The Land of Kings : 002 – The Fog

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Agyat Sanyasi

The Land of Kings is a story or the life of a kid who born and live in difficult conditions but finally rise to rule. The time period of story is very very old, even when the time was not even counted.

Chapter 002 : THE FOG

नवरंग एवम मित्रों के पास रात गुजरने के लिए गुफा एवम खाने की व्यपवस्था के लिए जंगलों से प्राप्त होने वाले फल थे | परंतु सुरक्षा की समस्या अभी बानी हुई थी | गुफा उनकी जरूरतों को पूरा कर रही थी परंतु गुफा का की सुरक्षा भी जरूरी थी | गुफा की सुरक्षा के लिए गुफा के छेद को दरवाज़े का रूप दिया जाना जरूरी था । जंगल से लकड़ियों तथा छालों के द्वारा मजबूत दरवाज़े से गुफा को धक् दिया गया । इतना करते करते दिन गुजर गया | रात मैं खाने के बाद सभी मित्रों ने बारी बारी पहरा देने का निश्चय कर के सो गए ।

रात के आखिरी पहर मैं जब नवरंग पहरे पर थे वह पिछली रात देखी हुई फोग के बारे मैं सोच रहा था उसे यकीन था की फोग आज भी दिखाई देगी परंतु आज भी उसे नहीं पता था की उन लोगों को फोग से कोई खतरा है या नहीं । उसे नहीं पता थे की वह क्या कर सकता था अगर फोग किसी किस्म के खतरे को पैदा करती । परंतु नवरंग को सिर्फ इतना पता था की उसे सावधान रहना है । शायद यही कारन था की उसे नींद आने के बावजूद वह सतर्क था|

नवरंग सावधानी से अपनी जगह पर बैठा हुई उसी जगह को देख रहा था जहाँ पर उसे पिछली रात फोग दिखाई दी थी । पिछली रात की तरह ही आज रात भी धीरे धीरे सफ़ेद फोग पैदा होना सुरु हो चुकी थी । धीरे धीरे फोग पुरे एरिया मैं फ़ैल रही थी । नवरंग लगातार फोग को देख रहा था । काफी देर बाद नवरंग ने ध्यान दिया तो उसे महसूर हुआ की फोग के बिच हलके हलके जातले हुए अंगारों के जैसी दो आँखे लगातार उसे घूर रही हैं । नवरंग भी लगातार अंगारों मैं देखने लगा वह डरा हुआ था परंतु वह सावधान था । काफी देर तक अंगारों मैं देखने के कारन नवरंग की आँखें भी जल रही थी उनमे पानी निकलने लगा था ।

मजबूरन navrang तो अपनी आँखें बंद करनी पड़ी । कुछ देर बाद जब नवरंग ने अपनी आँखें खोली वह डर के कारन अपनी जगह से हिलना भी भूल गया । वह चिलाना कहता था अपने दोस्तों को जगाना चाहता था परंतु न तो वह हिल पा रहा था न ही उसके मुह से कोई आवाज़ ही निकल पा रही थी । डर का कारन फोग गुफा के मुह तक आ पहुंची थी । अंगारे जैसी आँखें उससे सिर्फ एक हाथ के फैसले पर मौजूद थी तथा उसे लगातार घूर रही थी । फोग तथा नवरंग के बिच लकड़ियों एवम शाखाओं से बने दरवाज़े के अलावा कुछ नहीं था । नवरंग सिर्फ हाथ बड़ा कर फोग को छु सकता था परंतु न तो नवरंग ऐसा करना कहता थे न ही उसमे इतनी हिम्मत बची थी |

काफी देर तक नवरंग ऐसे ही खड़ा रहा । धीरे धीरे उसकी चेतना वापिस आ रही थी । वह सोच रहा था की जब अंगारे जैसे आँखों वाली फोग ने गुफा के मुह तक आ पहुंची है तो अब अंदर क्यों नहीं आ पा रही परंतु उसे नहीं पता था क्यों न ही वह इस बारे मैं कुछ सोचना चाहता था । उसे बस इतनी ही तसली थी की फोग गुफा के अंदर नहीं आ पा रही । काफी देर तक फोग को देखते रहने के बाद नवरंग पीछे हट कर एक पत्थर पर बैठ गया । उसे यकीन था की फोग किसी कारन से गुफा मैं नहीं आ सकती परंतु फिर भी वह अपनी नज़रें फोग से नहीं हटाना चाहता था । नवरंग के पत्थर पर बैठने के बाद फोग ने लगातार आगे भड़ कर गुफा मैं प्रवेश करने की कोशिश जारी राखी परंतु किसी कारन से न तो गुफा के अंदर जा सकी न ही प्रयास बंद हुए |

