Movement (SIF Movement).
पिंडदान
सेव इंडियन फैमिली मूवमेंट से संबद्ध करीब 40 सरकारी संगठनों ने एक राष्ट्रव्यापी मुहीम के तहत, एक ही दिन और समय पर एक साथ करीब 50 शहरों में विषाक्त महिलावाद के पिंडदान का आयोजन किया। दामन वेलफेयर ट्रस्ट ने भी दिनांक 22 सितंबर 2019 को, सरसैया घाट, कानपुर पर विषाक्त महिलावाद के पिंडदान का आयोजन किया।
आज का कट्टर महिलावाद केवल महिलाओं को अपनी प्राकृतिक मनोवैज्ञानिक/शारीरिक बनावट की स्वीकार्यता में शर्मिंदा होना सिखाता है, तथा बल आधारित हर उन कृत्यों में लिप्त होने को प्रोत्साहित करता है जो की उनके स्वाभाव के विपरीत हैं। इसीलिए, यह कट्टर महिलावाद आंख के बदले आंख, या दांत के बदले दांत लेने में विश्वास नहीं करता। यह मानता है कि कोई भी नरम या न्यायपूर्ण तर्क का सहारा लेना इसे पीछे ढकेल देगा, इसलिए, यह दांत के बदले आंख और आंख के बदले जीवन की मांग करने में विशवास करता है।
इस विषाक्त महिलावाद, जो सबके किए समानता की बात करने की बजाय, हर स्थिति में केवल महिलाओं के वर्चस्व और पुरुषों के विरुद्ध भेदभाव की प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देता है, का भी अंत होना चाहिए जिसका कोई भी तर्कसंगत व्यक्ति समर्थन नहीं करता है।
इसी कट्टर विषाक्त महिलावाद का पिंडदान किया गया।