Shiva

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Shiva

 

Mr. Mishra


हर हर महादेव

हर हर महादेव एक ऐसा नारा है जिससे शायद ही कोई व्यक्ति परिचित ना हो खास तौर पर नार्थ इंडियन | परन्तु बहुत कम लोग वास्तव मैं इसके मतलब से परिचित होंगे शायद इस लिए क्योंकि हमें जो अच्छा लगता है हम उसे याद रखने तक सीमित रहते है आचरण मैं अपनाने तक जाना आसान नहीं है  परन्तु इस लेख को लिखने के पीछे मेरा मकसद ना तो इस नारे का मतलब समझाना है और ना ही मैं यह दावा कर सकता हूँ की मैं इसका असली अर्थ समझता हूँ मेरा मकसद सिर्फ और सिर्फ शिव को याद करना है परन्तु शिव को याद करने के पीछे कोई धार्मिक कारन नहीं है बल्कि मैं शिव की एक कथा पर ध्यान दिलवाना चाहता हूँ 
मेरी नज़र मैं शिव ब्रम्हा विष्णु कोई व्यक्ति या भगवन न होकर मनुष्य की प्रवृति को इंगित करने का साधन है इसे दूसरे शब्दों में कह सकते है की शिव ब्रम्हा विष्णु मनुष्य के अंतर में ही है परन्तु शिव को भारत मैं एक पूजनीय देवता के रूप मैं देखा जाता है अगर अधिक विस्तार मैं न जाये तो शिव या महादेव को ३ मूल देवताओं मैं से एक माना जाता है और शिव या महादेव का सम्बन्ध विध्वंश से भी जोड़ा जा सकता है  बेशक शिव का जीवन या शायद यह कहना उचित होगा की शिव की लीलाएं अपने आप मैं बहुत विस्तृत और प्रेरणा दायक है शिव के जीवन की बहुत सारी घटनाएं पढ़ते सुनते हुए ही हम मैं से अधिकांश लोग बड़े हुए |
शिव के जीवन से जुडी घटनाओं को शायद इसी लिए ही कहानियों का रूप दिया गया ताकि उसे सुनने वाले उन घटनाओं से कुछ सिख सके और अपने जीवन मैं उतार कर अपने जीवन को एक सही दिशा दे सकें परन्तु शायद वक़्त ने इस प्रेरणा दायक घटनाओं या कहानियों को विकृत कर दिया और इसमें से अधिकांश कहानियां प्रेरणा दायक न रहकर सिर्फ शिव को एक भगवान् के रूप मैं स्थापित करने का साधन मात्र बन कर रह गयी
बेशक शिव का जीवन और उससे जुडी घटनाएं ही शिव को भगवान् का दर्ज़ा दिलवाती है परन्तु अगर इन घटनाओं से आम आदमी को सिखने के लिए कुछ नहीं मिल प् रहा तो शायद इन घटनाओं या कहानियों का मकसद पूरा नहीं हो सकता  'हर हर महादेव' हमको यही सिखाता है की हर मनुष्य या व्यक्ति मैं महादेव जैसे गुण और साहस है जरूरत सिर्फ उनको बहार निकलने की और समाज की भलाई के लिए इस्तेमाल करने की है और शायद यही शिव पर आधारित कहानियों का मकसद है की व्यक्ति प्रेरित हो महादेव बनने के लिए 
एक ऐसी ही कहानी याद आ रही है जोकि शिव और सती पर आधारित है