दिन की शूरुआत हो चुकी थी सूरज की लाली आकाश मैं फैलनी शुरू हो चुकी थी । गुफा के बहार फोग अभी भी मौजूद थी । रात मैं अंगारे जैसी चमकने वाली आँखें अभी भी मौजूद थी परंतु शायद आकाश की रौशनी के कारन इस वक़्त आँखों को देख परं बहुत मुश्किल था । अपने दोस्तों के जागने के बाद नवरंग ने सभी की रात मैं हुई घंटना के बारे मैं बताया तथा अंगारों जैसी आँखें भी दिखाई । इस वक़्त सभी दोस्त डरे हुए थे परंतु सब एक साथ थे इस लिए डर भी अपनी सीमाओं से आगे नहीं जा पा रहा था । नवरंग ने इस वक़्त गुफा मैं ही रह कर फोग के हटने का इतंज़ार करने का फैसला किया । इस वक़्त जबकि करने के लिए कुछ भी नहीं था तो नवरत्न एक तरफ जा कर सोने की कोशिश करने लगा । नवरंग के दोस्त दूसरी तरफ सतर्क बैठे रहे । नवरंग तथा उसके दोस्त लगातार महसूस कर रहे थे को अंगारों जैसी आँखे लगातार नवरंग को घूर रही थी । आँखों के पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ नवरंग पर ही था |

जैसे जैसे दिन निकलता गया फोग भी पीछे हटने लगी । परंतु नवरंग के दोस्त लगातार महसूस कर रहे थे की फोग पीछे हटना नहीं चाहती परंतु उसे हटना पड़ रहा था । आखिर दिन का पहला पहर ख़तम होने से पहले जब सूरज की किरणे गुफा के बाहर तक आने ही वाली थी फोग पूरी तरह से गायब हो चुकी थी । इसी वक़्त नवरंग ने अपने दोस्तों को जरूरत का सामन इकठा करने के लिए भिजवा दिया तहत खुद उस तरफ बाद गया जहां पर से फोग सुरु हुई थी । जब नवरंग के दोस्त फल एवम लकड़ी इकठी कर रहे थे नवरंग चटान पर चढ़ने के रस्ते की तलाश कर रहा था जिस से की पिछली रात फोग शुरू हुई थी । परंतु एक गहरी खाई उसका रास्ता रोके हुई थी । न तो खाई को कूद कर पर किया जा सकता था न ही नवरंग कोई दूसरा रास्ता ही तलाश कर पाया । अंतत नवरंग के पास हार मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था ।

नवरंग अपने दोस्तों का हाथ बताने के लिए वापिस आ गया । वह रात होने से पहले गुफा मैं काफी लकड़ी एवम फल इकठे कर लेना कहता था जिससे की अगर कुछ दिन गुफा मैं कैद भी रहना पड़े तो भी खाने एवम सर्दी की चिंता न करनी पड़े ।

धीरे धीरे रात फिर आ गयी । आज की रात नवरंग सबसे पहले पहरा दे रहा था । आज भी पिछली रात की तरह ही चारो तरफ फोग फैली हुई थी आँखें अंगारों की तरह जल रही थी । आँखें लगातार नवरंग को घूर रही थी फोग लगातार गुफा मैं आने का प्रयास कर रही थी । परंतुय नवरंग निश्चिन्त था उसे यकीन था की फोग अंदर नहीं आ पायेगी । पूरी रात नवरंग एवम उसके दोस्त एक एक करके पहरा देते रहे परंतु न तो फोग अंदर आ पायी न ही प्रयास बंद हुए |

Sometimes you don’t realize your own strength until you come face to face with your greatest weakness.