The story of Mahadev and Sati is the reunion between Shiva and AdiShakti. The story of these two begins at the advent of time:
When Lord Brahma tasked his son Prajapati Daksha to populate the Earth, Daksha prayed to the Universal Mother, Adi Parashakti and requested Her to be born as his son. Thus, Parashakti incarnated as Sati in the house of Daksha.
From an early age, Sati was the apple of Daksha eyes. What she wished, she got. In this incarnation, as Sati, Parashakti temporarily forgot Her true self. Sati’s destiny was to wed Shiva, but her father's extreme hatred towards the Ascetic Lord was the greatest hurdle.
Once, while collecting flowers for a Pooja, Sati wandered into a collection of caves, in which lived ascetics or followers of Shiva. These sages recognized Sati as Shakti and bowed to her. Sati, on the other hand, ran away frightened. Some distance away, when she looked in her basket, she noticed a Rudraksha and out of fear, dropped in a stream.
Some time later, Daksha erected a grand temple for Lord Vishnu, in the form of Padmanabhaswamy. With due rituals, the idol of Vishnu was taken to the sanctum sanctorum,but suddenly, the idol refused to budge beyond the threshold of the sanctum.
No one knew why this was happening, until the sculptor of the idol quietly asked Sati to place a Shivalinga below the hand of Vishnu. The sculptor said that without Shiva, the idol was incomplete and an incomplete idol cannot be worshipped.
Sati, stealthily places the Linga in its position and the idol is able to be pushed and installed in the temple. After everything is complete, Daksha notices the Linga and gets furious. He roars and demands to know who placed the Linga there. Sati confronts her father on this, and gets severely scolded for having done so. Suddenly, a sage and follower of Shiva present in the crowd comes ahead and consoles Sati. The sage is Rishi Dadhichi and Daksha hus insults about Shiva in front of Dadhichi. Daksha asks Dadhichi to bring Shiva to the gathering, and taking a step further, asks Sati to be the devotee.
Dadhichi consoles the frightened princess, hands her a Bel leaf and asks her to pray with a pure mind. While Daksha watches with scorn, Shiva grants an audience to all those present. Daksha stares at Shiva in horror, while Sati is smitten by the Lord. Shiva then suddenly disappears after seeing Sati.
There are many more incidents in which the duo get involved including Shiva saving Sati from an Asura, performing dance with Sati (reluctantly) and also waking Sati up from a coma after she got exposed to Shiva’s divinity.
Slowly, love blossoms between the two and Sati wishes to get married to Shiva. But Daksha is against Shiva and the marriage. Daksha treats Sati badly and refuses when she tells him about wedding Shiva.
Daksha, taking an opportunity to insult Bholenath once again, organizes a swayamvara for Sati and places a statue of Shiva outside the main hall, insulting the Lord like a gatekeeper. Sati walks with the garland in her hands and without looking at any suitor, walks upto the statue of Shiva and places the garland around the statue.
Daksha starts to laugh but turns red when Shiva materializes from the stone and accepts Sati as His wife. Since that point, Sati ceased to exist for Daksha.
Shiva and Sati spend their time in Kailash, where due to Sati’s humane nature, certain conflicts rise. The ultimate event is marked wit Sati’s death.
One day, Daksha organizes a Yagnya and invites everyone except Shiva and Sati, to show his scorn and hate towards both. Sati, being perturbed with this, asks Shiva to come with her to the sacrifice. But Shiva refuses, and tries to stop Sati from going. But, stubborn as she was, Sati remained resolute to attend the ritual. Shiva warned her that this was foolish. But Sati, not heeding a word, leaves. Shiva sighs, preparing for what will happen next.
Sati reaches the venue and is happy to meet her family. But Daksha does not talk to her and insults both her and Shiva. Sati, tortured by guilt, decides to end her life. She burns herself and gives up the world. All watching the spectacle are shocked to the bone, while Daksha feels happy about that.
Miles away, when Sati kills herself, Shiva goes full angry and changes into Rudra. He burns everything in sight and begins to render the place into a wasteland. While dancing the fierce Tandava, Shiva pulls locks of His hair and summons Veerbhadra and Bhadrakali to teach Daksha a lesson.
Veerbhadra and Bhadrakali, along with goblins and ghosts, go to get rid of Daksha. Daksha’s armies are mercilessly slaughtered and even Lord Vishnu is defeated when He tries to protect Daksha (Vishnu was under a promise to do so).
Terrified, Daksha watches in horror as Veerbhadra runs toward him faster than the wind. In a flash, Daksha finds himself under Veerbhadra’s foot and in his moments of death, Daksha chants the Panchakshari mantra of Shiva. Veerbhadra cuts off Daksha’s head and transforms into Shiva.
Shiva then grants Daksha the head of a goat, and carries Sati’s smoldering body out of the scene and wanders the realms with it. Concerned about Shiva, Vishnu uses His Sudarshan Chakra to cut Sati’s body into 51 parts which get scattered around the Earth.
Shiva wanders the Earth, establishing Shakti Peeths wherever the organs fell and then retires into Samadhi for years, until Adi Parashakti returns as Parvati to fulfill Her destiny once again.
Sati is Parvati who is Adi Parashakti, the inseparable half of Shiva.

हलाकि शिव और सती की कहानी अलग अलग शब्दों मैं और शायद अलग अलग स्वरुप मैं प्रचलियत हो परन्तु ज्यादातर कहानियों का मूल सिर्फ और सिर्फ शक्ति या सती को शिव का आधा भाग दिखने मैं ही सीमित जान पड़ता है परन्तु क्या सिर्फ इतना ही सिखने के लिए है ?
मेरे विचार यह कहानी या फिर इस जैसी कहानियां शिव को एक महामानव के रूप मैं सामने रखती है और एक महामानव का मुकाबला मानव नहीं कर सकता सिर्फ और सिर्फ महामानव को आदर और पूजा कर सकता है उसके बनाये रास्तों पर चल नहीं सकता यही किस्सा तकरीबन हर भगवन के साथ है  हमारी कहानिया जोकि व्यक्ति को प्रेरणा देने के लिए होनी चाहिए थी उन्होंने विकृत होकर ऐसा रूप ले लिया जो व्यक्ति को पूजा के लिए प्रेरित करती है न की बनाये हुए मार्ग पर चलने के लिए ऐसा ही कुछ मेरे बहुत क्लोज रिलेटिव भी कहते है  सीख धरम बहुत पुराना नहीं है और सिख इतिहास मैं प्रेरणा देने वाले हज़ारो व्यक्ति मोजूद है परन्तु मेरे रिलेटिव का मानना है की वह सारे सिख अलग थे हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते  मतलब यह की हम उनकी पूजा करने योग्य है परन्तु उनके बताये मार्ग पर चलने योग्य नहीं
बहुत सालो पुराणी बात है (मित्र द्वारा सुनाया गया किस्सा) जब मैं किसी के साथ तर्क वितर्क कर रहा था रामायण पर मेरा प्रतिपक्षी का मानना था की रामायण झूठी है क्योंकि ऐसे बन्दर भालू या रीछ नहीं हो सकते जो मनुष्य की तरह बातचीत और व्यव्हार कर सकें और मेरा तर्क था की यह देखने का बहुत ही कमजोर नज़रिया है रामायण उस वक़्त की कहानी है जिसे हमने नहीं देखा और किस्से जो हम तक पहुंचे विकृत हो चुके होंगे वक़्त के साथ शायद वानर किसी मनुष्य समूह (शायद आदिवासी समूह) के लिए इस्तेमाल किया गया हो जो शायद बन्दर की पूजा करते हूँ और इसी तरह बाकि पात्र भी आदिवासियों मनुष्य ही हों बस उनके लिए शब्द जो इस्तेमाल हुए उनके आराध्यों के आधार पर हो 
एक और बहस हुई (मित्र द्वारा सुनाया गया किस्सा) कुछ दिन पहले ही एक दोस्त ने तर्क दिया की रामायण के वास्तविक होने के अवशेष राम सेतु के रूप मैं खोज लिए गए है तब मैंने तर्क दिया की राम सेतु रामायण की सत्यता कैसे हो सकता है यह संभव है की राम सेतु जैसी सरचना को बाल्मीकि ने देखा हो और उसे वह पसंद आई और उसका इस्तेमाल उसने एक नावेल या नाटक लीखने मैं कर लिया हो |
खेर न तो मैं रामायण की सत्यता पर बात कर रहा था और न ही अपनी विचारधारा पर  परन्तु मेरा मानना है की ज्यादातर कहानियां जो की हमने सुनी उनको बनाये जाने के पीछे मुख्य कारन व्यक्ति का मार्ग दर्शन करना रहा होगा परन्तु वक़्त के साथ मकसद शायद मनोरंजन तक सीमित रह गया इसी संदर्ब मैं हाल ही मैं एक पुस्तक पड़ने का मौका हासिल हुआ जोकि शिव और सती पर आधारित थी
इस पुस्तक मैं शिव और सती को भगवन के रूप मैं न दिखा कर सिर्फ और सिर्फ मनुष्य के रूप मैं दिखाया गया है पुस्तक इस बात का विस्तृत वर्णन है की किस तरह से शिव ने अपने जीवन को एक मानव के रूप से उठा कर महामानव के रूप मैं स्थापित किया या दूसरे शब्दों मैं कैसे शिव ने एक मनुष्य से भगवन का दर्ज़ा हासिल किया और एक ऐसा मार्ग स्थापित किया जिस पर दूसरे चल सकें इसी पुस्तक मैं से कुछ सवाद बहुत उल्लेखनीय है जोकि शायद मनुष्य को एक सही दिशा प्रदान करने मैं सहायक हो सकें    हलाकि यह इस बात पर निर्भर करता है की व्यक्ति विशेष किसी किताब को की उद्देश्य से पढ़ रहा है परन्तु फिर भी यह निश्चित है की पढ़ते वक़्त कुछ विशेष अवश्य की मस्तिष्क में अपने प्रभाव छोड़ देता है
पुस्तक में शिव को एक सामान्य इंसान के रूप में दिखाया गया है और उस सामान्य इंसान पर एक बड़ी जिम्मेदारी ढाल दी गयी है जिसे वह सामान्य इंसान अपने पुरे सामर्थ्य से निभाने का प्रयास कर रहा है एक विशेष अवसर पर जब शिव को एक ऐसे दो  रस्ते पर खड़ा कर दिया गया जहां पर उसे चुनाव करना है एक रस्ते का : प्रथम रास्ता आसान है परन्तु इस रस्ते पर शिव को अपने नैतिक आचरण से समझौता करने की आवशकता है तथा दूसरा रास्ता ऐसा है जो शिव को उसके उदेशय को बहुत ही मुश्किल बना देता है परन्तु इस रस्ते पर शिव के नैतिक आचरण पर आंच नहीं आ रहे 
ऐसे वक़्त में अधिकांश मानव उस रस्ते का चयन करते है परन्तु शिव उस रस्ते का चयन करते है जिस पर बेशक उनकी मंज़िल उनसे बहुत दूर तथा मुश्किल हो गयी परन्तु उनके नैतिक मूल्यों की रक्षा संभव हो सकी 
यहाँ महत्वपूर्ण क्या है ?
शायद मंज़िल को प्रपात करना नहीं बल्कि मंज़िल किस प्रकार प्राप्त हुई यह ज्यादा महत्वपूर्ण है मंजिल प्राप्त हुए यह महत्वपूर्ण है वर्तमान के लिए और मंजिल किस रस्ते पर चल कर प्राप्त हुए यह भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है 
मंज़िल प्राप्त करने के असंख्य मार्ग हो सकते है परन्तु एक विशेष मार्ग जो सही और गलत के बिच कर फर्क जानने के बाद तय किया गया हो निश्चित रूप से सुखद भविष्य का निर्माण कर सकता है परन्तु ऐसा मार्ग जो सही और गलत के बिच फर्क करने में असमर्थ  संभव है मंजिल तक ले जाये परन्तु सुखद और प्रकाशमय मार्ग तक नहीं ले जा सकता
हलाकि शिव सती की कथा किसी के लिए भी प्रेरणा दायक हो सकती है परन्तु मेरा मकसद उन पुरुषों से संवाद कायम करना है जो किसी न किसी कारन से निर्दोष होते हुए भी सजा भुगत रहे है या भुगत चुके है किसी महिला द्वारा की गयी झूठी कम्प्लेन के कारन किसी भी निर्दोष पुरुष को अत्याचार सहना पड़ सकता है परन्तु महत्वपूर्ण है की पुरुष खुद की निर्दोषिता साबित करे और उसे सही मार्ग पर चलते हुए साबित करे क्योंकि यह सिर्फ उस व्यक्ति विशेष का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण पुरुष जयति के भविष्य का  सवाल है ऐसे पुरुषों के पास सरल रास्ता भी है हो की शायद कुछ पैसे खर्च करके समझौता के माध्यम से मंजिल तक ले जा सकता है या शायद अपने विरोधी के खिलाफ कुछ गलत तरीके से मुक़दमे दाल कर भी मंजिल शायद प्राप्त हो जाये परन्तु यह रास्ता सिर्फ और सिर्फ तात्कालिक समादन दे सकता है भविष्य नहीं  किसके लिए कोनसा रास्ता उचित है वह व्यक्ति विशेष को ही तय करना है परन्तु रास्ता सही और गलत पर विचार करके चुना जाये यह जरूरी है 

It Does not matter if men filled a false case after or before a false case is always a false case and we don’t support it. If you have a reason to file false case she also has same or similar reason.